Samadhitantra-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 31.

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समाधितंत्र६१
यः परमात्मा स एवाऽहं योऽहं स परमस्ततः
अहमेव मयोपास्यो नान्यः कश्चिदितिस्थितिः ।।३१।।

टीकायः प्रसिद्धः पर उत्कृष्ट आत्मा स एवाहं योऽहं यः स्वसंवेदनेन प्रसिद्धोऽलमन्तरात्मा स परमः परमात्मा ततो यतो मया सह परमात्मनोऽभेदस्ततोऽहमेव मया उपास्य आराध्यः नान्यः कश्चिन्मयोपास्य इति स्थितिः एवं स्वरूप एवाराध्याराधकभाव- व्यवस्था ।।३१।।

श्लोक ३१

अन्वयार्थ :(यः) जे (परमात्मा) परमात्मा छे (सः एव) ते ज (अहं) हुं छुं, तथा (यः) जे (अहं) हुं छुं (सः) ते (परमः) परमात्मा छे; (ततः) तेथी (अहं एव) हुं (मया) मारा वडे (उपास्यः) उपासवा योग्य छुं, (कः चित् अन्यः न) बीजो कोई (उपास्य) नथी, (इति स्थितिः) एवी वस्तुस्थिति छे.

टीका : जे प्रसिद्ध पर एटले उत्कृष्ट आत्मा छे ते ज हुं छुं. जे हुंअर्थात् जे स्वसंवेदनथी प्रसिद्ध हुं अंतरात्माते परम एटले परमात्मा छे. मारी साथे परमात्मानो अभेद छे, तेथी हुं ज मारा वडे उपासना करवा योग्यआराधवा योग्य छुं, बीजो कोई मारा वडे उपासवा योग्य नथी. एवी स्थिति छेअर्थात् एवुं स्वरूप ज छेएवी आराध्य आराधकनी व्यवस्था छे.

भावार्थ : अंतरात्मा विचारे छे के, ‘‘मारो अंतरात्मा स्वसंवेदनथी प्रसिद्ध छे. वास्तवमां ते अरिहंत अने सिद्ध समान छे अर्थात् परमात्मा छे. तेनी अभेदपणे उपासना करवाथी हुं पोते ज परमात्मा थई शकुं तेम छुं. माटे हुं ज (मारो शुद्धात्मा ज) मारे पोताने उपास्य छुं; बीजो कोई उपासना करवा योग्य नथी. हुं पोते ज उपास्य अने उपासक छुं.’

विशेष

‘‘खरेखर अर्हंतने द्रव्यपणे, गुणपणे अने पर्यायपणे जाणे छे ते खरेखर आत्माने जाणे छे, कारण के बन्नेमां निश्चयथी तफावत नथी.’’ १. जे जाणतो अर्हंतने गुण, द्रव्य ने पर्ययपणे,

ते जीव जाणे आत्मने, तसु मोह पामे लय खरे. (८०) (जुओः टीकाश्री प्रव.सार, गु. आवृत्ति - गा.८०)
जे परमात्मा ते ज हुं, जे हुं ते परमात्म;
हुं ज सेव्य मारा वडे, अन्य सेव्य नहि जाण. ३१.