Page 530 of 642
PDF/HTML Page 561 of 673
single page version
तं प्रकाशयितुमायाति; किन्तु वस्तुस्वभावस्य परेणोत्पादयितुमशक्यत्वात् परमुत्पादयितुमशक्तत्वाच्च यथा तदसन्निधाने तथा तत्सन्निधानेऽपि स्वरूपेणैव प्रकाशते । स्वरूपेणैव प्रकाशमानस्य चास्य वस्तुस्वभावादेव विचित्रां परिणतिमासादयन् कमनीयोऽकमनीयो वा घटपटादिर्न मनागपि विक्रियायै कल्प्यते । तथा बहिरर्थाः शब्दो, रूपं, गन्धो, रसः, स्पर्शो, गुणद्रव्ये च, देवदत्तो यज्ञदत्तमिव हस्ते गृहीत्वा, ‘मां शृणु, मां पश्य, मां जिघ्र, मां रसय, मां स्पृश, मां बुध्यस्व’ इति स्वज्ञाने नात्मानं प्रयोजयन्ति, न चात्माप्ययःकान्तोपलकृष्टायःसूचीवत् स्वस्थानात्प्रच्युत्य तान् ज्ञातुमायाति; किन्तु वस्तुस्वभावस्य परेणोत्पादयितुमशक्यत्वात् परमुत्पादयितुमशक्त त्वाच्च यथा तदसन्निधाने तथा तत्सन्निधानेऽपि स्वरूपेणैव जानीते । स्वरूपेणैव जानतश्चास्य वस्तुस्वभावादेव विचित्रां परिणतिमासादयन्तः कमनीया अकमनीया वा शब्दादयो बहिरर्था न मनागपि विक्रियायै
(अर्थात् बाह्यपदार्थने प्रकाशवाना कार्यमां) जोडतो नथी के ‘तुं मने प्रकाश’, अने दीवो पण
लोहचुंबक-पाषाणथी खेंचायेली लोखंडनी सोयनी जेम पोताना स्थानथी च्युत थईने तेने (बाह्यपदार्थने) प्रकाशवा जतो नथी; परंतु, वस्तुस्वभाव पर वडे उत्पन्न करी शकातो नहि होवाथी तेम ज वस्तुस्वभाव परने उत्पन्न करी शकतो नहि होवाथी, दीवो जेम बाह्यपदार्थनी असमीपतामां (पोताना स्वरूपथी ज प्रकाशे छे) तेम बाह्यपदार्थनी समीपतामां पण पोताना स्वरूपथी ज प्रकाशे छे. (एम) पोताना स्वरूपथी ज प्रकाशता एवा तेने (दीवाने), वस्तुस्वभावथी ज विचित्र परिणतिने पामतो एवो मनोहर के अमनोहर घटपटादि बाह्यपदार्थ जराय विक्रिया उत्पन्न करतो नथी.
एवी रीते हवे दार्ष्टांत छेः बाह्यपदार्थो — शब्द, रूप, गंध, रस, स्पर्श तथा गुण ने द्रव्य — , जेम देवदत्त यज्ञदत्तने हाथ पकडीने कोई कार्यमां जोडे तेम, आत्माने स्वज्ञानमां (बाह्यपदार्थोने जाणवाना कार्यमां) जोडता नथी के ‘तुं मने सांभळ, तुं मने जो, तुं मने सूंघ, तुं मने चाख, तुं मने स्पर्श, तुं मने जाण’, अने आत्मा पण लोहचुंबक-पाषाणथी खेंचायेली लोखंडनी सोयनी जेम पोताना स्थानथी च्युत थईने तेमने (बाह्यपदार्थोने) जाणवा जतो नथी; परंतु, वस्तुस्वभाव पर वडे उत्पन्न करी शकातो नहि होवाथी तेम ज वस्तुस्वभाव परने उत्पन्न करी शकतो नहि होवाथी, आत्मा जेम बाह्यपदार्थोनी असमीपतामां (पोताना स्वरूपथी ज जाणे छे) तेम बाह्यपदार्थोनी समीपतामां पण पोताना स्वरूपथी ज जाणे छे. (एम) पोताना स्वरूपथी ज जाणता एवा तेने (आत्माने), वस्तुस्वभावथी ज विचित्र परिणतिने पामता एवा मनोहर के अमनोहर शब्दादि बाह्यपदार्थो जराय विक्रिया उत्पन्न करता नथी.
Page 531 of 642
PDF/HTML Page 562 of 673
single page version
कल्प्येरन् । एवमात्मा प्रदीपवत् परं प्रति उदासीनो नित्यमेवेति वस्तुस्थितिः, तथापि यद्रागद्वेषौ तदज्ञानम् ।
यायात्कामपि विक्रियां तत इतो दीपः प्रकाश्यादिव ।
रागद्वेषमयीभवन्ति सहजां मुञ्चन्त्युदासीनताम् ।।२२२।।
आ रीते आत्मा दीवानी जेम पर प्रत्ये सदाय उदासीन छे (अर्थात् संबंध वगरनो, तटस्थ छे) — एवी वस्तुस्थिति छे, तोपण जे रागद्वेष थाय छे ते अज्ञान छे.
भावार्थः — शब्दादिक जड पुद्गलद्रव्यना गुणो छे. तेओ आत्माने कांई कहेतां नथी, के ‘तुं अमने ग्रहण कर (अर्थात् तुं अमने जाण)’; अने आत्मा पण पोताना स्थानथी च्युत थईने तेमने ग्रहवा ( – जाणवा) तेमना प्रत्ये जतो नथी. जेम शब्दादिक समीप न होय त्यारे आत्मा पोताना स्वरूपथी ज जाणे छे, तेम शब्दादिक समीप होय त्यारे पण आत्मा पोताना स्वरूपथी ज जाणे छे. आम पोताना स्वरूपथी ज जाणता एवा आत्माने पोतपोताना स्वभावथी ज परिणमतां शब्दादिक किंचित्मात्र पण विकार करतां नथी, जेम पोताना स्वरूपथी ज प्रकाशता एवा दीवाने घटपटादि पदार्थो विकार करता नथी तेम. आवो वस्तुस्वभाव छे, तोपण जीव शब्दने सांभळी, रूपने देखी, गंधने सूंघी, रसने आस्वादी, स्पर्शने स्पर्शी, गुण- द्रव्यने जाणी, तेमने सारां-नरसां मानी रागद्वेष करे छे, ते अज्ञान ज छे.
