ज्ञानमेव मोक्षहेतुः, तदभावे स्वयमज्ञानभूतानामज्ञानिनामन्तर्व्रतनियमशीलतपःप्रभृति-
शुभकर्मसद्भावेऽपि मोक्षाभावात् । अज्ञानमेव बन्धहेतुः, तदभावे स्वयं ज्ञानभूतानां ज्ञानिनां
बहिर्व्रतनियमशीलतपःप्रभृतिशुभकर्मासद्भावेऽपि मोक्षसद्भावात् ।
तप आदि कर्मो बंधनां कारण होवाने लीधे ते कर्मोने ‘बाळ’ एवी संज्ञा आपीने निषेध्यां होवाथी ज्ञान ज मोक्षनुं कारण ठरे छे.
भावार्थः — ज्ञान विना करायेलां तप तथा व्रतने सर्वज्ञदेवे बाळतप तथा बाळव्रत (अर्थात् अज्ञानतप तथा अज्ञानव्रत) कह्यां छे, माटे मोक्षनुं कारण ज्ञान ज छे.
ज्ञान ज मोक्षनो हेतु छे अने अज्ञान ज बंधनो हेतु छे एवो नियम छे एम हवे कहे छेः —
गाथार्थः — [ व्रतनियमान् ] व्रत अने नियमो [ धारयन्तः ] धारण करता होवा छतां [ तथा ] तेम ज [ शीलानि च तपः ] शील अने तप [ कुर्वन्तः ] करता होवा छतां [ ये ] जेओ [ परमार्थबाह्याः ] परमार्थथी बाह्य छे (अर्थात् परम पदार्थरूप ज्ञाननुं एटले के ज्ञानस्वरूप आत्मानुं जेमने श्रद्धान नथी) [ ते ] तेओ [ निर्वाणं ] निर्वाणने [ न विन्दन्ति ] पामता नथी.
टीकाः — ज्ञान ज मोक्षनो हेतु छे; कारण के तेना ( – ज्ञानना) अभावमां, पोते ज अज्ञानरूप थयेला अज्ञानीओने अंतरंगमां व्रत, नियम, शील, तप वगेरे शुभ कर्मोनो सद्भाव (हयाती) होवा छतां मोक्षनो अभाव छे. अज्ञान ज बंधनो हेतु छे; कारण के तेना अभावमां, पोते ज ज्ञानरूप थयेला ज्ञानीओने बाह्य व्रत, नियम, शील, तप वगेरे शुभ कर्मोनो असद्भाव होवा छतां मोक्षनो सद्भाव छे.
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