कहानजैनशास्त्रमाळा ]
स्पर्शे छे अर्थात् परिणतिने स्वरूप प्रति वारंवार वाळ्या करे छे. ए रीते सकळ परवृत्तिने उखेडीने केवळज्ञान प्रगटावे छे.
‘बुद्धिपूर्वक’ अने ‘अबुद्धिपूर्वक’नो अर्थ आ प्रमाणे छेः — जे रागादिपरिणाम इच्छा सहित थाय ते बुद्धिपूर्वक छे अने जे रागादिपरिणाम इच्छा विना परनिमित्तनी बळजोरीथी थाय ते अबुद्धिपूर्वक छे. ज्ञानीने जे रागादिपरिणाम थाय छे ते बधाय अबुद्धिपूर्वक ज छे; सविकल्प दशामां थता रागादिपरिणामो ज्ञानीनी जाणमां छे तोपण अबुद्धिपूर्वक छे कारण के इच्छा विना थाय छे.
(राजमल्लजीए आ कळशनी टीका करतां ‘बुद्धिपूर्वक’ अने ‘अबुद्धिपूर्वक’नो आ प्रमाणे अर्थ लीधो छेः — जे रागादिपरिणाम मन द्वारा, बाह्य विषयोने अवलंबीने, प्रवर्ते छे अने जेओ प्रवर्तता थका जीवने पोताने जणाय छे तेम ज बीजाने पण अनुमानथी जणाय छे ते परिणामो बुद्धिपूर्वक छे; अने जे रागादिपरिणाम इंद्रियमनना व्यापार सिवाय केवळ मोहना उदयना निमित्ते थाय छे अने जीवने जणाता नथी ते अबुद्धिपूर्वक छे. आ अबुद्धिपूर्वक परिणामने प्रत्यक्ष ज्ञानी जाणे छे अने तेमना अविनाभावी चिह्न वडे तेओ अनुमानथी पण जणाय छे.) ११६.
हवे शिष्यनी आशंकानो श्लोक कहे छेः —
श्लोकार्थः — ‘[ सर्वस्याम् एव द्रव्यप्रत्ययसंततौ जीवन्त्यां ] ज्ञानीने समस्त द्रव्यास्रवनी संतति विद्यमान होवा छतां [ ज्ञानी ] ज्ञानी [ नित्यम् एव ] सदाय [ निरास्रवः ] निरास्रव छे [ कुतः ] एम शा कारणे कह्युं?’ — [ इति चेत् मतिः ] एम जो तारी बुद्धि छे (अर्थात् जो तने एवी आशंका थाय छे) तो हवे तेनो उत्तर कहेवामां आवे छे. ११७.
हवे, पूर्वोक्त आशंकाना उत्तरनी गाथा कहे छेः —