Samadhitantra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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६०समाधितंत्र

टीकासंयम्य स्वविषये गच्छन्ति निरुध्य कानि ? सर्वेन्द्रियाणि पञ्चापीन्द्रियाणि तदनन्तरं स्तिमिते स्थिरीभूतेन अन्तरात्मना मनसा यत्स्वरूपं भाति किं कुर्वतः ? क्षणं पश्यतः क्षणमात्रमनुभवतः बहुतरकालं मनसा स्थिरीकर्तुमशक्यत्वात् स्तोककालं मनोनिरोधं कृत्वा पश्यतो यच्चिदानन्दस्वरूपं प्रतिभाति तत्तत्त्वं तद्रूपं तत्त्वं स्वरूपं परमात्मनः ।।३०।।

कस्मिन्नाराधिते तत्स्वरूपप्राप्तिर्भविष्यतीत्याशङ्कयाह

श्लोक ३०

अन्वयार्थ : (सर्वेन्द्रियाणि) सर्व इन्द्रियोने (संयम्य) रोकीने (स्तिमितेन) स्थिर थयेला (अन्तरात्माना) अन्तरात्मा द्वारा (क्षणं प्रपश्यतः) क्षण मात्र जोनारनेअनुभव करनार जीवने (यत्) जेचिदानंदस्वरूप (भाति) प्रतिभासे छे (तत्) ते (परमात्मनः तत्त्वम्) परमात्मानुं स्वरूप छे.

टीका : पोतपोताना विषयोमां जतीप्रवर्ततीकोण (प्रवर्तती)? सर्व इन्द्रियो, एटले पांचे इन्द्रियो, तेने रोकीनेनिरोधीने, त्यारबाद स्थिर थएला अन्तरात्मा वडे एटले मन वडे जे स्वरूप भासे छे, शुं करतां? क्षण वार जोतांक्षणमात्र अनुभवतांअर्थात् बहु काल सुधी मनने स्थिर करवुं अशक्य होवाथी थोडा कलाक सुधी मननो निरोध करीने देखतां जे चिदानंदस्वरूप प्रतिभासे छे, ते परमात्मानुं तत्त्वतद्रूप तत्त्वस्वरूप छे.

भावार्थ : सर्व इन्द्रियोना विषयोमां भमतीप्रवर्तती चित्तवृत्तिने रोकीने अर्थात् अन्तर्जल्पादि संकल्पविकल्पोथी रहित थईने, उपयोगने पोताना चिदानंद स्वरूपमां स्थिर करवो. ते आत्मस्वरूपमां स्थिर थतां परमात्मस्वरूपनो प्रतिभास थाय छे.

पांच इन्द्रियोना विषयो तरफनुं वलण छोडी अने मनना संकल्पविकल्पो तोडी ज्ञानानंद स्वभावमां एकाग्र थवुंस्थिर थवुं ते परमात्मप्राप्तिनो उपाय छे.

विशेष

आत्मा अतीन्द्रिय सुखनो भंडार छे एवी द्रष्टि थतां रागनीविकारनी रुचि तथा इन्द्रियोना विषयो तरफनी प्रवृत्ति अटकी जाय छे. पर तरफनी वृत्ति रोकाई जतां, उपयोग आत्मस्वरूपमां स्थिर थाय छे, अने आत्माना आनंदकंदनो अनुभव थाय छे. आ सम्यग्दर्शन छे ने ते ज समाधि छे. ते वडे ज परमात्मपद पमाय छे. ३०.

कोनी आराधना करवाथी ते स्वरूपनी प्राप्ति थाय? एवी आशंका करी कहे छेः