कियत्कालमसौ न तु सर्वदा । पश्चात् तद्रूपविनाशादित्याह – अचलस्थितिः अनंतांतधीशक्ति- स्वभावेनाचलास्थितिर्यस्य सः । यैः पुनर्योगसांख्यैर्मुक्तौ तत्प्रच्युतिरात्मनोऽभ्युपगता ते प्रमेयकमलमार्तण्डे न्यायकुमुदचन्द्रे च मोक्षविचारे विस्तरतः प्रत्याख्याताः ।।९।। (आत्मानी) अचळ स्थिति छे, कारण के अनंतानंत धीशक्तिना स्वभावना कारणे ते अचल स्थितिवाळो छे. जे योग अने सांख्यमतवाळाओए, मुक्तिना विषयमां आत्मानी तेनाथी (मुक्तिथी) प्रच्युतिनो (पतननो) संभव मान्यो छे, तेना संबंधी (खंडनरूपे) प्रमेयकमलमार्तण्ड अने न्यायकुमुदचन्द्रमां मोक्षविचार – प्रसंगे विस्तारथी कहेवामां आव्युं छे.
भावार्थ : नरनारकादि जे पर्यायोने जीव धारण करे छे ते पर्यायोरूप अज्ञानी पोताने माने छे. वास्तवमां जीव ते पर्यायोरूप नथी, पण ते स्वानुभवगम्य, शाश्वत अने अनंतानंतज्ञान – वीर्यमय छे. मुक्त – अवस्थामां (मोक्षमां) तेनी स्थिति अचल छे; त्यांथी (मुक्तिथी) तेनुं कदी पण पतन थतुं नथी – अर्थात् जीव मुक्त थया पछी कदी फरीथी संसारमां आवतो नथी. योग अने सांख्यमतवाळानी मान्यता तेनाथी विपरीत छे.
बहिरात्मा नरनारकादि पर्यायोने ज पोतानी साची अवस्था माने छे. आत्मानुं वास्तविक स्वरूप तेनाथी भिन्न, कर्मोपाधिरहित, शुद्ध, चैतन्यमय, टंकोत्कीर्ण एक ज्ञाता – द्रष्टा छे, अभेद्य छे, अनंतज्ञान तथा अनंतवीर्यथी युक्त छे अने अचलस्थितिरूप छे – आवुं भेदज्ञान (विवेकज्ञान) तेने होतुं नथी, तेथी ते संसारना पर पदार्थोमां तथा मनुष्यादि पर्यायोमां आत्मबुद्धि करे छे – तेने आत्मा माने छे.
जीव जे जे गतिमां जाय छे ते ते गतिने अनुरूप जुदो जुदो स्वांग (वेष) धारण करे छे. आ स्वांग अचेतन छे, जड छे अने क्षणिक छे. ते वेषने धारण करनार जीव, तेनाथी भिन्न, शाश्वत, ज्ञानस्वरूप चेतन द्रव्य छे. अज्ञानीने पोताना वास्तविक स्वरूपनुं भान नथी, तेथी ते बाह्य वेषने ज जीव मानी ते प्रमाणे वर्ताव करे छे.
‘‘.......अमूर्तिक प्रदेशोनो पुंज प्रसिद्ध ज्ञानादि गुणोनो धारक अनादिनिधन वस्तु पोते (आत्मा) छे, तथा मूर्तिक पुद्गल द्रव्योनो पिंड प्रसिद्ध ज्ञानादिरहित नवीन ज जेनो संयोग थयो छे एवां शरीरादि पुद्गल के जे पोतानाथी पर छे – ए बन्नेना संयोगरूप नाना प्रकारना मनुष्य – तिर्यंचादि पर्यायो होय छे ते पर्यायोमां आ मूढ जीव अहंबुद्धि धारी रह्यो छे, स्वपरनो भेद करी शकतो नथी. जे पर्याय पाम्यो होय तेनेज पोतापणे माने छे; तथा ए पर्यायमां पण जे ज्ञानादि गुणो छे ते तो पोताना गुण छे अने रागादिक छे ते पोताने