Samadhitantra-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 22.

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४८समाधितंत्र

साम्प्रतं तु तत्परिज्ञाने सति कीदृशं मे चेष्टितमित्याह
यथाऽसौ चेष्टते स्थाणौ निवृत्ते पुरुषाग्रहे
तथाचेष्टोऽस्मि देहादौ विनिवृत्तात्मविभ्रमः ।।२२।।

टीकाअसौ उत्पन्नपुरुषभ्रान्तिः पुरुषाग्रहे पुरुषाभिनिवेशे निवृत्ते विनष्टे सति यथा येन पुरुषाभिनिवेशजनितोपकारापकाराद्युद्यमपरित्यागप्रकारेण चेष्टते प्रवर्तते तथाचेष्टोऽस्मि तथा तदुद्यमपरित्यागप्रकारेण चेष्टा यस्यासौ तथाचेष्टोऽस्मि भवाम्यहम् क्व ? देहादौ किं विशिष्टः ? विनिवृत्तात्मविभ्रमः विशेषेण निवृत्त आत्मविभ्रमो यस्य क्व ? देहादौ ।।२२।।

वर्तमानमां तेनुं (आत्मानुं) परिज्ञान थतां मारी केवी चेष्टा थई गई ते कहे छेः

श्लोक २२

अन्वयार्थ : (स्थाणौ) वृक्षना ठूंठामां (निवृत्ते पुरुषाग्रहे) ‘आ पुरुष छे’ एवी भ्रान्ति दूर थतां, (यथा)। जेवी रीते (असौ) ते (पूर्वे भ्रान्तिवाळो मनुष्य) (चेष्टते) चेष्टा करे छे अर्थात् तेनाथी उपकारादिनी कल्पनानो त्याग करे छे, (देहादौ) शरीरादिमां (विनिवृत्तात्मविभ्रमः) जेनो आत्मविभ्रम दूर थयो छे तेवो हुं (तथा चेष्टः अस्मि) तेवी रीते चेष्टा करुं छुं.

टीका : (ठूंठामां) पुरुषाग्रह अर्थात् पुरुषाभिनिवेश निवृत्त थतांनाश पामतां, जेने (ठूंठामां) पुरुषनी भ्रान्ति थई गई हती ते (मनुष्य). जेवी रीते पुरुषाभिनिवेशजनित उपकारअपकारादिथी ते प्रवृत्तिनो परित्याग करवारूप चेष्टा करे छेप्रवर्ते छे तेवी रीते में चेष्टा करी छेअर्थात् ते प्रवृत्तिना परित्याग अनुरूप जेने जेवी रीते चेष्टा थाय तेवी चेष्टावाळो हुं बनी गयो छुं.

क्यां (क्या विषयमां)? देहादिमां. केवो (थयो छुं)? जेनो आत्मविभ्रम विनिवृत्त थयो छे तेवोअर्थात् जेनो आत्मविभ्रम विशेष करी निवृत्त थयो छे तेवोथयो छुं. क्यां (क्या विषयमां)? देहादिमां.

भावार्थ : ज्यारे माणस ठूंठाने ठूंठुं समजे छे, त्यारे पहेलां तेमां पुरुषनी कल्पना

स्थाणु विषे विभ्रम जतां थाय सुचेष्टा जेम;
भ्रान्ति जतां देहादिमां थयुं प्रवर्तन तेम. २२.