Samadhitantra-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 14.

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३४समाधितंत्र

देहेष्वात्मानं योजयतश्च बहिरात्मनो दुर्विलसितोपदर्शनपूर्वकमाचार्योऽनुशयं कुर्वन्नाह
देहेष्वात्मधिया जाताः पुत्रभार्यादिकल्पनाः
सम्पत्तिमात्मनस्ताभि र्मन्यते हा हतं जगत् ।।१४।।

टीकाजाताः प्रवृत्ताः काः ? पुत्रभार्यादिकल्पनाः क्व ? देहेषु कया ? आत्मधिया क्व आत्मधीः ? देहेष्वेव अयमर्थःपुत्रादिदेहं जीवत्वेन प्रतिपद्यमानस्य मत्पुत्रो भार्येतिकल्पना विकल्पा जायन्ते ताभिश्चानात्मनीयाभिरनुपकारिणीभिश्च सम्पत्तिं पुत्रभार्यादिविभूत्यतिशयं आत्मानो मन्यते जगत्कर्तृ हा हतं नष्टं स्वस्वरूपपरिज्ञानाद् बहिर्भूतं जगत् बहिरात्मा प्राणिगणः ।।१४।।

शरीरोमां आत्मानो संबंध जोडनार बहिरात्माना निन्दनीय व्यापारने बतावीने आचार्य खेद प्रगट करतां कहे छेः

श्लोक १४

अन्वयार्थ : (देहेषु) शरीरोमां (आत्मधिया) आत्मबुद्धिना कारणे (पुत्रभार्यादि- कल्पनाः जाताः) मारो पुत्र, मारी स्त्री, इत्यादि कल्पनाओ उत्पन्न थाय छे. (हा) खेद छे के (जगत्) बहिरात्मस्वरूप प्राणिगण (ताभिः) ए कल्पनाओना कारणे (सम्पत्तिम्) स्त्री पुत्रादिनी समृद्धिने (आत्मनः) पोतानी समृद्धि (मन्यते) माने छे. एवी रीते आ जगत् (हतं) हणाई रह्युं छे.

टीका : उत्पन्न थईप्रवर्ती. शुं (प्रवर्ती)? पुत्रस्त्री आदि संबंधी कल्पनाओ. शाने विषे? शरीरो विषे. कया कारणे? आत्मबुद्धिना कारणे. शामां आत्मबुद्धि? शरीरोमां ज. अर्थ ए छे केपुत्र वगेरेना देहने जीवरूपे माननारने, ‘मारो पुत्र, स्त्रीएवी कल्पनाओ विकल्पो थाय छे. अनात्मरूप अने अनुपकारक एवी ते कल्पनाओथी पुत्रभार्यादिरूप विभूतिना अतिशय स्वरूप संपत्तिने जगत् पोतानी माने छे. अरे! स्वस्वरूपना परिज्ञानथी बहिर्भूत (रहित) बहिरात्मारूप जगत्प्राणिगणहणाई रह्युं छे.

भावार्थ : देहमां आत्मबुद्धिना कारणे आत्मस्वरूपना ज्ञानथी रहित बहिरात्माओ, स्त्रीपुत्रादि संबंधोमां मारापणानी कल्पनाओ करे छे अने तेमनी समृद्धिने पोतानी समृद्धि माने छे. आम आ जगत् हणाई रह्युं छेए खेदनी वात छे.

देहे आतमबुद्धिथी सुत-दारा कल्पाय;
ते सौ निज संपत गणी, हा! आ जगत हणाय. १४.