Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 153.

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समयसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
अथ ज्ञानाज्ञाने मोक्षबन्धहेतू नियमयति
वदणियमाणि धरंता सीलाणि तहा तवं च कुव्वंता
परमट्ठबाहिरा जे णिव्वाणं ते ण विंदंति ।।१५३।।
व्रतनियमान् धारयन्तः शीलानि तथा तपश्च कुर्वन्तः
परमार्थबाह्या ये निर्वाणं ते न विन्दन्ति ।।१५३।।

ज्ञानमेव मोक्षहेतुः, तदभावे स्वयमज्ञानभूतानामज्ञानिनामन्तर्व्रतनियमशीलतपःप्रभृति- शुभकर्मसद्भावेऽपि मोक्षाभावात् अज्ञानमेव बन्धहेतुः, तदभावे स्वयं ज्ञानभूतानां ज्ञानिनां बहिर्व्रतनियमशीलतपःप्रभृतिशुभकर्मासद्भावेऽपि मोक्षसद्भावात्


तप आदि कर्मो बंधनां कारण होवाने लीधे ते कर्मोने ‘बाळ’ एवी संज्ञा आपीने निषेध्यां होवाथी ज्ञान ज मोक्षनुं कारण ठरे छे.

भावार्थःज्ञान विना करायेलां तप तथा व्रतने सर्वज्ञदेवे बाळतप तथा बाळव्रत (अर्थात् अज्ञानतप तथा अज्ञानव्रत) कह्यां छे, माटे मोक्षनुं कारण ज्ञान ज छे.

ज्ञान ज मोक्षनो हेतु छे अने अज्ञान ज बंधनो हेतु छे एवो नियम छे एम हवे कहे छेः

व्रतनियमने धारे भले, तपशीलने पण आचरे,
परमार्थथी जे बाह्य ते निर्वाणप्राप्ति नहीं करे. १५३.

गाथार्थः[ व्रतनियमान् ] व्रत अने नियमो [ धारयन्तः ] धारण करता होवा छतां [ तथा ] तेम ज [ शीलानि च तपः ] शील अने तप [ कुर्वन्तः ] करता होवा छतां [ ये ] जेओ [ परमार्थबाह्याः ] परमार्थथी बाह्य छे (अर्थात् परम पदार्थरूप ज्ञाननुं एटले के ज्ञानस्वरूप आत्मानुं जेमने श्रद्धान नथी) [ ते ] तेओ [ निर्वाणं ] निर्वाणने [ न विन्दन्ति ] पामता नथी.

टीकाःज्ञान ज मोक्षनो हेतु छे; कारण के तेना (ज्ञानना) अभावमां, पोते ज अज्ञानरूप थयेला अज्ञानीओने अंतरंगमां व्रत, नियम, शील, तप वगेरे शुभ कर्मोनो सद्भाव (हयाती) होवा छतां मोक्षनो अभाव छे. अज्ञान ज बंधनो हेतु छे; कारण के तेना अभावमां, पोते ज ज्ञानरूप थयेला ज्ञानीओने बाह्य व्रत, नियम, शील, तप वगेरे शुभ कर्मोनो असद्भाव होवा छतां मोक्षनो सद्भाव छे.

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