हवे आ ज अर्थनुं कळशरूप काव्य कहे छेः —
श्लोकार्थः — [पूर्ण-एक-अच्युत-शुद्ध-बोध-महिमा अयं बोधः] पूर्ण, एक, अच्युत अने शुद्ध ( – विकार रहित) एवुं ज्ञान जेनो महिमा छे एवो आ ज्ञायक आत्मा [ततः इतः बोध्यात्] ते (असमीपवर्ती) के आ (समीपवर्ती) ज्ञेय पदार्थोथी [काम् अपि विक्रियां न यायात्] जरा पण विक्रिया पामतो नथी, [दीपः प्रकाश्यात् इव] जेम दीवो प्रकाश्य पदार्थोथी ( – प्रकाशावायोग्य घटपटादि पदार्थोथी) विक्रिया पामतो नथी तेम. तो पछी [तद्-वस्तुस्थिति-बोध-बन्ध्य-धिषणाः एते अज्ञानिनः] एवी वस्तुस्थितिना ज्ञानथी रहित जेमनी बुद्धि छे एवा आ अज्ञानी जीवो [किम् सहजाम् उदासीनताम् मुञ्चन्ति, रागद्वेषमयीभवन्ति] पोतानी सहज उदासीनताने केम छोडे छे अने रागद्वेषमय केम थाय छे? (एम आचार्यदेवे शोच कर्यो छे.)
Page 532 of 642
PDF/HTML Page 563 of 673
single page version
पूर्वागामिसमस्तकर्मविकला भिन्नास्तदात्वोदयात् ।
विन्दन्ति स्वरसाभिषिक्तभुवनां ज्ञानस्य सञ्चेतनाम् ।।२२३।।
भावार्थः — ज्ञाननो स्वभाव ज्ञेयने जाणवानो ज छे, जेम दीपकनो स्वभाव घटपटादिने प्रकाशवानो छे. एवो वस्तुस्वभाव छे. ज्ञेयने जाणवामात्रथी ज्ञानमां विकार थतो नथी. ज्ञेयोने जाणी, तेमने सारां-नरसां मानी, आत्मा रागीद्वेषी – विकारी थाय छे ते अज्ञान छे. माटे आचार्यदेवे शोच कर्यो छे के — ‘वस्तुनो स्वभाव तो आवो छे, छतां आ आत्मा अज्ञानी थईने रागद्वेषरूपे केम परिणमे छे? पोतानी स्वाभाविक उदासीन-अवस्थारूप केम रहेतो नथी?’ आ प्रमाणे आचार्यदेवे जे शोच कर्यो छे ते युक्त छे, कारण के ज्यां सुधी शुभ राग छे त्यां सुधी प्राणीओने अज्ञानथी दुःखी देखी करुणा ऊपजे छे अने तेथी शोच थाय छे. २२२.
हवे आगळना कथननी सूचनारूप काव्य कहे छेः —
श्लोकार्थः — [राग-द्वेष-विभाव-मुक्त-महसः] जेमनुं तेज रागद्वेषरूप विभावथी रहित छे, [नित्यं स्वभाव-स्पृशः] जेओ सदा (पोताना चैतन्यचमत्कारमात्र) स्वभावने स्पर्शनारा छे, [पूर्व- आगामि-समस्त-कर्म-विकलाः] जेओ भूत काळनां तेम ज भविष्य काळनां समस्त कर्मथी रहित छे अने [तदात्व-उदयात्-भिन्नाः] जेओ वर्तमान काळना कर्मोदयथी भिन्न छे, [दूर-आरूढ-चरित्र- वैभव-बलात् ज्ञानस्य सञ्चेतनाम् विन्दन्ति] तेओ ( – एवा ज्ञानीओ – ) अति प्रबळ चारित्रना वैभवना बळथी ज्ञाननी संचेतनाने अनुभवे छे — [चञ्चत्-चिद्-अर्चिर्मयीं] के जे ज्ञान-चेतना चमकती चैतन्यज्योतिमय छे अने [स्व-रस-अभिषिक्त-भुवनाम्] जेणे निज रसथी (पोताना ज्ञानरूप रसथी) समस्त लोकने सिंच्यो छे.
भावार्थः — जेमने रागद्वेष गया, पोताना चैतन्यस्वभावनो अंगीकार थयो अने अतीत, अनागत तथा वर्तमान कर्मनुं ममत्व गयुं एवा ज्ञानीओ सर्व परद्रव्यथी जुदा थईने चारित्र अंगीकार करे छे. ते चारित्रना बळथी, कर्मचेतना अने कर्मफळचेतनाथी जुदी जे पोतानी चैतन्यना परिणमनस्वरूप ज्ञानचेतना तेनुं अनुभवन करे छे.
अहीं तात्पर्य आम जाणवुंः — जीव पहेलां तो कर्मचेतना अने कर्मफळचेतनाथी भिन्न पोतानी ज्ञानचेतनानुं स्वरूप आगम-प्रमाण, अनुमान-प्रमाण अने स्वसंवेदन-प्रमाणथी जाणे छे अने तेनुं श्रद्धान (प्रतीति) द्रढ करे छे; ए तो अविरत, देशविरत अने प्रमत्त
Page 533 of 642
PDF/HTML Page 564 of 673
single page version
अवस्थामां पण थाय छे. अने ज्यारे अप्रमत्त अवस्था थाय छे त्यारे जीव पोताना स्वरूपनुं ज ध्यान करे छे; ते वखते, जे ज्ञानचेतनानुं तेणे प्रथम श्रद्धान कर्युं हतुं तेमां ते लीन थाय छे अने श्रेणि चडी, केवळज्ञान उपजावी, साक्षात् *ज्ञानचेतनारूप थाय छे. २२३.
अतीत कर्म प्रत्ये ममत्व छोडे ते आत्मा प्रतिक्रमण छे, अनागत कर्म न करवानी प्रतिज्ञा करे (अर्थात् जे भावोथी आगामी कर्म बंधाय ते भावोनुं ममत्व छोडे) ते आत्मा प्रत्याख्यान छे अने उदयमां आवेला वर्तमान कर्मनुं ममत्व छोडे ते आत्मा आलोचना छे; सदाय आवां प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान अने आलोचनापूर्वक वर्ततो आत्मा चारित्र छे. — आवुं चारित्रनुं विधान हवेनी गाथाओमां कहे छेः —
* केवळज्ञानी जीवने साक्षात् ज्ञानचेतना होय छे. केवळज्ञान थया पहेलां पण, निर्विकल्प अनुभव वखते
जीवने उपयोगात्मक ज्ञानचेतना होय छे. ज्ञानचेतनाना उपयोगात्मकपणाने मुख्य न करीए तो,
सम्यग्द्रष्टिने ज्ञानचेतना निरंतर होय छे, कर्मचेतना अने कर्मफळचेतना नथी होती; कारण के तेने
निरंतर ज्ञानना स्वामित्वभावे परिणमन होय छे, कर्मना अने कर्मफळना स्वामित्वभावे परिणमन
नथी होतुं.
