८२समाधितंत्र
अत्राहम्मतिर्बहिरात्मनो जाता तत्तेन कथमध्यवसीयते ? यत्र चान्तरात्मनस्तत्तेन कथमित्याशंक्याह —
टीका — दृश्यमानं शरीरादिकं । किं विशिष्टं ? त्रिलिंङ्गं त्रीणि स्त्रीपुंनपुंसकलक्षणानि लिङ्गानि यस्य तत् दृश्यमानं त्रिलिंङ्गं सत् । मूढो बहिरात्मा । इदमात्मतत्त्वं त्रिलिङ्गं मन्यते
‘‘बंधोना स्वभावने अने आत्माना स्वभावने जाणीने बंधो प्रत्ये जे विरक्त थाय छे ते कर्मोथी मुकाय छे.’’१
ज्ञानी पोताना स्वरूपमां स्थित छे एटले स्वसमय छे अने पर पदार्थो प्रत्येना रागादि भावोथी मुक्त छे. तेथी तेने कर्म – बंध नथी. अज्ञानी आत्मस्वरूपथी च्युत छे अर्थात् पर पदार्थोमां आत्मबुद्धिए स्थित छे एटले पर समय छे अने रागादि भावोथी युक्त छे, तेथी ते कर्मोथी बद्ध छे. ४३.
ज्यां (जे पदार्थोमां) बहिरात्माने आत्मबुद्धि थई तेने ते केवा माने छे? अने अंतरात्मा तेने (पदार्थने) केवा माने छे? तेवी आशंका करी कहे छेः —
अन्वयार्थ : (मूढः) अज्ञानी बहिरात्मा, (दृश्यमानं) देखवामां आवता (त्रिलिङ्गं) स्त्री – पुरुष – नपुंसकना भेदथी त्रिलिंगरूप शरीरने (इदं अवबुध्यते) आत्म तत्त्व (अर्थात् मारां) माने छे के, ज्यारे (अवबुद्धः) अन्तरात्मा, (इदं) ‘आ आत्म तत्त्व छे ते त्रिलिंगरूप नथी, (तु) पण ते (निष्पन्नं) अनादि संसिद्ध तथा (शब्दवर्जितं इति) नामादि विकल्पोथी रहित छे,’ एम समजे छे.
टीका : द्रश्यमान (देखवामां आवता) शरीरादिकने – केवा (शरीरादिकने)? त्रिलिंगरूप – अर्थात् स्त्री – पुरुष – नपुंसक ए त्रण लिंग जेने छे तेवा त्रिलिंगरूप देखाता शरीरादिकने, मूढ एटले बहिरात्मा द्रश्यमान (शरीरादिक) साथे अभेदरूप (एकरूप)नी १. बंधो तणो जाणी स्वभाव, स्वभाव जाणी आत्मनो,