Samadhitantra-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 10.

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२८समाधितंत्र

स्वदेहे एवमध्यवसायं कुर्वाणो बहिरात्मा परदेहे कथंभूतं करोतीत्याह
स्वदेहसदृशं दृष्ट्वा परदेहमचेतनम्
परात्माधिष्ठितं मूढः परत्वेनाध्यवस्यति ।।१०।।

टीकाव्यापारव्याहाराकारादीना स्वदेहसदृशं परदेहं दृष्ट्वा कथंम्भूतं ? परात्मनाधिष्ठितं कर्मवशात्स्वीकृतं अचेतनं चेतनेन संगतं मूढो बहिरात्मा परत्वेन परात्मत्वेन अध्यवस्यति ।।१०।। कर्मनिमित्तथी औपाधिकभाव छे; वळी वर्णादिक छे ते पोताना गुणो नथी पण शरीरादि पुद्गलना गुणो छे; शरीरादिमां पण वर्णादिनुं वा परमाणुनुं पलटावुं नाना प्रकाररूप थया करे छे. ए सर्व पुद्गलनी अवस्थाओ छे, परंतु ते सर्वने आ जीव पोतानुं स्वरूप जाणे छे. तेने स्वभावपरभावनो विवेक थई शकतो नथी.’’

स्वदेहमां आवो अध्यवसाय करनार बहिरात्मा परदेहमां केवो अध्यवसाय करे छे, ते कहे छे

श्लोक १०

अन्वयार्थ : (मूढः) अज्ञानी बहिरात्मा, (परमात्माधिष्ठितं) बीजाना आत्मा साथे रहेला (अचेतनं) अचेतनचेतनारहित (परदेहं) बीजाना शरीरने, (स्वदेहसदृशं) पोताना शरीर समान (दृष्ट्वा) जोईने (परत्वेन) बीजाना आत्मारूपे (अध्यवस्यति) माने छे.

टीका : व्यापार, व्याहार (वाणी, वचन) आकारादिवडे परदेहने पोताना देह समान जोईनेकेवो (जोईने)? कर्मवशात् बीजाना आत्माथी अधिष्ठितस्वीकृत अचेतन (परना देहने) चेतनायुक्त जोईने बहिरात्मा तेने (देहने) परपणारूपअर्थात् परना आत्मारूपे माने छे.

णियदेहसरिच्छं पिच्छिऊ ण परविग्गहं पयत्तेण
अच्चेयणं पि गहियं झाइज्जइ परमभावेण ।।।।मोक्षप्राभृते, कुन्दकुन्दाचार्यः
स्वशरीरमिवान्विध्य पराङ्गच्युतचेतनम्
परमात्मानमज्ञानी परबुद्धयाऽध्यवस्यति ।।३२१५।।ज्ञानार्णवे, शुभचन्द्रः

१. मोक्षमार्गप्रकाशक गु. आवृत्तिपृ. ४२.

निज शरीर सम देखीने परजीवयुक्त शरीर,
माने तेने आतमा, बहिरातम मूढ जीव. १०.