Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Kalash: 117 Gatha: 173.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

आस्रव अधिकार
२७३
(अनुष्टुभ्)
सर्वस्यामेव जीवन्त्यां द्रव्यप्रत्ययसन्ततौ
कुतो निरास्रवो ज्ञानी नित्यमेवेति चेन्मतिः ।।११७।।
सव्वे पुव्वणिबद्धा दु पच्चया अत्थि सम्मदिट्ठिस्स
उवओगप्पाओगं बंधंते कम्मभावेण ।।१७३।।

स्पर्शे छे अर्थात् परिणतिने स्वरूप प्रति वारंवार वाळ्या करे छे. ए रीते सकळ परवृत्तिने उखेडीने केवळज्ञान प्रगटावे छे.

‘बुद्धिपूर्वक’ अने ‘अबुद्धिपूर्वक’नो अर्थ आ प्रमाणे छेःजे रागादिपरिणाम इच्छा सहित थाय ते बुद्धिपूर्वक छे अने जे रागादिपरिणाम इच्छा विना परनिमित्तनी बळजोरीथी थाय ते अबुद्धिपूर्वक छे. ज्ञानीने जे रागादिपरिणाम थाय छे ते बधाय अबुद्धिपूर्वक ज छे; सविकल्प दशामां थता रागादिपरिणामो ज्ञानीनी जाणमां छे तोपण अबुद्धिपूर्वक छे कारण के इच्छा विना थाय छे.

(राजमल्लजीए आ कळशनी टीका करतां ‘बुद्धिपूर्वक’ अने ‘अबुद्धिपूर्वक’नो आ प्रमाणे अर्थ लीधो छेःजे रागादिपरिणाम मन द्वारा, बाह्य विषयोने अवलंबीने, प्रवर्ते छे अने जेओ प्रवर्तता थका जीवने पोताने जणाय छे तेम ज बीजाने पण अनुमानथी जणाय छे ते परिणामो बुद्धिपूर्वक छे; अने जे रागादिपरिणाम इंद्रियमनना व्यापार सिवाय केवळ मोहना उदयना निमित्ते थाय छे अने जीवने जणाता नथी ते अबुद्धिपूर्वक छे. आ अबुद्धिपूर्वक परिणामने प्रत्यक्ष ज्ञानी जाणे छे अने तेमना अविनाभावी चिह्न वडे तेओ अनुमानथी पण जणाय छे.) ११६.

हवे शिष्यनी आशंकानो श्लोक कहे छेः

श्लोकार्थः[ सर्वस्याम् एव द्रव्यप्रत्ययसंततौ जीवन्त्यां ] ज्ञानीने समस्त द्रव्यास्रवनी संतति विद्यमान होवा छतां [ ज्ञानी ] ज्ञानी [ नित्यम् एव ] सदाय [ निरास्रवः ] निरास्रव छे [ कुतः ] एम शा कारणे कह्युं?’[ इति चेत् मतिः ] एम जो तारी बुद्धि छे (अर्थात् जो तने एवी आशंका थाय छे) तो हवे तेनो उत्तर कहेवामां आवे छे. ११७.

हवे, पूर्वोक्त आशंकाना उत्तरनी गाथा कहे छेः

जे सर्व पूर्वनिबद्ध प्रत्यय वर्तता सुद्रष्टिने,
उपयोगने प्रायोग्य बंधन कर्मभाव वडे करे. १७३.
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