Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 151.

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समयसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
अथ ज्ञानं मोक्षहेतुं साधयति
परमट्ठो खलु समओ सुद्धो जो केवली मुणी णाणी
तम्हि ट्ठिदा सहावे मुणिणो पावंति णिव्वाणं ।।१५१।।
परमार्थः खलु समयः शुद्धो यः केवली मुनिर्ज्ञानी
तस्मिन् स्थिताः स्वभावे मुनयः प्राप्नुवन्ति निर्वाणम् ।।१५१।।

ज्ञानं हि मोक्षहेतुः, ज्ञानस्य शुभाशुभकर्मणोरबन्धहेतुत्वे सति मोक्षहेतुत्वस्य तथोपपत्तेः तत्तु सकलकर्मादिजात्यन्तरविविक्तचिज्जातिमात्रः परमार्थ आत्मेति यावत् स तु युगपदेकीभाव- प्रवृत्तज्ञानगमनमयतया समयः, सकलनयपक्षासङ्कीर्णैकज्ञानतया शुद्धः, केवलचिन्मात्रवस्तुतया केवली, मननमात्रभावतया मुनिः, स्वयमेव ज्ञानतया ज्ञानी, स्वस्य भवनमात्रतया स्वभावः


शके?’एम कोईने शंका थाय तो तेनुं समाधान आचार्यदेवे कर्युं छे केःसर्व कर्मनो त्याग थये ज्ञाननुं महा शरण छे. ते ज्ञानमां लीन थतां सर्व आकुळता रहित परमानंदनो भोगवटो होय छेजेनो स्वाद ज्ञानी ज जाणे छे. अज्ञानी कषायी जीव कर्मने ज सर्वस्व जाणी तेमां लीन थई रह्यो छे, ज्ञानानंदनो स्वाद नथी जाणतो. १०४.

हवे, ज्ञान मोक्षनुं कारण छे एम सिद्ध करे छेः

परमार्थ छे नकी, समय छे, शुध, केवळी, मुनि, ज्ञानी छे,
एवा स्वभावे स्थित मुनिओ मोक्षनी प्राप्ति करे. १५१.

गाथार्थः[ खलु ] निश्चयथी [ यः ] जे [ परमार्थः ] परमार्थ (परम पदार्थ) छे, [ समयः ] समय छे, [ शुद्धः ] शुद्ध छे, [ केवली ] केवळी छे, [ मुनिः ] मुनि छे, [ ज्ञानी ] ज्ञानी छे, [ तस्मिन् स्वभावे ] ते स्वभावमां [ स्थिताः ] स्थित [ मुनयः ] मुनिओ [ निर्वाणं ] निर्वाणने [ प्राप्नुवन्ति ] पामे छे.

टीकाःज्ञान मोक्षनुं कारण छे, केम के ज्ञान शुभाशुभ कर्मोना बंधनुं कारण नहि होवाथी तेने ए रीते मोक्षनुं कारणपणुं बने छे. ते ज्ञान, समस्त कर्म आदि अन्य जातिओथी भिन्न चैतन्य-जातिमात्र परमार्थ (परम पदार्थ) छेआत्मा छे. ते (आत्मा) एकीसाथे (युगपद्) एकीभावे (एकत्वपूर्वक) प्रवर्ततां एवां जे ज्ञान अने गमन (परिणमन) ते-स्वरूप होवाथी समय छे, सकळ नयपक्षोथी अमिलित (अमिश्रित) एवा एक ज्ञानस्वरूप होवाथी शुद्ध छे, केवळ चिन्मात्र वस्तुस्वरूप होवाथी केवळी छे, फक्त मननमात्र (ज्ञानमात्र) भावस्वरूप

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