Page 534 of 642
PDF/HTML Page 565 of 673
single page version
गाथार्थः — [पूर्वकृतं] पूर्वे करेलुं [यत्] जे [अनेकविस्तरविशेषम्] अनेक प्रकारना विस्तारवाळुं [शुभाशुभम् कर्म] (ज्ञानावरणीयादि) शुभाशुभ कर्म [तस्मात्] तेनाथी [यः] जे आत्मा [आत्मानं तु] पोताने [निवर्तयति] *निवर्तावे छे, [सः] ते आत्मा [प्रतिक्रमणम्] प्रतिक्रमण छे.
[भविष्यत्] भविष्य काळनुं [यत्] जे [शुभम् अशुभम् कर्म] शुभ-अशुभ कर्म [यस्मिन् भावे च] ते जे भावमां [बध्यते] बंधाय छे [तस्मात्] ते भावथी [यः] जे आत्मा [निवर्तते] निवर्ते छे, [सः चेतयिता] ते आत्मा [प्रत्याख्यानं भवति] प्रत्याख्यान छे.
[सम्प्रति च] वर्तमान काळे [उदीर्णं] उदयमां आवेलुं [यत्] जे [अनेकविस्तरविशेषम्] अनेक प्रकारना विस्तारवाळुं [शुभम् अशुभम्] शुभ-अशुभ कर्म [तं दोषं] ते दोषने [यः] जे आत्मा [चेतयते] चेते छे — अनुभवे छे — ज्ञाताभावे जाणी ले छे (अर्थात् तेनुं स्वामित्व – कर्तापणुं छोडे छे), [सः चेतयिता] ते आत्मा [खलु] खरेखर [आलोचनम्] आलोचना छे.
[यः] जे [नित्यं] सदा [प्रत्याख्यानं करोति] प्रत्याख्यान करे छे, [नित्यं प्रतिक्रामति च]
* निवर्ताववुं = पाछा वाळवुं; अटकाववुं; दूर राखवुं.
Page 535 of 642
PDF/HTML Page 566 of 673
single page version
यः खलु पुद्गलकर्मविपाकभवेभ्यो भावेभ्यश्चेतयितात्मानं निवर्तयति, स तत्कारणभूतं पूर्वं
कर्म प्रतिक्रामन् स्वयमेव प्रतिक्रमणं भवति । स एव तत्कार्यभूतमुत्तरं कर्म प्रत्याचक्षाणः
प्रत्याख्यानं भवति । स एव वर्तमानं कर्मविपाकमात्मनोऽत्यन्तभेदेनोपलभमानः आलोचना भवति ।
एवमयं नित्यं प्रतिक्रामन्, नित्यं प्रत्याचक्षाणो, नित्यमालोचयंश्च, पूर्वकर्मकार्येभ्य उत्तरकर्मकारणेभ्यो भावेभ्योऽत्यन्तं निवृत्तः, वर्तमानं कर्मविपाकमात्मनोऽत्यन्तभेदेनोपलभमानः, स्वस्मिन्नेव खलु ज्ञानस्वभावे निरन्तरचरणाच्चारित्रं भवति । चारित्रं तु भवन् स्वस्य ज्ञानमात्रस्य चेतनात् स्वयमेव ज्ञानचेतना भवतीति भावः ।
सदा प्रतिक्रमण करे छे अने [नित्यम् आलोचयति] सदा आलोचना करे छे, [सः चेतयिता] ते आत्मा [खलु] खरेखर [चरित्रं भवति] चारित्र छे.
टीकाः — जे आत्मा पुद्गलकर्मना विपाकथी (उदयथी) थता भावोथी पोताने निवर्तावे छे, ते आत्मा ते भावोना कारणभूत पूर्वकर्मने (भूतकाळना कर्मने) प्रतिक्रमतो थको पोते ज प्रतिक्रमण छे; ते ज आत्मा, ते भावोना कार्यभूत उत्तरकर्मने (भविष्यकाळना कर्मने) पचखतो थको, प्रत्याख्यान छे; ते ज आत्मा, वर्तमान कर्मविपाकने पोताथी (आत्माथी) अत्यंत भेदपूर्वक अनुभवतो थको, आलोचना छे. ए रीते ते आत्मा सदा प्रतिक्रमतो (अर्थात् प्रतिक्रमण करतो) थको, सदा पचखतो (अर्थात् प्रत्याख्यान करतो) थको अने सदा आलोचतो (अर्थात् आलोचना करतो) थको, पूर्वकर्मना कार्यरूप अने उत्तरकर्मना कारणरूप भावोथी अत्यंत निवृत्त थयो थको, वर्तमान कर्मविपाकने पोताथी (आत्माथी) अत्यंत भेदपूर्वक अनुभवतो थको, पोतामां ज — ज्ञानस्वभावमां ज — निरंतर चरतो (विचरतो, आचरण करतो) होवाथी चारित्र छे (अर्थात् पोते ज चारित्रस्वरूप छे). अने चारित्रस्वरूप वर्ततो थको पोताने – ज्ञानमात्रने – चेततो (अनुभवतो) होवाथी (ते आत्मा) पोते ज ज्ञानचेतना छे, एवो भाव (आशय) छे.
भावार्थः — चारित्रमां प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान अने आलोचनानुं विधान छे. तेमां, पूर्वे लागेला दोषथी आत्माने निवर्ताववो ते प्रतिक्रमण छे, भविष्यमां दोष लगाडवानो त्याग करवो ते प्रत्याख्यान छे अने वर्तमान दोषथी आत्माने जुदो करवो ते आलोचना छे. अहीं तो निश्चयचारित्रने प्रधान करीने कथन छे; माटे निश्चयथी विचारतां तो, जे आत्मा त्रणे काळनां कर्मोथी पोताने भिन्न जाणे छे, श्रद्धे छे अने अनुभवे छे, ते आत्मा पोते ज प्रतिक्रमण छे, पोते ज प्रत्याख्यान छे अने पोते ज आलोचना छे. एम प्रतिक्रमणस्वरूप, प्रत्याख्यान- स्वरूप अने आलोचनास्वरूप आत्मानुं निरंतर अनुभवन ते ज निश्चयचारित्र छे. जे आ
Page 536 of 642
PDF/HTML Page 567 of 673
single page version
प्रकाशते ज्ञानमतीव शुद्धम् ।
बोधस्य शुद्धिं निरुणद्धि बन्धः ।।२२४।।
निश्चयचारित्र, ते ज ज्ञानचेतना (अर्थात् ज्ञाननुं अनुभवन) छे. ते ज ज्ञानचेतनाथी (अर्थात् ज्ञानना अनुभवनथी) साक्षात् ज्ञानचेतनास्वरूप केवळज्ञानमय आत्मा प्रगट थाय छे.
