Samadhitantra-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 18.

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समाधितंत्र४१
यन्मया दृश्यते रूपं तन्न जानाति सर्वथा
जानन्न दृश्यते रूपं ततः केन ब्रवीम्यहम् ।।१८।।

टीकारूपं शरीरादिरूपं यद् दृश्यते इन्द्रियैः परिच्छिद्यते मया तदचेतनत्वात् उक्तमपि वचनं सर्वथा न जानाति जानता च समं वचनव्यवहारो युक्तो नान्येनातिप्रसङ्गात् यच्च जानद् रूपं चेतनमास्वरूपं तन्न दृश्यते इन्द्रियैर्न परिच्छिद्यते तत एवं ततः केन सह ब्रवीम्यहम् ।।१८।।

श्लोक १८

अन्वयार्थ : (मया) मारावडे (यत् रूपं) जे रूपशरीरादिरूपी पदार्थ (दृश्यते) देखाय छे (तत्) तेअचेतन पदार्थ (सर्वथा) सर्वथा (न जानाति) कोईने जाणतो नथी अने (जानत् रूपं) जे जाणवावाळो चैतन्यरूप आत्मा छे ते (न दृश्यते) देखातो नथी. (ततः) तो (अहं) हुं (केन) कोनी साथे (बव्रीमि) बोलुंवातचीत करुं?

टीका : रूप एटले शरीरादिरूप जे देखाय छे अर्थात् इन्द्रियो द्वारा माराथी जणाय छे, ते अचेतन (जड) होवाथी (मारा) बोलेला वचनने पण सर्वथा जाणतुं नथी; जे जाणतो होय (समजतो होय) तेनी साथे वचनव्यवहार योग्य छे; बीजानी साथे (वचनव्यवहार) योग्य नथी कारण के अति प्रसंग आवे छे, अने जे रूप अर्थात् चेतनआत्मस्वरूपजाणे छे ते तो इन्द्रियोद्वारा देखातुं नथीजणातुं नथी; जो एम छे तो हुं कोनी साथे बोलुं?

भावार्थ : जे शरीरादिरूपी पदार्थो इन्द्रियोथी देखाय छे ते अचेतन होवाथी बोलेलुं वचन सर्वथा जाणता नथीसमजता नथी अने जेनामां जाणवानी शक्ति छे ते चैतन्यस्वरूप आत्मा अरूपी होवाथी इन्द्रियोद्वारा देखातो नथी; तेथी अंतरात्मा विचारे छे के ‘कोईनी साथे बोलवुं या वचनव्यवहारनी प्रवृत्ति करवी ते निरर्थक छे, कारण जे परनुं जाणवावाळुं चैतन्यद्रव्य छे ते तो मने देखातुं नथी अने इन्द्रियोद्वारा जे रूपी शरीरादिक जड पदार्थो देखाय छे ते चेतनारहित होवाथी कांई पण जाणता नथी; तो हुं कोनी साथे वात करुं? कोईनी पण साथे वातचीत करवानुं बनतुं नथी, माटे हवे तो मारे मारा स्वरूपमां रहेवुं

जं मया दिस्सदे रूवं तं ण जाणादि सव्वहा
जाणगं दिस्सदे णेव तम्हा जँपेमि केण हं ।।२९।।(मोक्षप्राभृतेश्रीकुन्दकुन्दाचार्यः)
रूप मने देखाय जे, समजे नहि कंई वात;
समजे ते देखाय नहि, बोलुं कोनी साथ? १८.