३०समाधितंत्र विभ्रमः ? पुत्रभार्यादिगोचरः परमार्थतोऽनात्मीयमनुपकारकमपि पुत्रभार्याधनधान्यादिकमात्मीयमुपकारकं च मन्यते । तत्सम्पत्तौ संतोषं तद्वियोगे च महासन्तापमात्मवधादिकं च करोति ।।११।। भार्यादि विषयक (विभ्रम थाय छे.) – परमार्थे (वास्तवमां) पुत्र, स्त्री, धन, धान्यादि आत्मीय (पोतानां) तेमज उपकारक नहि होवा छतां, ते (विभ्रमित पुरुष) तेमने आत्मीय तथा उपकारक माने छे, तेमनी संपत्तिमां (आबादीमां) ते संतोष तथा तेना वियोगमां महासंताप अने आत्मवधादिक करे छे.
भावार्थ : जे पुरुषोने आत्मस्वरूपनुं यथार्थ ज्ञान नथी, तेओ पोताना शरीरमां पोताना आत्मानी अने परना शरीरमां परना आत्मानी कल्पना करी, स्त्री – पुत्रादिकना विषयमां विभ्रान्त रहे छे – अर्थात् पोताना शरीरनी साथे स्त्री – पुत्रादिकना शरीर – संबंधने ज पोताना आत्मानो संबंध माने छे.
बहिरात्मा स्त्री – पुत्र – मित्रादि अनात्मीय अर्थात् पर होवा छतां तेमने आत्मीय माने छे अने पोताने अनुपकारक होवा छतां तेमने उपकारक मानी तेमनी रक्षानो प्रयत्न करे छे, तेना संयोगादिमां सुखी थाय छे अने तेमना वियोगादिमां महासंताप माने छे अने आत्मवध पण करे छे.
‘‘........शरीरनो संयोग थवा अने छूटवानी अपेक्षाए जन्म – मरण होय छे तेने पोतानां जन्म – मरण मानी ‘‘हुं ऊपज्यो, हुं मरीश’’ एम माने छे. वळी शरीरनी ज अपेक्षाए अन्य जीवोथी संबंध माने छे, जेमके जेनाथी शरीर नीपज्युं तेने पोतानां माता – पिता माने छे, शरीरने रमाडे तेने पोतानी रमणी माने छे, शरीरवडे नीपज्यां तेने पोतानां दीकरा – दीकरी माने छे, शरीरने जे उपकारक छे तेने पोतानो मित्र माने छे तथा शरीरनुं बूरुं करे तेने पोतानो शत्रु माने छे, इत्यादिरूप तेनी मान्यता होय छे. घणुं शुं कहीए? हरकोई प्रकारवडे पोताने अने शरीरने ते एकरूप ज माने छे.......’’१
‘‘........वळी जेम कोई बहावरो बेठो हतो त्यां कोई अन्य ठेकाणेथी माणस, घोडा अने धनादिक आवी ऊतर्यां; ते सर्वने आ बहावरो पोतानां जाणवा लाग्यो, पण ए बधां पोतपोताने आधीन होवाथी तेमां कोई आवे, कोई जाय अने कोई अनेक अवस्थारूप परिणमे – एम ए सर्वनी पराधीन क्रिया थवा छतां आ बहावरो तेने पोताने आधीन जाणी महा खेदखिन्न थाय छे. ए प्रमाणे आ जीव ज्यां पर्याय (शरीर) धारण करे छे त्यां कोई अन्य ठेकाणेथी पुत्र, घोडा अने धनादिक आवीने स्वयं प्राप्त थाय छे तेने आ जीव पोतानां १. मोक्षमार्ग प्रकाशक गु. आवृत्ति – पृ. ८३.