हवे आगळनी गाथाओनी सूचनारूप काव्य कहे छे, जेमां ज्ञानचेतनानुं फळ अने अज्ञानचेतनानुं (अर्थात् कर्मचेतनानुं अने कर्मफळचेतनानुं) फळ प्रगट करे छेः —
श्लोकार्थः — [नित्यं ज्ञानस्य सञ्चेतनया एव ज्ञानम् अतीव शुद्धम् प्रकाशते] निरंतर ज्ञाननी संचेतनाथी ज ज्ञान अत्यंत शुद्ध प्रकाशे छे; [तु] अने [अज्ञानसञ्चेतनया] अज्ञाननी संचेतनाथी [बन्धः धावन] बंध दोडतो थको [बोधस्य शुद्धिं निरुणद्धि] ज्ञाननी शुद्धताने रोके छे — ज्ञाननी शुद्धता थवा देतो नथी.
भावार्थः — कोई (वस्तु) प्रत्ये एकाग्र थईने तेनो ज अनुभवरूप स्वाद लीधा करवो ते तेनुं संचेतन कहेवाय. ज्ञान प्रत्ये ज एकाग्र उपयुक्त थईने तेना तरफ ज चेत राखवी ते ज्ञाननुं संचेतन अर्थात् ज्ञानचेतना छे. तेनाथी ज्ञान अत्यंत शुद्ध थईने प्रकाशे छे अर्थात् केवळज्ञान ऊपजे छे. केवळज्ञान ऊपजतां संपूर्ण ज्ञानचेतना कहेवाय छे.
अज्ञानरूप (अर्थात् कर्मरूप अने कर्मफळरूप) उपयोगने करवो, तेना तरफ ज ( – कर्म अने कर्मफळ तरफ ज – ) एकाग्र थई तेनो ज अनुभव करवो, ते अज्ञानचेतना छे. तेनाथी कर्मनो बंध थाय छे, के जे बंध ज्ञाननी शुद्धताने रोके छे. २२४.
हवे आ कथनने गाथा द्वारा कहे छेः —
Page 537 of 642
PDF/HTML Page 568 of 673
single page version
गाथार्थः — [कर्मफलम् वेदयमानः] कर्मना फळने वेदतो थको [यः तु] जे आत्मा [कर्मफलम्] कर्मफळने [आत्मानं करोति] पोतारूप करे छे ( – माने छे), [सः] ते [पुनः अपि] फरीने पण [अष्टविधम् तत्] आठ प्रकारना कर्मने — [दुःखस्य बीजं] दुःखना बीजने — [बध्नाति] बांधे छे.
[कर्मफलं वेदयमानः] कर्मना फळने वेदतो थको [यः तु] जे आत्मा [कर्मफलम् मया कृतं जानाति] ‘कर्मफळ में कर्युं’ एम जाणे छे, [सः] ते [पुनः अपि] फरीने पण [अष्टविधम् तत्] आठ प्रकारना कर्मने — [दुःखस्य बीजं] दुःखना बीजने — [बध्नाति] बांधे छे.
[कर्मफलं वेदयमानः] कर्मना फळने वेदतो थको [यः चेतयिता] जे आत्मा [सुखितः दुखितः च] सुखी अने दुःखी [भवति] थाय छे, [सः] ते [पुनः अपि] फरीने पण [अष्टविधम् तत्] आठ प्रकारना कर्मने — [दुःखस्य बीजं] दुःखना बीजने — [बध्नाति] बांधे छे.
Page 538 of 642
PDF/HTML Page 569 of 673
single page version
ज्ञानादन्यत्रेदमहमिति चेतनम् अज्ञानचेतना । सा द्विधा — कर्मचेतना कर्मफलचेतना च । तत्र ज्ञानादन्यत्रेदमहं करोमीति चेतनं कर्मचेतना; ज्ञानादन्यत्रेदं वेदयेऽहमिति चेतनं कर्मफलचेतना । सा तु समस्तापि संसारबीजं; संसारबीजस्याष्टविधकर्मणो बीजत्वात् । ततो मोक्षार्थिना पुरुषेणाज्ञानचेतनाप्रलयाय सकलकर्मसंन्यासभावनां सकलकर्मफलसंन्यासभावनां च नाटयित्वा स्वभावभूता भगवती ज्ञानचेतनैवैका नित्यमेव नाटयितव्या ।
तत्र तावत्सकलकर्मसंन्यासभावनां नाटयति —
टीकाः — ज्ञानथी अन्यमां ( – ज्ञान सिवाय अन्य भावोमां) एम चेतवुं (अनुभववुं) के ‘आ हुं छुं’, ते अज्ञानचेतना छे. ते बे प्रकारे छे — कर्मचेतना अने कर्मफळचेतना. तेमां, ज्ञानथी अन्यमां (अर्थात् ज्ञान सिवाय अन्य भावोमां) एम चेतवुं के ‘आने हुं करुं छुं’, ते कर्मचेतना छे; अने ज्ञानथी अन्यमां एम चेतवुं के ‘आने हुं भोगवुं छुं’, ते कर्मफळचेतना छे. (एम बे प्रकारे अज्ञानचेतना छे.) ते समस्त अज्ञानचेतना संसारनुं बीज छे; कारण के संसारनुं बीज जे आठ प्रकारनुं (ज्ञानावरणादि) कर्म, तेनुं ते अज्ञानचेतना बीज छे (अर्थात् तेनाथी कर्म बंधाय छे). माटे मोक्षार्थी पुरुषे अज्ञानचेतनानो प्रलय करवा माटे सकळ कर्मना संन्यासनी (त्यागनी) भावनाने तथा सकळ कर्मफळना संन्यासनी भावनाने नचावीने, स्वभावभूत एवी भगवती ज्ञानचेतनाने ज एकने सदाय नचाववी.
