Samadhitantra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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५०समाधितंत्र

टीकायेनात्मना चैतन्यस्वरूपेण इत्थंभावे तृतीया अहमनुभूये केन कर्त्रा ? आत्मनैव अनन्येन केन करणभूतेन ? आत्मना स्वसंवेदस्वभावेन क्व ? आत्मनि स्वस्वरूपे सोऽहं इत्थंभूतस्वरूपोऽहं न तत् न नपुंसकं न सा न स्त्री नासौ न पुमान् अहं तथा नैको न द्वौ न वा बहुरहं स्त्रीत्वादिधर्माणां कर्मोत्पादितदेहस्वरूपत्वात् ।।२३।। आत्माने पोते (अनुभूये) अनुभवुं छुं. (सः) तेशुद्धात्मस्वरूप (अहं) हुं (न तत्) न तो नपुंसक छुं, (न सा) न स्त्री छुं, (न असौ) न पुरुष छुं; (न एकः) न एक छुं (न द्वै) न बे छुं, (वा) अथवा (न बहुः) न बहु छुं.

टीका : जे आत्मा वडेचैतन्य स्वरूप वडे हुं अनुभवमां आवुं छुंकोनाथी? आत्माथी जबीजा कोईथी नहि, कया करण (साधन) द्वारा? आत्माद्वारास्वसंवेदन स्वभाव द्वारा, क्यां? आत्मामांस्वस्वरूपमां, ते हुं छुंएवा स्वरूपवाळो छुं. न तो हुं नपुंसक छुं, न स्त्री छुं, न पुरुष छुं; तथा न हुं एक छुं, न बे छुं के न हुं बहु छुं; कारण के स्त्रीत्वादि धर्मो छे ते तो कर्मोपादित देहस्वरूपवाळा छे.

भावार्थ : हुं स्वसंवेदनज्ञानद्वारा पोते ज मारा आत्मस्वरूपने मारा आत्मामां अनुभवुं छुंअर्थात् हुं चैतन्यस्वरूप स्वसंवेदनगम्य छुं. तेमां स्त्रीपुरुषादि लिंगनो तथा एक, बे, वगेरे संख्याना विकल्पोनो अभाव छे.

अन्तरात्मा विचारे छे के जीवमां स्त्रीपुरुषादिनो व्यवहार केवळ शरीरने लीधे छे. एक, बे अने बहुवचननो व्यवहार पण शरीराश्रित छे. ज्यारे शरीर मारुं रूप ज नथी अने मारुं शुद्धस्वरूप निर्विकल्प छे, त्यारे मारामां लिंगभेद अने वचनभेदना विकल्पो केवी रीते घटी शके? आ स्त्रीत्वादि धर्मो तो कर्मोपादित देहनुं स्वरूप छे, मारुं स्वरूप नथी. मारुं चैतन्यस्वरूप तो ते बधांथी पर छे.

विशेष

आत्मा शुद्ध आनंदस्वभावी छे, एक छेएवो रागमिश्रित विचार पण स्वभावमां नथी. गुणगुणी तरीके बे छे ने ज्ञानदर्शनना उपयोगे बे छेएवो भेद स्वरूपमां नथी.

आत्मानुं शुद्ध स्वरूप अभेद, गुणगुणीना भेद विनानुं छे. तेमां लिंगभेद, वचन भेद, विकल्पभेदादि कंई नथी.

अहीं आचार्यनुं लक्ष अभेदअखंड आत्माना स्वरूप उपर छे; तेथी तेमणे कह्युं छे के, वास्तवमां आत्माने स्त्री, पुरुष, नपुंसकादि अवस्थाओ नथी, गुणोना भेदरूप अने कारकोना भेदरूप कल्पना नथी.