Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 194.

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समयसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
अथ भावनिर्जरास्वरूपमावेदयति
दव्वे उवभुंजंते णियमा जायदि सुहं व दुक्खं वा
तं सुहदुक्खमुदिण्णं वेददि अध णिज्जरं जादि ।।१९४।।
द्रव्ये उपभुज्यमाने नियमाज्जायते सुखं वा दुःखं वा
तत्सुखदुःखमुदीर्णं वेदयते अथ निर्जरां याति ।।१९४।।

उपभुज्यमाने सति हि परद्रव्ये, तन्निमित्तः सातासातविकल्पानतिक्रमणेन त्यां सुधीजेम रोगी रोगनी पीडा सही शके नहि त्यारे तेनो औषधि आदि वडे इलाज करे छे तेमभोगोपभोगसामग्री वडे विषयरूप इलाज करे छे; परंतु जेम रोगी रोगने के औषधिने भली जाणतो नथी तेम सम्यग्द्रष्टि चारित्रमोहना उदयने के भोगोपभोगसामग्रीने भली जाणतो नथी. वळी निश्चयथी तो, ज्ञातापणाने लीधे सम्यग्द्रष्टि विरागी उदयमां आवेला कर्मने मात्र जाणी ज ले छे, तेना प्रत्ये तेने रागद्वेषमोह नथी. आ रीते रागद्वेषमोह विना ज तेना फळने भोगवतो होवाथी तेने कर्म आस्रवतुं नथी, आस्रव विना आगामी बंध थतो नथी अने उदयमां आवेलुं कर्म तो पोतानो रस दईने खरी ज जाय छे कारण के उदयमां आव्या पछी कर्मनी सत्ता रही शके ज नहि. आ रीते तेने नवो बंध थतो नथी अने उदयमां आवेलुं कर्म निर्जरी गयुं तेथी तेने केवळ निर्जरा ज थई. माटे सम्यग्द्रष्टि विरागीना भोगोपभोगने निर्जरानुं ज निमित्त कहेवामां आव्यो छे. पूर्व कर्म उदयमां आवीने तेनुं द्रव्य खरी गयुं ते द्रव्यनिर्जरा छे.

हवे भावनिर्जरानुं स्वरूप कहे छेः

वस्तु तणे उपभोग निश्चय सुख वा दुख थाय छे,
ए उदित सुखदुख भोगवे पछी निर्जरा थई जाय छे. १९४.

गाथार्थः[ द्रव्ये उपभुज्यमाने ] वस्तु भोगववामां आवतां, [ सुखं वा दुःखं वा ] सुख अथवा दुःख [ नियमात् ] नियमथी [ जायते ] उत्पन्न थाय छे; [ उदीर्णं ] उदय थयेला अर्थात् उत्पन्न थयेला [ तत् सुखदुःखम् ] ते सुखदुःखने [ वेदयते ] वेदे छेअनुभवे छे, [ अथ ] पछी [ निर्जरां याति ] ते (सुखदुःखरूप भाव) निर्जरी जाय छे.

टीकाःपरद्रव्य भोगववामां आवतां, तेना निमित्ते सुखरूप अथवा दुःखरूप जीवनो भाव नियमथी ज उदय थाय छे अर्थात् उत्पन्न थाय छे, कारण के वेदन शाता

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