तेमां प्रथम, सकळ कर्मना संन्यासनी भावनाने नचावे छेः —
(त्यां प्रथम, काव्य कहे छेः — )
श्लोकार्थः — [त्रिकालविषयं] त्रणे काळना (अर्थात् अतीत, वर्तमान अने अनागत काळ संबंधी) [सर्वं कर्म] समस्त कर्मने [कृत-कारित-अनुमननैः] कृत-कारित-अनुमोदनाथी अने [मनः- वचन-कायैः] मन-वचन-कायाथी [परिहृत्य] त्यागीने [परमं नैष्कर्म्यम् अवलम्बे] हुं परम नैष्कर्म्यने ( – उत्कृष्ट निष्कर्म अवस्थाने) अवलंबुं छुं. (ए प्रमाणे, सर्व कर्मनो त्याग करनार ज्ञानी प्रतिज्ञा करे छे.) २२५.
(हवे टीकामां प्रथम, प्रतिक्रमण-कल्प अर्थात् प्रतिक्रमणनो विधि कहे छेः — )
(प्रतिक्रमण करनार कहे छे केः)
Page 539 of 642
PDF/HTML Page 570 of 673
single page version
यदहमकार्षं, यदचीकरं, यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं, मनसा च वाचा च कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति १ । यदहमकार्षं, यदचीकरं, यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं, मनसा च वाचा च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति २ । यदहमकार्षं, यदचीकरं, यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं, मनसा च कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ३ । यदहमकार्षं, यदचीकरं, यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं, वाचा च कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ४ । यदहमकार्षं, यदचीकरं, यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं, मनसा च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ५ । यदहमकार्षं, यदचीकरं, यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं, वाचा च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ६ । यदहमकार्षं, यदचीकरं, यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं, कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ७ । यदहमकार्षं, यदचीकरं, मनसा च वाचा च कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ८ । यदहमकार्षं, यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं, मनसा च वाचा च कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ९ । यदहमचीकरं, यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं, मनसा च वाचा च
जे में (पूर्वे कर्म) कर्युं, कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं, मनथी, वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. (कर्म करवुं, कराववुं अने अन्य करनारने अनुमोदवुं ते संसारनुं बीज छे एम जाणीने ते दुष्कृत प्रत्ये हेयबुद्धि आवी त्यारे जीवे तेना प्रत्येनुं ममत्व छोड्युं, ते ज तेनुं मिथ्या करवुं छे). १.
जे में (पूर्वे कर्म) कर्युं, कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं, मनथी तथा वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. २. जे में (पूर्वे) कर्युं, कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं, मनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ३. जे में (पूर्वे) कर्युं, कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं, वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ४.
जे में (पूर्वे) कर्युं, कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं, मनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ५. जे में (पूर्वे) कर्युं, कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं, वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ६. जे में (पूर्वे) कर्युं, कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं, कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ७.
जे में (पूर्वे) कर्युं अने कराव्युं मनथी, वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ८. जे में (पूर्वे) कर्युं, अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं, मनथी, वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ९. जे में (पूर्वे) कराव्युं अने अन्य
Page 540 of 642
PDF/HTML Page 571 of 673
single page version
कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति १० । यदहमकार्षं, यदचीकरं, मनसा च
वाचा च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ११ । यदहमकार्षं, यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं,
मनसा च वाचा च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति १२ । यदहमचीकरं, यत्कुर्वन्तमप्यन्यं
समन्वज्ञासिषं, मनसा च वाचा च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति १३ । यदहमकार्षं, यदचीकरं,
मनसा च कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति १४ । यदहमकार्षं, यत्कुर्वन्तमप्यन्यं
समन्वज्ञासिषं, मनसा च कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति १५ । यदहमचीकरं
यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं मनसा च कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति १६ ।
यदहमकार्षं, यदचीकरं, वाचा च कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति १७ । यदहमकार्षं,
यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं, वाचा च कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति १८ ।
यदहमचीकरं, यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं, वाचा च कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति १९ । यदहमकार्षं, यदचीकरं, मनसा च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति २० । यदहमकार्षं, यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं, मनसा च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति २१ ।
करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं मनथी, वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. १०.
जे में (पूर्वे) कर्युं अने कराव्युं मनथी तथा वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ११. जे में (पूर्वे) कर्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं, मनथी तथा वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. १२. जे में (पूर्वे) कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं मनथी तथा वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. १३. जे में (पूर्वे) कर्युं अने कराव्युं मनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. १४. जे में (पूर्वे) कर्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं मनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. १५. जे में (पूर्वे) कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं मनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. १६. जे में (पूर्वे) कर्युं अने कराव्युं वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. १७. जे में (पूर्वे) कर्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. १८. जे में (पूर्वे) कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं, वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. १९.
जे में (पूर्वे) कर्युं अने कराव्युं मनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. २०. जे में (पूर्वे) कर्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं मनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. २१.
Page 541 of 642
PDF/HTML Page 572 of 673
single page version
यदहमचीकरं, यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं, मनसा च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति २२ ।
यदहमकार्षं, यदचीकरं, वाचा च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति २३ । यदहमकार्षं,
यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं, वाचा च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति २४ । यदहम-
चीकरं, यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं, वाचा च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति २५ ।
यदहमकार्षं, यदचीकरं, कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति २६ । यदहमकार्षं,
यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं, कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति २७ । यदहमचीकरं,
यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं, कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति २८ । यदहमकार्षं
मनसा च वाचा च कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति २९ । यदहमचीकरं मनसा
च वाचा च कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ३० । यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं
मनसा च वाचा च कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ३१ । यदहमकार्षं मनसा
च वाचा च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ३२ । यदहमचीकरं मनसा च वाचा च, तन्मिथ्या
मे दुष्कृतमिति ३३ । यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं मनसा च वाचा च, तन्मिथ्या
मे दुष्कृतमिति ३४ । यदहमकार्षं मनसा च कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ३५ ।
जे में (पूर्वे) कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं मनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. २२. जे में (पूर्वे) कर्युं अने कराव्युं वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. २३. जे में (पूर्वे) कर्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. २४. जे में (पूर्वे) कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. २५. जे में (पूर्वे) कर्युं अने कराव्युं कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. २६. जे में (पूर्वे) कर्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. २७. जे में (पूर्वे) कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. २८.
जे में (पूर्वे) कर्युं मनथी, वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. २९. जे में (पूर्वे) कराव्युं मनथी, वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ३०. जे में अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं मनथी, वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ३१.
