७८समाधितंत्र
तच्च कुर्वाणो बहिरात्मा अन्तरात्मा च किं करोतीत्याह — कारण छे. शरीरादिथी भिन्न आत्मस्वरूपनो अनुभव करवाथी – स्वपरनुं भेदज्ञान करवाथी अर्थात् देहादिथी अने शुभभावथी पण भिन्न ज्ञान – दर्शन स्वरूप ज हुं छुं, बीजुं कांई मारुं नथी – एवा आत्मज्ञानथी आ दुःखरूप भ्रान्ति दूर थाय छे. आवा भेदविज्ञानना प्रयत्न वगर घोर तप करे तो पण जीव साचो धर्म पामतो नथी.
मुक्ति – प्राप्ति माटे आत्मज्ञानपूर्वक करेलुं इच्छानिरोधरूप तप ज कार्यकारी छे. आत्मज्ञानथी शून्य तप ते तप नथी. ते तो संसार – परिभ्रमणनुं ज कारण छे. तेनाथी आत्मा कदी पण स्वरूपमां स्थिर थई शकतो नथी अने कर्मबंधनथी छूटी शकतो नथी. तेनी दुःख – परंपरा चालु ज रहे छे.
पं. श्री टोडरमल्लजीए कह्युं छे केः —
‘‘जिनमतमां एवी परिपाटी छे के पहेलां सम्यक्त्व होय पछी व्रत होय. हवे सम्यक्त्व तो स्वपरनुं श्रद्धान थतां थाय छे तथा ते श्रद्धान द्रव्यानुयोगनो अभ्यास करवाथी थाय छे; माटे प्रथम द्रव्यानुयोग अनुसार श्रद्धान वडे सम्यग्द्रष्टि थाय अने त्यारपछी चरणानुयोग अनुसार व्रतादिक धारण करी व्रती थाय.......’’१
मिथ्याद्रष्टि जीव आत्मज्ञान विना करोडो जन्म सुधी तप करीने जेटलां कर्मोनो अभाव करे तेटलां कर्मोनो नाश, ज्ञानी पोताना मन – वचन – कायनो निरोध करी क्षणवारमां सहज करी दे छे. आत्मज्ञान विना पंच महाव्रत पाळीने – मुनि थईने ते नवमी ग्रैवेयक सुधी देवलोकमां अनंत वार गयो पण जराय सुख न पाम्यो.२
अज्ञानी जीवनी क्रिया संसारने माटे सफळ छे ने मोक्षने माटे निष्फळ छे अने ज्ञानीनी जे धर्मक्रिया छे ते संसारने माटे निष्फळ छे अने मोक्षने माटे सफळ छे.३ ४१.
ते (तपश्चर्या) करनार बहिरात्मा अने अन्तरात्मा शुं करे छे ते कहे छेः — १. मोक्षमार्ग प्रकाशक – गु. आवृत्ति पृ. २९७, २९८. २. पं. श्री दौलतरामजी कृत ‘छहढाला’ – ४//5 // /
ज्ञानीके छिनमें, त्रिगुप्तितैं सहज टरैं ते;
मुनिव्रत धार अनंतवार ग्रीवक उपजायौ,
पै निज आतमज्ञान विना, सुख लेश न पायौ.......(४//5)
//
/
३. जुओ. श्री प्रवचनसार – गाथा ११६नी टीका.