Samadhitantra-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 8-9.

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समाधितंत्र२५
तच्च प्रतिपद्यमानो मनुष्यादिचतुर्गतिसम्बन्धिशरीराभेदेन प्रतिपद्यते तत्र
नरदेहस्थमात्मानमविद्वान् मन्यते नरम्
तिर्यंच तिर्यगङ्गस्थं सुराङ्गस्थं सुरं तथा ।।।।
नारकं नारकाङ्गस्थं न स्वयं तत्त्वतस्तथा
अनंतानंतधीशक्तिः स्वसंवेद्योऽचलस्थितिः ।।।।

अने तेनुं प्रतिपादन करी मनुष्यादि चतुर्गति संबंधी शरीरभेदथी जीवभेदनुं तेमां प्रतिपादन करे छे.

श्लोक ८

अन्वयार्थ : (अविद्वान्) मूढ बहिरात्मा (नरदेहस्थ) मनुष्यदेहमां रहेला (आत्मानं) आत्माने (नरम्) मनुष्य, (तिर्यङ्गस्थं) तिर्यंचना शरीरमां रहेला आत्माने (तिर्यंचम्) तिर्यंच, (सुरांङ्गस्थं) देवना शरीरमां रहेला आत्माने (सुरं) देव (तथा) अने........

अन्वयार्थ : (नारकांङ्गस्थं) नारकीना शरीरमां रहेला आत्माने (नारकं) नारकी (मन्यते) माने छे. (तत्त्वतः) वास्तविक रीते (स्वयं) स्वयं आत्मा (तथा न) तेवो नथी अर्थात् ते मनुष्य, तिर्यंच, देव अने नारकीरूप नथी; परंतु वास्तविक रीते आ आत्मा (अनंतांतधीशक्ति) अनंतानंत ज्ञान अने अनंतानंत शक्ति (वीर्य) रूप छे, (स्वसंवेद्यः) स्वानुभवगम्य छेपोताना अनुभवगोचर छे अने (अचलस्थितिः) पोताना स्वरूपमां सदा निश्चलस्थिर रहेवावाळो छे.......

सुरं त्रिदशपर्यायैस्तथानरम्
तिर्यञ्च च तदङ्गे स्वं नारकाङ्गे च नारकम् ।।३२१३।।
वेत्त्यविद्यापरिश्रान्तो मूढस्तन्न पुनस्तथा
किन्त्वमूर्तं स्वसंवेद्य तद्रूपं परिकीर्तितम् ।।१४।।ज्ञानार्णवेशुभचन्द्राचार्यः
नरदेहे स्थित आत्मने नर माने छे मूढ,
पशुदेहे स्थितने पशु, सुरदेहे स्थित सुर; ८.
नरक-तने नारक गणे, परमार्थे नथी एम,
अनंत धी-शक्तिमयी, अचळरूप, निजवेद्य. ९.