जे में (पूर्वे) कर्युं मनथी तथा वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ३२. जे में (पूर्वे) कराव्युं मनथी तथा वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ३३. जे में (पूर्वे) अन्य करतो होय
Page 542 of 642
PDF/HTML Page 573 of 673
single page version
यदहमचीकरं मनसा च कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ३६ । यत्कुर्वन्त-
मप्यन्यं समन्वज्ञासिषं मनसा च कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ३७ । यदहमकार्षं
वाचा च कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ३८ । यदहमचीकरं वाचा च
कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ३९ । यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं वाचा
च कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ४० । यदहमकार्षं मनसा च, तन्मिथ्या
मे दुष्कृतमिति ४१ । यदहमचीकरं मनसा च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ४२ ।
यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं मनसा च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ४३ ।
यदहमकार्षं वाचा च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ४४ । यदहमचीकरं वाचा च,
तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ४५ । यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं वाचा च, तन्मिथ्या
मे दुष्कृतमिति ४६ । यदहमकार्षं कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ४७ ।
यदहमचीकरं कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ४८ । यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं
कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ४९ ।
तेनुं अनुमोदन कर्युं मनथी तथा वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ३४. जे में (पूर्वे) कर्युं, मनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ३५. जे में (पूर्वे) कराव्युं मनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ३६. जे में (पूर्वे) अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं मनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ३७. जे में (पूर्वे) कर्युं वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ३८. जे में (पूर्वे) कराव्युं वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ३९. जे में (पूर्वे) अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ४०.
जे में (पूर्वे) कर्युं मनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ४१. जे में (पूर्वे) कराव्युं मनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ४२. जे में (पूर्वे) अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं मनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ४३. जे में (पूर्वे) कर्युं वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ४४. जे में (पूर्वे) कराव्युं वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ४५. जे में (पूर्वे) अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ४६. जे में (पूर्वे) कर्युं कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ४७. जे में (पूर्वे) कराव्युं कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ४८. जे में (पूर्वे) अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ४९.
(आ ४९ भंगोनी अंदर, पहेला भंगमां कृत, कारित, अनुमोदना — ए त्रणे लीधां अने तेना पर मन, वचन, काया — ए त्रणे लगाव्यां. ए रीते बनेला आ एक भंगने
Page 543 of 642
PDF/HTML Page 574 of 673
single page version
अनुमोदना त्रणे लईने तेना पर मन, वचन, कायामांथी बब्बे लगाव्यां. ए रीते बनेला आ त्रण भंगोने +‘३२’नी संज्ञाथी ओळखी शकाय. ५ थी ७ सुधीना भंगोमां कृत, कारित, अनुमोदना त्रणे लईने तेना पर मन, वचन, कायामांथी एकेक लगाव्युं. आ त्रण भंगोने ‘३१’नी संज्ञाथी ओळखी शकाय. ८ थी १० सुधीना भंगोमां कृत, कारित, अनुमोदनामांथी बब्बे लईने तेमना पर मन, वचन, काया त्रणे लगाव्यां. आ त्रण भंगोने ‘२३’नी संज्ञावाळा भंगो तरीके ओळखी शकाय. ११थी १९ सुधीना भंगोमां कृत, कारित, अनुमोदनामांथी बब्बे लईने तेमना पर मन, वचन, कायामांथी बब्बे लगाव्यां. आ नव भंगोने ‘२२’नी संज्ञाथी ओळखी शकाय. २० थी २८ सुधीना भंगोमां कृत, कारित, अनुमोदनामांथी बब्बे लईने तेमना पर मन, वचन, कायामांथी एकेक लगाव्यां. आ नव भंगोने ‘२१’नी संज्ञावाळा भंगो तरीके ओळखी शकाय. २९ थी ३१ सुधीना भंगोमां कृत, कारित, अनुमोदनामांथी एकेक लईने तेमना पर मन, वचन, काया त्रणे लगाव्यां. आ त्रण भंगोने ‘१३’नी संज्ञाथी ओळखी शकाय. ३२ थी ४० सुधीना भंगोमां कृत, कारित, अनुमोदनामांथी एकेक लईने तेमना पर मन, वचन, कायामांथी बब्बे लगाव्यां. आ नव भंगोने ‘१२’नी संज्ञाथी ओळखी शकाय. ४१ थी ४९ सुधीना भंगोमां कृत, कारित, अनुमोदनामांथी एकेक लईने तेमना पर मन, वचन, कायामांथी एकेक लगाव्युं. आ नव भंगोने ‘११’नी संज्ञाथी ओळखी शकाय. बधा मळीने ४९ भंग थया.)
श्लोकार्थः — [यद् अहम् मोहात् अकार्षम्] जे में मोहथी अर्थात् अज्ञानथी (भूत काळमां) कर्म कर्यां, [तत् समस्तम् अपि कर्म प्रतिक्रम्य] ते समस्त कर्मने प्रतिक्रमीने [निष्कर्मणि
*‘३३’नी समस्याथी – संज्ञाथी – ओळखी शकाय. २ थी ४ सुधीना भंगोमां कृत, कारित,
* कृत, कारित, अनुमोदना — ए त्रणे लीधां ते बताववा प्रथम ‘३’नो आंकडो मूकवो, अने पछी मन, वचन, काया — ए त्रणे लीधां ते बताववा तेनी पासे बीजो ‘३’नो आंकडो मूकवो. आ रीते ‘३३’नी समस्या थई.
+कृत, कारित, अनुमोदना त्रणे लीधां ते बताववा प्रथम ‘३’नो आंकडो मूकवो; अने पछी मन,
वचन, कायामांथी बे लीधां ते बताववा ‘३’नी पासे ‘२’नो आंकडो मूकवो. ए रीते ‘३२’नी
संज्ञा थई.
Page 544 of 642
PDF/HTML Page 575 of 673
single page version
न करोमि, न कारयामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, मनसा च वाचा च कायेन
चेति १ । न करोमि, न कारयामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, मनसा च वाचा चेति २ ।
न करोमि, न कारयामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, मनसा च कायेन चेति ३ ।
न करोमि, न कारयामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, वाचा च कायेन चेति ४ ।
न करोमि, न कारयामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, मनसा चेति ५ । न करोमि,
चैतन्य-आत्मनि आत्मनि आत्मना नित्यम् वर्ते] हुं निष्कर्म (अर्थात् सर्व कर्मोथी रहित)
चैतन्यस्वरूप आत्मामां आत्माथी ज ( – पोताथी ज – ) निरंतर वर्तुं छुं (एम ज्ञानी अनुभव करे छे).
