Samadhitantra-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 3.

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 26 of 199

 

१०समाधितंत्र

ननु निष्कलेतररूपमात्मानं नत्वा भवान् किं करिष्यतीत्याह
श्रुतेन लिंगेन यथात्मशक्ति समाहितान्तः करणेन सम्यक्
समीक्ष्य कैवल्यसुखस्पृहाणां विविक्तमात्मानमथाभिधास्ये ।।।।

पोताना ज्ञाननी योग्यतानुसार समजे छे. ते निरक्षर ध्वनिने ‘ॐकार ध्वनि’ कहे छे. श्रोताओना कर्णप्रदेश सुधी ते ध्वनि न पहोंचे त्यां सुधी ते अनक्षर ज छे अने ज्यारे ते श्रोताओना कर्णो विषे प्राप्त थाय छे त्यारे ते अक्षररूप थाय छे.

‘‘.......जेम सूर्यने एवी इच्छा नथी के हुं मार्ग प्रकाशुं परंतु स्वाभाविक ज तेनां किरणो फेलाय छे, जेथी मार्गनुं प्रकाशन थाय छे. ते ज प्रमाणे श्री वीतराग केवली भगवानने एवी इच्छा नथी के अमे मोक्षमार्गने प्रकाशित करीए, परंतु स्वाभाविकपणे ज अघातिकर्मना उदयथी तेमनां शरीररूप पुद्गलो दिव्यध्वनिरूप परिणमे छे, जेनाथी मोक्षमार्गनुं सहज प्रकाशन थाय छे.....’’

भगवाननी दिव्य ध्वनि द्रव्यश्रुत वचनरूप छे. ते सरस्वतीनी मूर्ति छे, कारण के वचनोद्वारा अनेक धर्मवाळा आत्माने ते परोक्ष बतावे छे. केवळज्ञान अनंत धर्मसहित आत्मतत्त्वने प्रत्यक्ष देखे छे, तेथी ते पण सरस्वतीनी मूर्ति छे. आ रीते सर्व पदार्थोनां तत्त्वने जणावनारी ज्ञानरूप अने वचनरूप अनेकान्तमयी सरस्वतीनी मूर्ति छे. सरस्वतीनां वाणी, भारत, शारदा, वाग्देवी इत्यादि घणां नाम छे.२.

निष्कलथी अन्यरूप आत्माने (निष्कल नहि एवा सकल आत्माने) नमस्कार करीने आप शुं करशो? ते कहे छे

श्लोक ३

अन्वयार्थ : (अथ) हवे परमात्माने नमस्कार कर्या बाद (अहं) हुंपूज्यपाद १. जुओः गोम्मटसारजीवकांड गाथा २२७नी टीका. २. जुओः मोक्षमार्गप्रकाशकगु. आवृत्ति पृ. २२ ३. जुओः श्री समयसारगु. आवृत्ति पृ. ४.

आगमथी ने लिंगथी, आत्मशक्ति अनुरूप,
हृदय तणा ऐकार्ग्य्राथी सम्यक् वेदी स्वरूप,
मुक्तिसुख-अभिलाषीने कहीश आतमरूप,
परथी, कर्मकलंकथी, जेह विविक्तस्वरूप. ३.