कहानजैनशास्त्रमाळा ]
शुभाशुभजीवपरिणामनिमित्तत्वे सति कारणभेदात्, शुभाशुभपुद्गलपरिणाममयत्वे सति स्वभावभेदात्, शुभाशुभफलपाकत्वे सत्यनुभवभेदात्, शुभाशुभमोक्षबन्धमार्गाश्रितत्वे सत्याश्रय- भेदात् चैकमपि कर्म किञ्चिच्छुभं किञ्चिदशुभमिति केषाञ्चित्किल पक्षः । स तु सप्रतिपक्षः । तथाहि — शुभोऽशुभो वा जीवपरिणामः केवलाज्ञानमयत्वादेकः, तदेकत्वे सति कारणाभेदात् एकं कर्म । शुभोऽशुभो वा पुद्गलपरिणामः केवलपुद्गलमयत्वादेकः, तदेकत्वे सति स्वभावाभेदादेकं कर्म । शुभोऽशुभो वा फलपाकः केवलपुद्गलमयत्वादेकः, तदेकत्वे सत्यनुभावाभेदादेकं कर्म ।
गाथार्थः — [ अशुभं कर्म ] अशुभ कर्म [ कुशीलं ] कुशील छे ( – खराब छे) [ अपि च ] अने [ शुभकर्म ] शुभ कर्म [ सुशीलम् ] सुशील छे ( – सारुं छे) एम [ जानीथ ] तमे जाणो छो! [ तत् ] ते [ सुशीलं ] सुशील [ कथं ] केम [ भवति ] होय [ यत् ] के जे [ संसारं ] (जीवने) संसारमां [ प्रवेशयति ] प्रवेश करावे छे?
टीकाः — कोई कर्मने शुभ जीवपरिणाम निमित्त होवाथी अने कोई कर्मने अशुभ जीवपरिणाम निमित्त होवाथी कर्मना कारणमां भेद – तफावत छे (अर्थात् कारण जुदां जुदां छे); कोई कर्म शुभ पुद्गलपरिणाममय अने कोई कर्म अशुभ पुद्गलपरिणाममय होवाथी कर्मना स्वभावमां भेद छे; कोई कर्मनो शुभ फळरूपे अने कोई कर्मनो अशुभ फळरूपे विपाक थतो होवाथी कर्मना अनुभवमां ( – स्वादमां) भेद छे; कोई कर्म शुभ (सारा) एवा मोक्षमार्गने आश्रित होवाथी अने कोई कर्म अशुभ (खराब) एवा बंधमार्गने आश्रित होवाथी कर्मना आश्रयमां भेद छे. माटे — जोके (परमार्थे) कर्म एक ज छे तोपण — केटलाकनो एवो पक्ष छे के कोई कर्म शुभ छे अने कोई कर्म अशुभ छे. परंतु ते (पक्ष) प्रतिपक्ष सहित छे. ते प्रतिपक्ष (अर्थात् व्यवहारपक्षनो निषेध करनार निश्चयपक्ष) आ प्रमाणे छेः —
शुभ के अशुभ जीवपरिणाम केवळ अज्ञानमय होवाथी एक छे; ते एक होवाथी कर्मना कारणमां भेद नथी; माटे कर्म एक ज छे. शुभ के अशुभ पुद्गलपरिणाम केवळ पुद्गलमय होवाथी एक छे; ते एक होवाथी कर्मना स्वभावमां भेद नथी; माटे कर्म एक ज छे. शुभ के अशुभ फळरूपे थतो विपाक केवळ पुद्गलमय होवाथी एक छे; ते एक होवाथी कर्मना अनुभवमां ( – स्वादमां) भेद नथी; माटे कर्म एक ज छे. शुभ (सारो) एवो मोक्षमार्ग तो केवळ जीवमय होवाथी अने अशुभ (खराब) एवो बंधमार्ग तो केवळ पुद्गलमय होवाथी