४२समाधितंत्र
ए योग्य छे, परंतु बोलवानो विकल्प (राग) करवो ते योग्य नथी.’’
आ श्लोकमां आचार्ये विभाव – भावरूप बाह्य विकल्प – जाळथी छूटवा माटे एक उत्तम उपाय दर्शाव्यो छे.
कोईनी साथे बोलवुं ए व्यवहार कथन छे. निश्चयनयनी द्रष्टिए कोई जीव बोली शकतो ज नथी. जे वाणी नीकळे छे ते भाषावर्गणारूप पुद्गलोनुं वचनरूप परिणमन छे. ते आत्मानुं कार्य नथी. ते कार्यमां अज्ञान दशामां जीवनो बोलवानो विकल्प (इच्छा) निमित्तमात्र छे. विकल्प अने वाणी ए बंनेमां निमित्त – नैमित्तिक संबंध छे. विकल्पना कारणे वाणी नीकळे छे एम नथी अने वाणी नीकळी एटले विकल्प थयो एम पण नथी. अज्ञानीने आ वातनी समजण नथी, तेथी ते एम माने छे के, ‘में बोलवानी इच्छा करी एटले वाणी नीकळी,’ परंतु तात्त्विक द्रष्टिए विचारतां ए सत्य नथी. भाषावर्गणानुं वाणीरूपे परिणमन तेना कारणे छे, स्वतंत्र छे; इच्छाथी ते निरपेक्ष छे; छतां ‘हुं बोलुं छुं’ एम मानवामां ते जीव अने अजीव तत्त्वोनी एकता – बुद्धि करे छे. आवी ऊंधी मान्यताने लीधे तेने अनंत संसारना कारणभूत अनंतानुबंधी कषाय थया वगर रहेतो नथी.
ज्ञानीने अस्थिरताना कारणे बोलवानो विकल्प आवे, पण स्वभावनी द्रष्टिए तेना अभिप्रायमां ते विकल्पनो तेने निषेध वर्ते छे, कारण के ते जाणे छे के विकल्प ए राग छे, ते आत्मानुं स्वरूप नथी, ते तेनाथी भिन्न छे.
माटे कोईनी साथे वात करवानो विकल्प करवो ते दोष छे. आवी समजणपूर्वक जे स्वरूपमां लीनतारूप मौन सेवे छे तेने ज साची वचन – गुप्ति छे. आवी वचन – गुप्तिथी अंतर्बाह्य वचनप्रवृत्तिनो स्वयं नाश थाय छे. १८.
एवी रीते बाह्य विकल्पोनो परित्याग करीने आभ्यन्तर विकल्पोने छोडावतां कहे छेः —