१२समाधितंत्र सम्यग्ज्ञात्वा अनुभूयेत्यर्थः । केषां तथा भूतमात्मानमभिधास्ये ? कैवल्यसुखस्पृहाणां कैवल्ये सकलकर्मरहितत्त्वे सति सुखं तत्र स्पृहा अभिलाषो येषां, कैवल्ये विषयाप्रभवे वा सुखे; कैवल्यसुखयो स्पृहा येषाम् ।।३।। मन – एकाग्र थयेला मन वडे, सम्यक्प्रकारे समीक्षा करीने – (विविक्त आत्माने) जाणीने – अनुभवीने (कहीश) एवो अर्थ छे. हुं कोने तेवा प्रकारना आत्माने कहीश? कैवल्य सुखनी स्पृहावाळाओने – कैवल्य अर्थात् सकल कर्मोथी रहित थतां जे सुख (ऊपजे) तेनी स्पृहा (अभिलाषा) करनाराओने – (कहीश). कैवल्य अर्थात् विषयोथी उत्पन्न नहि थयेला एवा सुखनी – अथवा कैवल्य अने सुखनी – स्पृहावाळाओने (कहीश). (३)
भावार्थ : श्री पूज्यपाद स्वामी प्रतिज्ञारूपे कहे छे के, ‘हुं श्रुत वडे, युक्तिअनुमान वडे अने चित्तनी एकाग्रता वडे शुद्धात्माने यथार्थ जाणीने तथा तेनो अनुभव करीने, निर्मळ अतीन्द्रिय सुखनी भावनावाळा भव्य जीवोने मारी शक्ति अनुसार शुद्ध आत्मानुं स्वरूप कहीश.
कह्युं छे केः —
कंई अन्य ते मारुं जरी परमाणुमात्र नथी अरे!
दर्शन – ज्ञान – चारित्ररूप परिणमेलो आत्मा जाणे छे के – ‘निश्चयथी हुं एक छुं, शुद्ध छुं, दर्शनज्ञानमय छुं, सदा अरूपी छुं; कांई पण अन्य पर द्रव्य – परमाणुमात्र पण मारुं नथी. ए निश्चय छे.’१
शरीर अने आत्मा एकबीजाथी भिन्न छे कारण के ते बंनेनां लक्षण२ भिन्न भिन्न छे. आत्मा ज्ञान – दर्शन लक्षणवाळो छे अने शरीरादि तेनाथी विरुद्ध लक्षणवाळां छे – अर्थात् अचेतन जड छे. जेमनां लक्षण भिन्न भिन्न होय छे ते बधां एकबीजाथी भिन्न होय १. श्री समयसार – गु. आवृत्ति – गाथा ३८ २. घणा मळेला पदार्थोमांथी कोई पदार्थने जुदो करनार हेतुने लक्षण कहे छे. (जैन सिद्धान्त प्रवेशिका)