भावार्थः — भूत काळमां करेला कर्मने ४९ भंगपूर्वक मिथ्या करनारुं प्रतिक्रमण करीने ज्ञानी ज्ञानस्वरूप आत्मामां लीन थईने निरंतर चैतन्यस्वरूप आत्मानो अनुभव करे, तेनुं आ विधान (विधि) छे. ‘मिथ्या’ कहेवानुं प्रयोजन आ प्रमाणे छेः — जेवी रीते, कोईए पहेलां धन कमाईने घरमां राख्युं हतुं; पछी तेना प्रत्ये ममत्व छोड्युं त्यारे तेने भोगववानो अभिप्राय न रह्यो; ते वखते, भूत काळमां जे धन कमायो हतो ते नहि कमाया समान ज छे; तेवी रीते, जीवे पहेलां कर्म बांध्युं हतुं; पछी ज्यारे तेने अहितरूप जाणीने तेना प्रत्ये ममत्व छोड्युं अने तेना फळमां लीन न थयो, त्यारे भूत काळमां जे कर्म बांध्युं हतुं ते नहि बांध्या समान मिथ्या ज छे. २२६.
आ रीते प्रतिक्रमण-कल्प (अर्थात् प्रतिक्रमणनो विधि) समाप्त थयो.
(हवे टीकामां आलोचनाकल्प कहे छेः — )
हुं (वर्तमानमां कर्म) करतो नथी, करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, मनथी, वचनथी तथा कायाथी. १.
हुं (वर्तमानमां कर्म) करतो नथी, करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, मनथी तथा वचनथी. २. हुं (वर्तमानमां) करतो नथी, करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, मनथी तथा कायाथी. ३. हुं करतो नथी, करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, वचनथी तथा कायाथी ४.
हुं करतो नथी, करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, मनथी. ५. हुं करतो नथी, करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी,
Page 545 of 642
PDF/HTML Page 576 of 673
single page version
न कारयामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, वाचा चेति ६ । न करोमि, न
कारयामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, कायेन चेति ७ । न करोमि, न
कारयामि, मनसा च वाचा च कायेन चेति ८ । न करोमि, न कुर्वन्तमप्यन्यं
समनुजानामि, मनसा च वाचा च कायेन चेति ९ । न कारयामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं
समनुजानामि, मनसा च वाचा च कायेन चेति १० । न करोमि, न कारयामि,
मनसा च वाचा चेति ११ । न करोमि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, मनसा च
वाचा चेति १२ । न कारयामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, मनसा च वाचा
चेति १३ । न करोमि, न कारयामि, मनसा च कायेन चेति १४ । न करोमि, न
कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, मनसा च कायेन चेति १५ । न कारयामि, न
कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, मनसा च कायेन चेति १६ । न करोमि, न कारयामि,
वाचा च कायेन चेति १७ । न करोमि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, वाचा च कायेन
चेति १८ । न कारयामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, वाचा च कायेन चेति १९ ।
न करोमि, न कारयामि, मनसा चेति २० । न करोमि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि,
वचनथी. ६. हुं करतो नथी, करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, कायाथी. ७.
हुं करतो नथी, करावतो नथी, मनथी, वचनथी तथा कायाथी. ८. हुं करतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, मनथी, वचनथी तथा कायाथी. ९. हुं करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, मनथी, वचनथी तथा कायाथी. १०.
हुं करतो नथी, करावतो नथी, मनथी तथा वचनथी. ११. हुं करतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, मनथी तथा वचनथी. १२. हुं करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, मनथी तथा वचनथी. १३. हुं करतो नथी, करावतो नथी, मनथी तथा कायाथी. १४. हुं करतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, मनथी तथा कायाथी. १५. हुं करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, मनथी तथा कायाथी. १६. हुं करतो नथी, करावतो नथी, वचनथी तथा कायाथी. १७. हुं करतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, वचनथी तथा कायाथी. १८. हुं करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, वचनथी तथा कायाथी. १९.
हुं करतो नथी, करावतो नथी, मनथी. २०. हुं करतो नथी, अन्य करतो होय तेने
Page 546 of 642
PDF/HTML Page 577 of 673
single page version
मनसा चेति २१ । न कारयामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, मनसा चेति २२ । न
करोमि, न कारयामि, वाचा चेति २३ । न करोमि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, वाचा
चेति २४ । न कारयामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, वाचा चेति २५ । न करोमि,
न कारयामि, कायेन चेति २६ । न करोमि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, कायेन चेति
च वाचा च कायेन चेति २९ । न कारयामि मनसा च वाचा च कायेन चेति ३० । न
कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि मनसा च वाचा च कायेन चेति ३१ । न करोमि मनसा च
वाचा चेति ३२ । न कारयामि मनसा च वाचा चेति ३३ । न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि
मनसा च वाचा चेति ३४ । न करोमि मनसा च कायेन चेति ३५ । न कारयामि मनसा
च कायेन चेति ३६ । न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि मनसा च कायेन चेति ३७ । न करोमि
वाचा च कायेन चेति ३८ । न कारयामि वाचा च कायेन चेति ३९ । न कुर्वन्तमप्यन्यं
समनुजानामि वाचा च कायेन चेति ४० । न करोमि मनसा चेति ४१ । न कारयामि मनसा
अनुमोदतो नथी, मनथी. २१. हुं करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, मनथी. २२. हुं करतो नथी, करावतो नथी, वचनथी. २३. हुं करतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, वचनथी. २४. हुं करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, वचनथी. २५. हुं करतो नथी, करावतो नथी, कायाथी. २६. हुं करतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, कायाथी. २७. हुं करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, कायाथी. २८.
हुं करतो नथी मनथी, वचनथी तथा कायाथी. २९. हुं करावतो नथी मनथी, वचनथी तथा कायाथी. ३०. हुं अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी मनथी, वचनथी तथा कायाथी. ३१.
हुं करतो नथी मनथी तथा वचनथी. ३२. हुं करावतो नथी मनथी तथा वचनथी. ३३. हुं अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी मनथी तथा वचनथी. ३४. हुं करतो नथी मनथी तथा कायाथी. ३५. हुं करावतो नथी मनथी तथा कायाथी. ३६. हुं अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी मनथी तथा कायाथी. ३७. हुं करतो नथी वचनथी तथा कायाथी. ३८. हुं करावतो नथी वचनथी तथा कायाथी. ३९. हुं अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी वचनथी तथा कायाथी. ४०.
