अने तेनुं प्रतिपादन करी मनुष्यादि चतुर्गति संबंधी शरीरभेदथी जीवभेदनुं तेमां प्रतिपादन करे छे.
अन्वयार्थ : (अविद्वान्) मूढ बहिरात्मा (नरदेहस्थ) मनुष्यदेहमां रहेला (आत्मानं) आत्माने (नरम्) मनुष्य, (तिर्यङ्गस्थं) तिर्यंचना शरीरमां रहेला आत्माने (तिर्यंचम्) तिर्यंच, (सुरांङ्गस्थं) देवना शरीरमां रहेला आत्माने (सुरं) देव (तथा) अने........
अन्वयार्थ : (नारकांङ्गस्थं) नारकीना शरीरमां रहेला आत्माने (नारकं) नारकी (मन्यते) माने छे. (तत्त्वतः) वास्तविक रीते (स्वयं) स्वयं आत्मा (तथा न) तेवो नथी – अर्थात् ते मनुष्य, तिर्यंच, देव अने नारकीरूप नथी; परंतु वास्तविक रीते आ आत्मा (अनंतांतधीशक्ति) अनंतानंत ज्ञान अने अनंतानंत शक्ति (वीर्य) रूप छे, (स्वसंवेद्यः) स्वानुभवगम्य छे – पोताना अनुभवगोचर छे अने (अचलस्थितिः) पोताना स्वरूपमां सदा निश्चल – स्थिर रहेवावाळो छे....... ✽