Samadhitantra-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 42.

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समाधितंत्र७९
शुभं शरीर दिव्यांश्च विषयानभिवांछति
उत्पन्नात्ममतिर्देहे तत्त्वज्ञानी ततश्च्युतिम् ।।४२।।

टीकादेहे उत्पन्नात्ममतिर्बहिरात्मा अभिवांछति अभिलषति किं तत् ? शुभं शरीरं दिव्याश्च उत्तमान् स्वर्गसम्बंधिनो वा विषयान् अन्तरात्मा किं करोतीत्याहतत्त्वज्ञानी ततश्च्युतिम् तत्त्वज्ञानी विवेकी अन्तरात्मा ततः शरीरादेः च्युतिं व्यावृत्तिं मुक्तिरूपां अभिवांछति ।।४२।।

श्लोक ४२

अन्वयार्थ : (देहे उत्पन्नात्ममतिः) देहमां जेने आत्मबुद्धि उत्पन्न थई छे एवो बहिरात्मा (तप द्वारा) (शुभ शरीरं) सुन्दर शरीर (दिव्यान् विषयान् च) अने स्वर्गना विषयभोगोनी (अभिवांछति) वांछा करे छे अने (तत्त्वज्ञानी) ज्ञानी अंतरात्मा (ततः) तेनाथी एटले शरीरादि अने विषयभोगोथी (च्युतिम्) छूटवानी भावना करे छे.

टीका : देहमां जेने आत्मबुद्धि उत्पन्न थई छे ते बहिरात्मा वांछा करे छे अभिलाषा करे छे. कोनी (वांछा करे छे)? शुभ (सुंदर) शरीर अने दिव्य एटले उत्तम स्वर्गसंबंधी विषयोनी (दिव्य विषयभोगोनी) अभिलाषा करे छे.

अंतरात्मा शुं करे छे ते कहे छेतत्त्वज्ञानी तेनाथी च्युति वांछे छेअर्थात् तत्त्वज्ञानी एटले विवेकी अन्तरात्मा, तेनाथी एटले शरीरादिथी मुक्तिरूप (छूटकारारूप) च्युतिनी एटले व्यावृत्तिनी वांछा करे छे.

भावार्थ : शरीरादिमां आत्मबुद्धि करनार बहिरात्मा तपादि द्वारा सुंदर शरीर अने स्वर्गीय विषयभोगोनी वांछा करे छे अने भेदज्ञानी अंतरात्मा तो बाह्य शरीरविषयादिनी वांछाथी च्युत थई, एटले तेनाथी व्यावृत्त थई, आत्मस्वरूपमां ठरवा मागे छे.

विशेष

जे अज्ञानी इन्द्रियोना विषयोनी अने स्वर्गनां सुखनी इच्छाथी व्रततपादि आचरे छे, ते तो मिथ्याद्रष्टि ज छे, कारण के तेना अभिप्रायमां शुभ रागना फलस्वरूप विषयोनी ज वांछना छे. तेनां व्रततपादि भोगहेतुए ज छे.

‘‘ते भोगना निमित्तरूप धर्मने ज श्रद्धे छे, तेनी ज प्रतीत करे छे, तेनी ज रुचि करे छे अने तेने ज स्पर्शे छे, परंतु कर्मक्षयना निमित्तरूप धर्मने नहि.

देहातमधी अभिलषे दिव्य विषय, शुभ काय;
तत्त्वज्ञानी ते सर्वथी इच्छे मुक्ति सदाय. ४२.