Samadhitantra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समाधितंत्र६३

आत्मस्वरूप एव स्थितम् कथम्भूतं मां ? बोधात्मानं ज्ञानस्वरूपम् पुनरपि कथम्भूतम् ? परमानन्दनिर्वृतं परमश्चासावानन्दश्च सुखं तेन निर्वृतं सुखीभूतम् अथवा परमानन्दनिर्वृतोऽहम् ।।३२।।

एवमात्मानं शरीराद्भिन्नं यो न जानाति तं प्रत्याह (साधन)रूप आत्मस्वरूप वडे ज; क्यां रहेला एवा मने हुं प्राप्त थयो छुं? मारामां रहेलाने अर्थात् आत्मस्वरूमां ज रहेलाने. केवा मने? बोधात्माने एटले ज्ञानस्वरूपने. वळी केवा मने? परम आनंदथी निर्वृत्त (रचायेला)नेपरम आनंद एटले सुख, तेनाथी निर्वृत्त (रचायेला)सुख थयेलाने (एवा मने एटले आत्माने प्राप्त थयो छुं); अथवा, हुं परम आनंदथी निर्वृत्त (परिपूर्ण) छुं.

भावार्थ : बाह्य इन्द्रियोना विषयोथी मारा आत्माने छोडावीने मारामां रहेला परम आनंदथी परिपूर्ण ज्ञानस्वरूप आत्माने, हुं मारा ज पुरुषार्थथी पाम्यो छुं.

विशेष

आ श्लोकमां ‘मया एव’ अने ‘मयि स्थितं’ए शब्दो बहु अर्थसूचक छे ते बतावे छे के परमात्मपद मारामांआत्मामां छे, बीजे बहार कोई ठेकाणे नथी अने ते पद हुं आत्म सन्मुख थईने पुरुषार्थ करुं तो ज प्राप्त थाय, बीजा कोई बाह्य साधनथी के कोईनी कृपाथी ते प्राप्त थाय नहि. परमात्मपदनी प्राप्ति माटे ते स्वावलंबननुं ग्रहण अने परावलंबननो त्याग सूचवे छे.

वळी आचार्ये दर्शाव्युं छे के आत्मस्वरूपनी प्राप्ति में मारा आत्मबळ वडे ज करी छे. एम पोतानो आत्मवैभव बतावी मुमुक्षु जीवोने प्रेरणा करी छे के, ‘तमे पण स्वतः एटले पोताना आत्मसामर्थ्यथी ज परम पदनी प्राप्ति करो.’

आत्मा अने परपदार्थोने (इन्द्रियोना विषयोने) भिन्न करवामां अने आत्माने ग्रहण करवामां करण (साधन) जुदां नथी; प्रज्ञे एक ज करण छे, ते वडे ज आत्माने भिन्न कराय छे अने ते वडे ज तेने ग्रहण कराय छे.

अहीं साध्य साधन एक ज छे ‘भिन्न भिन्न नथी’एम बताव्युं छे. ३२.

एवी रीते आत्माने शरीरथी भिन्न जे जाणतो नथी तेना प्रति कहे छेः १. जुओः श्री समयसार गु. आवृत्तिगाथा २९४, २९६

‘प्रज्ञा छीणी थकी छेदतां, बन्ने जुदा पडी जाय छे.’ (२९४)
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‘प्रज्ञाथी जेम जुदो कर्यो, त्यम ग्रहण पण प्रज्ञा वडे.’ (२९६)