Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

आस्रव अधिकार
२७५

यतः सदवस्थायां तदात्वपरिणीतबालस्त्रीवत् पूर्वमनुपभोग्यत्वेऽपि विपाकावस्थायां प्राप्त- यौवनपूर्वपरिणीतस्त्रीवत् उपभोग्यत्वात् उपयोगप्रायोग्यं पुद्गलकर्मद्रव्यप्रत्ययाः सन्तोऽपि कर्मोदय- कार्यजीवभावसद्भावादेव बध्नन्ति ततो ज्ञानिनो यदि द्रव्यप्रत्ययाः पूर्वबद्धाः सन्ति, सन्तु; तथापि स तु निरास्रव एव, कर्मोदयकार्यस्य रागद्वेषमोहरूपस्यास्रवभावस्याभावे द्रव्यप्रत्ययानामबन्ध- हेतुत्वात् [ उपभोग्यानि ] उपभोग्य [ भवन्ति ] थाय छे [ तथा ] ते रीते, [ ज्ञानावरणादिभावैः ] ज्ञानावरणादि


भावे [ सप्ताष्टविधानि भूतानि ] सात-आठ प्रकारनां थयेलां एवां कर्मोने [ बध्नाति ] बांधे छे. [ सन्ति तु ] सत्ता-अवस्थामां तेओ [ निरुपभोग्यानि ] निरुपभोग्य छे अर्थात् भोगववायोग्य नथी [ यथा ] जेम [ इह ] जगतमां [ बाला स्त्री ] बाळ स्त्री [ पुरुषस्य ] पुरुषने निरुपभोग्य छे तेम; [ तानि ] तेओ [ उपभोग्यानि ] उपभोग्य अर्थात् भोगववायोग्य थतां [ बध्नाति ] बंधन करे छे [ यथा ] जेम [ तरुणी स्त्री ] तरुण स्त्री [ नरस्य ] पुरुषने बांधे छे तेम. [ एतेन तु कारणेन ] कारणथी [ सम्यग्दृष्टिः ] सम्यग्द्रष्टिने [ अबन्धकः ] अबंधक [ भणितः ] कह्यो छे, कारण के [ आस्रवभावाभावे ] आस्रवभावना अभावमां [ प्रत्ययाः ] प्रत्ययोने [ बन्धकाः ] (कर्मना) बंधक [ न भणिताः ] कह्या नथी.

टीकाःजेम प्रथम तो तत्काळनी परणेली बाळ स्त्री अनुपभोग्य छे परंतु यौवनने पामेली एवी ते पहेलांनी परणेली स्त्री यौवन-अवस्थामां उपभोग्य थाय छे अने जे रीते उपभोग्य थाय ते अनुसारे, पुरुषना रागभावने लीधे ज, पुरुषने बंधन करे छेवश करे छे, तेवी रीते जेओ प्रथम तो सत्ता-अवस्थामां अनुपभोग्य छे परंतु विपाक-अवस्थामां उपभोगयोग्य थाय छे एवा पुद्गलकर्मरूप द्रव्यप्रत्ययो होवा छतां तेओ उपयोगना प्रयोग अनुसारे (अर्थात् द्रव्यप्रत्ययना उपभोगमां उपयोग जोडाय तेना प्रमाणमां), कर्मोदयना कार्यरूप जीवभावना सद्भावने लीधे ज, बंधन करे छे. माटे ज्ञानीने जो पूर्वबद्ध द्रव्यप्रत्ययो विद्यमान छे, तो भले हो; तथापि ते (ज्ञानी) तो निरास्रव ज छे, कारण के कर्मोदयनुं कार्य जे रागद्वेषमोहरूप आस्रवभाव तेना अभावमां द्रव्यप्रत्ययो बंधनां कारण नथी. (जेम पुरुषने रागभाव होय तो ज जुवानी पामेली स्त्री तेने वश करी शके छे तेम जीवने आस्रवभाव होय तो ज उदयप्राप्त द्रव्यप्रत्ययो नवो बंध करी शके छे.)

भावार्थःद्रव्यास्रवोना उदयने अने जीवना रागद्वेषमोहभावोने निमित्त-नैमित्तिक- भाव छे. द्रव्यास्रवोना उदय विना जीवने आस्रवभाव थई शके नहि अने तेथी बंध पण थई शके नहि. द्रव्यास्रवोनो उदय थतां जीव जे प्रकारे तेमां जोडाय अर्थात् जे प्रकारे तेने भावास्रव थाय ते प्रकारे द्रव्यास्रवो नवीन बंधनां कारण थाय छे. जीव भावास्रव न करे तो तेने नवो बंध थतो नथी.