Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 150.

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समयसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

तत्त्वतः कुत्सितशीलां विज्ञाय तया सह रागसंसर्गौ प्रतिषेधयति

अथोभयं कर्म बन्धहेतुं प्रतिषेध्यं चागमेन साधयति
रत्तो बंधदि कम्मं मुच्चदि जीवो विरागसंपत्तो
एसो जिणोवदेसो तम्हा कम्मेसु मा रज्ज ।।१५०।।
रक्तो बध्नाति कर्म मुच्यते जीवो विरागसम्प्राप्तः
एषो जिनोपदेशः तस्मात् कर्मसु मा रज्यस्व ।।१५०।।

यः खलु रक्तोऽवश्यमेव कर्म बध्नीयात् विरक्त एव मुच्येतेत्ययमागमः स सामान्येन रक्तत्वनिमित्तत्वाच्छुभमशुभमुभयं कर्माविशेषेण बन्धहेतुं साधयति, तदुभयमपि कर्म प्रतिषेधयति च


परमार्थे बूरी जाणीने तेनी साथे राग तथा संसर्ग करतो नथी.

भावार्थःहाथीने पकडवा हाथणी राखवामां आवे छे; हाथी कामांध थयो थको ते हाथणीरूपी कूटणी साथे राग तथा संसर्ग करे छे तेथी पकडाई जईने पराधीन थईने दुःख भोगवे छे, अने जो चतुर हाथी होय तो तेनी साथे राग तथा संसर्ग करतो नथी; तेवी रीते अज्ञानी जीव कर्मप्रकृतिने सारी समजीने तेनी साथे राग तथा संसर्ग करे छे तेथी बंधमां पडी पराधीन थईने संसारनां दुःख भोगवे छे, अने जो ज्ञानी होय तो तेनी साथे राग तथा संसर्ग कदी करतो नथी.

हवे, बन्ने कर्मो बंधनां कारण छे अने निषेधवायोग्य छे एम आगमथी सिद्ध करे छेः

जीव रक्त बांधे कर्मने, वैराग्यप्राप्त मुकाय छे,
ए जिन तणो उपदेश; तेथी न राच तुं कर्मो विषे. १५०.

गाथार्थः[ रक्तः जीवः ] रागी जीव [ कर्म ] कर्म [ बध्नाति ] बांधे छे अने [ विरागसम्प्राप्तः ] वैराग्यने पामेलो जीव [ मुच्यते ] कर्मथी छूटे छे[ एषः ][ जिनोपदेशः ] जिनभगवाननो उपदेश छे; [ तस्मात् ] माटे (हे भव्य जीव!) तुं [ कर्मसु ] कर्मोमां [ मा रज्यस्व ] प्रीतिराग न कर.

टीकाः‘‘रक्त अर्थात् रागी अवश्य कर्म बांधे अने विरक्त अर्थात् विरागी ज कर्मथी छूटे’’ एवुं जे आ आगमवचन छे ते, सामान्यपणे रागीपणाना निमित्तपणाने लीधे शुभ अने अशुभ बन्ने कर्मने अविशेषपणे बंधनां कारण तरीके सिद्ध करे छे अने

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