Samadhitantra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समाधितंत्र८१

टीकापरत्र शरीरादौ अहम्मतिरात्मबुद्धिर्बहिरात्मा स्वस्मादात्मस्वरूपात् च्युतो भ्रष्टः सन् बध्नाति कर्मबन्धनबद्धं करोत्यात्मानं असंशयं यथा भवति तथा नियमेन बध्नातीत्यर्थः स्वस्मिन्नात्मस्वरूपे अहम्मतिः बुद्धोऽन्तरात्मा परस्माच्छरीरादेः च्युत्वा पृथग्भूत्वा मुच्यते सकलकर्मबन्धरहितो भवति ।।४३।।

श्लोक ४३

अन्वयार्थ : (परत्र अहम्मतिः) शरीरादि पर पदार्थोमां जेने आत्मबुद्धि छे ते बहिरात्मा (स्वस्मात्) पोताना आत्मस्वरूपथी (च्युतः) भ्रष्ट थई (असंशयम्) निःसंदेह (बध्नाति) कर्म बांधे छे अने (स्वस्मिन् अहम्मतिः) जेने पोताना आत्मस्वरूपमां आत्मबुद्धि छे ते (बुधः) अन्तरात्मा (परस्मात्) शरीरादि परना संबंधथी (च्युत्वा) च्युत थई (मुच्यते) कर्मबंधनथी मुक्त थाय छे.

टीका : परमां एटले शरीरादिमां अहंबुद्धि आत्मबुद्धि करना बहिरात्मा, स्वथी अर्थात् आत्मस्वरूपथी च्युत (भ्रष्ट) थईने बांधे छेआत्माने कर्मबंधनथी बांधे छे, निःसंशयपणे अर्थात् नियमथी बांधे छेएवो अर्थ छे.

पोतानामां एटले आत्मस्वरूपमां अहंबुद्धिवाळो बुध एटले अंतरात्मा, परथी एटले शरीरादिथी च्युत थईने अर्थात् पृथक् थईने मुक्त थाय छे अर्थात् सर्वकर्मबंधनथी रहित थाय छे.

भावार्थ : बहिरात्मा पोतानुं शुद्धात्मस्वरूप भूलीने शरीरादि पर पदार्थोमां आत्मबुद्धि करे छे, तेथी तेने ज्ञानावरणादि कर्मनो बंध थाय छे अने अंतरात्मा शरीरादि पर पदार्थो साथेनो संबंध तोडी पोताना चिदानंदस्वरूप साथे आत्मबुद्धिपूर्वक संबंध जोडे छे, तेथी ते कर्मबंधनथी छूटी जाय छे.

विशेष

अज्ञानतावश जीव शरीरादि पर पदार्थोमां अहंबुद्धि, ममकार बुद्धि, कर्ता भोकताबुद्धि आदि करी, रागद्वेष करे छे अने रागद्वेषना निमित्ते तेने कर्मनो बंध थाय छे, बाह्य पदार्थो बंधनुं कारण छे ज नहि. तेमां मिथ्याभ्रान्तिजनित ममत्वभाव ए ज संसारबंधनुं कारण छे. अज्ञानीने पोताना चैतन्यस्वरूपनी असावधानी छे, तेथी तेने पर पदार्थोमां आत्मभ्रान्ति चालु रहे छे अने तेना फलरूपे कर्मबंध पण थया ज करे छे.

ज्ञानीने रागद्वेषादि अने आत्मस्वभावनुं भेदविज्ञान छे, तेथी ते उपयोगमां राग साथे एकता नहि होवाथी ते अबंध छे.