कतिभेदः पुनरात्मा भवति ? येन विविक्तमात्मानमिति विशेष उच्यते । तत्र कुतः छे; जेम के जलनुं लक्षण शीतलपणुं अने अग्निनुं लक्षण उष्णपणुं छे. एम बंनेना लक्षण भिन्न छे, तेथी जलथी अग्नि भिन्न छे.
जेम सोना अने चांदीनो एक पिंड होवा छतां तेमां सोनुं तेनां पीळाशादि लक्षण वडे अने चांदी तेना शुक्लादि लक्षण वडे – बंने जुदां छे – एम जाणी शकाय छे, तेम जीव अने कर्म – नोकर्म (शरीर) एकक्षेत्रे होवा छतां तेमनां लक्षणो वडे तेओ एकबीजाथी भिन्न जाणी शकाय छे.१
वळी अंतरंग राग – द्वेषादि विकारी परिणामो पण वास्तवमां आत्माना ज्ञान लक्षणथी भिन्न छे, कारण के राग – द्वेषादि भावो क्षणिक अने आकुळता लक्षणवाळा छे; ते स्व – परने जाणता नथी; ज्यारे ज्ञानस्वभाव तो नित्य ने शान्त-अनाकुळ छे, स्व – परने जाणवानो तेनो स्वभाव छे. आ रीते भिन्न लक्षणद्वारा ज्ञानमय आत्मा रागादिकथी भिन्न छे – एम नक्की थाय छे.२ माटे आत्मा परमार्थे पर – भावोथी अर्थात् शरीरादिक बाह्य पदार्थोथी तथा राग – द्वेषादि अंतरंग परिणामोथी विविक्त छे – भिन्न छे.
आगम अने युक्ति द्वारा आत्मानुं शुद्ध स्वरूप जाणी पोताना त्रिकाळ शुद्धात्मानी सन्मुख थतां आचार्यने जे शुद्धात्मानो अनुभव थयो ते अनुभवथी तेओ विविक्त आत्मानुं स्वरूप बताववा मागे छे.
आचार्य आत्मानुं स्वरूप कोने बताववा मागे छे? आत्माना अतीन्द्रिय सुखनी ज जेने स्पृहा छे – इन्द्रिय – विषयसुखनी जेने स्पृहा नथी, तेवा (जिज्ञासु) भव्य जीवोने ज आचार्य विविक्त आत्मानुं (शुद्धात्मानुं) स्वरूप कहेवा मागे छे.
आ रीते श्री पूज्यपाद आगम, युक्ति अने अनुभवथी आत्मानुं शुद्धस्वरूप कहेवानी प्रतिज्ञा करी छे. ३.
आत्माना वळी केटला भेद छे. जेथी ‘विविक्त आत्मा’ – एम विशेष कह्युं छे? अने १. जुओः समयसार गाथा – २७ – २८ २. जीव बंध बंने, नियत निज निज लक्षणे छेदाय छे,