Samadhitantra-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 11.

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समाधितंत्र२९
एवंविधाध्यवसायात्किं भवीत्याह
स्वपराध्यवसायेन देहेष्वविदितात्मनाम्
वर्तते विभ्रमः पुंसां पुत्रभार्यादिगोचरः ।।११।।

टीकाविभ्रमो विपर्यासः पुंसां वर्तते ? किं विशिष्टानां ? अविदितात्मनां अपरिज्ञातात्मस्वरूपाणां केन कृत्वाऽसौ वर्तते ? स्वपराध्यवसायेन क्व ? देहेषु कथम्भूतो

भावार्थ : अज्ञानी बहिरात्मा, जेवी रीते पोताना शरीरने पोतानो आत्मा माने छे तेवी रीते बीजाना (स्त्रीपुत्रमित्रादिकना) अचेतन शरीरने तेमनो (स्त्रीपुत्रमित्रादिकनो आत्मा) माने छे.

विशेष

जेम पोताना शरीरनो नाश थतां, बहिरात्मा पोतानो नाश समजे छे, तेम स्त्री पुत्रमित्रादिना शरीरनो नाश थतां ते तेमना आत्मानो नाश समजे छे. एम ते पोताना शरीरमां आत्मबुद्धिआत्मकल्पनाकरी दुःखी थाय छे, अने बीजाओ पण शरीरनी प्रतिकूळताना कारणे दुःखी थाय छे एम माने छे. १०.

एवा प्रकारना अध्यवसायथी शुं थाय छे ते कहे छे

श्लोक ११

अन्वयार्थ : (अविदितात्मनां पुंसां) आत्माना स्वरूपथी अज्ञान पुरुषोने, (देहेषु) (स्वपराध्यवसायेन) पोतानी अने परनी आत्मबुद्धिना कारणे (पुत्रभार्यादिगोचरः) पुत्रस्त्रीआदिकना विषयमां (विभ्रमः वर्तते) विभ्रम वर्ते छे.

टीका : पुरुषोने विभ्रम अर्थात् विपर्यास (मिथ्याज्ञान) वर्ते छे. केवा पुरुषोने? आत्माथी अजाणआत्मस्वरूपने नहि जाणनारापुरुषोने. शाथी करीने ते (विभ्रम) वर्ते छे? स्वपरना अध्यसायथी. (विभ्रम) क्यां थाय छे? शरीरो विषे. केवो विभ्रम थाय छे? पुत्र

सपरज्झवसाएणं देहेसु य अविदिदत्थमप्पाणं
सुयदाराईविसए मणुयाणं वड्ढए मोहो ।।१०।।मोक्षप्राभृते, कुन्दकुन्दाचार्यः
विभ्रम पुत्र-रमादिगत आत्म-अज्ञने थाय.
देहोमां छे जेहने आतम-अध्यवसाय. ११.