२४समाधितंत्र
मिथ्या अभिप्रायवश अज्ञानी माने छे के, ‘शरीर उत्पन्न थवाथी मारो जन्म थयो, शरीरनो नाश थवाथी हुं मरी जईश, शरीरनी उष्ण अवस्था थतां मने ताव आव्यो, शरीरनी भूख, तरस, आदिरूप अवस्था थतां मने भूख – तरस लागी, शरीर कपाई जतां हुं कपाई गयो, वगेरे.’ ए रीते अजीवनी अवस्थाने ते पोताना आत्मानी अवस्था माने छे.
‘‘........आपने आपरूप जाणी तेमां परनो अंश पण न मेळववो तथा पोतानो अंश पण परमां न मेळववो – एवुं साचुं श्रद्धान करतो नथी. जेम अन्य मिथ्याद्रष्टि निर्धार विना पर्यायबुद्धिथी जाणपणामां वा वर्णादिमां अहंबुद्धि धारे छे, तेम आ पण आत्माश्रित ज्ञानादिमां तथा शरीराश्रित उपदेश – उपवासादि क्रियाओमां पोतापणुं माने छे...... वळी पर्यायमां जीव – पुद्गलना परस्पर निमित्तथी अनेक क्रियाओ थाय छे ते सर्वेने बे द्रव्योना मेळापथी नीपजी माने छे, पण आ जीवनी क्रिया छे तेमां पुद्गल निमित्त छे तथा आ पुद्गलनी क्रिया छे तेमां जीव निमित्त छे – एम भिन्न भिन्न भाव भासतो नथी.......’’१
‘जेनी मति अज्ञानथी मोहित छे अने जे मोह, राग, द्वेष आदि घणा भावोथी सहित छे एवा जीव एम कहे छे के आ शरीरादि बद्ध तेम ज धन – धान्यादि अबद्ध पुद्गल द्रव्य मारुं छे.’२
वळी शरीरादि बाह्य पदार्थोमां एकताबुद्धि करवाथी अज्ञानीने भ्रम थाय छे के रस, रूप, गंध, स्पर्श अने शब्दनुं जे ज्ञान थाय छे ते इन्द्रियोथी थाय छे तथा घटपटादिनुं जे ज्ञान थाय छे ते बाह्य पदार्थोथी थाय छे, पण तेने खबर नथी के जीवने जे ज्ञान थाय छे ते पोताना ज्ञानगुणरूप उपादान शक्तिथी थाय छे. इन्द्रियो अने घट – पटादि पदार्थो तो जड छे. तेनाथी ज्ञान थाय नहि. ते तो ज्ञान थवामां निमित्तमात्र छे.
ए रीते बहिरात्मा पोताना ज्ञानात्मक स्वभावने भूली शरीरादि पर पदार्थोथी पोतानुं अस्तित्व माने छे अर्थात् शरीरादि पर पदार्थोमां ते आत्मबुद्धि करे छे. ७. १. मोक्षमार्ग प्रकाशक – गु. आवृत्ति पृ. २३०. २. अज्ञानथी मोहितमति, बहु भावसंयुत जीव जे,