हुं करतो नथी मनथी. ४१. हुं करावतो नथी मनथी. ४२. हुं अन्य करतो होय तेने
२७ । न कारयामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, कायेन चेति २८ । न करोमि मनसा
Page 547 of 642
PDF/HTML Page 578 of 673
single page version
चेति ४२ । न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि मनसा चेति ४३ । न करोमि वाचा चेति ४४ । न कारयामि वाचा चेति ४५ । न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि वाचा चेति ४६ । न करोमि कायेन चेति ४७ । न कारयामि कायेन चेति ४८ । न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि कायेन चेति ४९ ।
इत्यालोचनाकल्पः समाप्तः । अनुमोदतो नथी मनथी. ४३. हुं करतो नथी वचनथी. ४४. हुं करावतो नथी वचनथी. ४५. हुं अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी वचनथी. ४६. हुं करतो नथी कायाथी. ४७. हुं करावतो नथी कायाथी. ४८. हुं अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी कायाथी. ४९. (आ रीते, प्रतिक्रमणना जेवा ज आलोचनामां पण ४९ भंग कह्या.)
श्लोकार्थः — (निश्चयचारित्रने अंगीकार करनार कहे छे के — ) [मोहविलास- -विजृम्भितम् इदम् उदयत् कर्म] मोहना विलासथी फेलायेलुं जे आ उदयमान (उदयमां आवतुं) कर्म [सकलम् आलोच्य] ते समस्तने आलोचीने ( – ते सर्व कर्मनी आलोचना करीने – ) [निष्कर्मणि चैतन्य-आत्मनि आत्मनि आत्मना नित्यम् वर्ते] हुं निष्कर्म (अर्थात् सर्व कर्मोथी रहित) चैतन्यस्वरूप आत्मामां आत्माथी ज ( – पोताथी ज – ) निरंतर वर्तुं छुं.
भावार्थः — वर्तमान काळमां कर्मनो उदय आवे तेना विषे ज्ञानी एम विचारे छे के — पूर्वे जे कर्म बांध्युं हतुं तेनुं आ कार्य छे, मारुं तो आ कार्य नथी. हुं आनो कर्ता नथी, हुं तो शुद्धचैतन्यमात्र आत्मा छुं. तेनी दर्शनज्ञानरूप प्रवृत्ति छे. ते दर्शनज्ञानरूप प्रवृत्ति वडे हुं आ उदयमां आवेला कर्मनो देखनार-जाणनार छुं. मारा स्वरूपमां ज हुं वर्तुं छुं. आवुं अनुभवन करवुं ते ज निश्चयचारित्र छे. २२७.
आ रीते आलोचनाकल्प समाप्त थयो. (हवे टीकामां प्रत्याख्यानकल्प अर्थात
(प्रत्याख्यान करनार कहे छे केः — )
Page 548 of 642
PDF/HTML Page 579 of 673
single page version
न करिष्यामि, न कारयिष्यामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि, मनसा च वाचा च कायेन चेति १ । न करिष्यामि, न कारयिष्यामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि, मनसा च वाचा चेति २ । न करिष्यामि, न कारयिष्यामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि, मनसा च कायेन चेति ३ । न करिष्यामि, न कारयिष्यामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि, वाचा च कायेन चेति ४ । न करिष्यामि, न कारयिष्यामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि, मनसा चेति ५ । न करिष्यामि, न कारयिष्यामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि, वाचा चेति ६ । न करिष्यामि, न कारयिष्यामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि, कायेन चेति ७ । न करिष्यामि, न कारयिष्यामि, मनसा च वाचा च कायेन चेति ८ । न करिष्यामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि, मनसा च वाचा च कायेन चेति ९ । न कारयिष्यामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि, मनसा च वाचा च कायेन चेति १० । न करिष्यामि, न कारयिष्यामि, मनसा च वाचा चेति ११ । न करिष्यामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि, मनसा च वाचा चेति १२ । न कारयिष्यामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं
हुं (भविष्यमां कर्म) करीश नहि, करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, मनथी, वचनथी तथा कायाथी. १.
हुं (भविष्यमां कर्म) करीश नहि, करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, मनथी तथा वचनथी. २. हुं करीश नहि, करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, मनथी तथा कायाथी. ३. हुं करीश नहि, करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, वचनथी तथा कायाथी. ४.
हुं करीश नहि, करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, मनथी. ५. हुं करीश नहि, करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, वचनथी. ६. हुं करीश नहि, करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, कायाथी. ७.
हुं करीश नहि, करावीश नहि, मनथी, वचनथी तथा कायाथी. ८. हुं करीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, मनथी, वचनथी तथा कायाथी. ९. हुं करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, मनथी, वचनथी तथा कायाथी. १०.
हुं करीश नहि, करावीश नहि, मनथी तथा वचनथी. ११. हुं करीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, मनथी तथा वचनथी. १२. हुं करावीश नहि, अन्य
Page 549 of 642
PDF/HTML Page 580 of 673
single page version
समनुज्ञास्यामि, मनसा च वाचा चेति १३ । न करिष्यामि, न कारयिष्यामि,
मनसा च कायेन चेति १४ । न करिष्यामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि, मनसा
च कायेन चेति १५ । न कारयिष्यामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि, मनसा चग
कायेन चेति १६ । न करिष्यामि, न कारयिष्यामि, वाचा च कायेन चेति १७ ।
न करिष्यामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि, वाचा च कायेन चेति १८ ।
न कारयिष्यामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि, वाचा च कायेन चेति १९ ।
न करिष्यामि, न कारयिष्यामि, मनसा चेति २० । न करिष्यामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं
समनुज्ञास्यामि, मनसा चेति २१ । न कारयिष्यामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि,
मनसा चेति २२ । न करिष्यामि, न कारयिष्यामि, वाचा चेति २३ । न करिष्यामि,
न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि, वाचा चेति २४ । न कारयिष्यामि, न
कुर्वन्तमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि, वाचा चेति २५ । न करिष्यामि, न कारयिष्यामि, कायेन
चेति २६ । न करिष्यामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि, कायेन चेति २७ ।
न कारयिष्यामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि, कायेन चेति २८ । न करिष्यामि,
करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, मनथी तथा वचनथी. १३. हुं करीश नहि, करावीश नहि, मनथी तथा कायाथी. १४. हुं करीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, मनथी तथा कायाथी. १५. हुं करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नही, मनथी तथा कायाथी. १६. हुं करीश नहि, करावीश नहि, वचनथी तथा कायाथी. १७. हुं करीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, वचनथी तथा कायाथी. १८. हुं करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, वचनथी तथा कायाथी. १९.
हुं करीश नहि, करावीश नहि, मनथी. २०. हुं करीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, मनथी. २१. हुं करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, मनथी. २२. हुं करीश नहि, करावीश नहि, वचनथी. २३. हुं करीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, वचनथी. २४. हुं करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, वचनथी. २५. हुं करीश नहि, करावीश नहि, कायाथी. २६. हुं करीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, कायाथी. २७. हुं करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, कायाथी. २८.