Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Kalash: 136.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

निर्जरा अधिकार
३०९

सम्पन्नान् विषयान् सेवमानोऽपि रागादिभावानामभावेन विषयसेवनफलस्वामित्वाभावाद- सेवक एव, मिथ्यादृष्टिस्तु विषयानसेवमानोऽपि रागादिभावानां सद्भावेन विषयसेवनफलस्वामि- त्वात्सेवक एव

(मन्दाक्रान्ता)
सम्यग्दृष्टेर्भवति नियतं ज्ञानवैराग्यशक्तिः
स्वं वस्तुत्वं कलयितुमयं स्वान्यरूपाप्तिमुक्त्या
यस्माज्ज्ञात्वा व्यतिकरमिदं तत्त्वतः स्वं परं च
स्वस्मिन्नास्ते विरमति परात्सर्वतो रागयोगात्
।।१३६।।

उदयथी प्राप्त थयेला विषयोने सेवतो होवा छतां रागादिभावोना अभावने लीधे विषयसेवनना फळनुं स्वामीपणुं नहि होवाथी असेवक ज छे (अर्थात् सेवनारो नथी) अने मिथ्याद्रष्टि विषयोने नहि सेवतो होवा छतां रागादिभावोना सद्भावने लीधे विषयसेवनना फळनुं स्वामीपणुं होवाथी सेवक ज छे.

भावार्थःकोई शेठे पोतानी दुकान पर कोईने नोकर राख्यो. दुकाननो बधो वेपार- वणजखरीदवुं, वेचवुं वगेरे सर्व कामकाजनोकर करे छे तोपण ते वेपारी नथी कारण के ते वेपारनो अने वेपारना लाभ-नुकसाननो स्वामी नथी; ते तो मात्र नोकर छे, शेठनो कराव्यो बधुं कामकाज करे छे. जे शेठ छे ते वेपार संबंधी कांई कामकाज करतो नथी, घेर बेसी रहे छे तोपण ते वेपारनो अने वेपारना लाभ-नुकसाननो धणी होवाथी ते ज वेपारी छे. आ द्रष्टांत सम्यग्द्रष्टि अने मिथ्याद्रष्टि पर घटावी लेवुं. जेम नोकर वेपार करनारो नथी तेम सम्यग्द्रष्टि विषय सेवनारो नथी, अने जेम शेठ वेपार करनारो छे तेम मिथ्याद्रष्टि विषय सेवनारो छे.

हवे आगळनी गाथाओनी सूचनानुं काव्य कहे छेः

श्लोकार्थः[ सम्यग्दृष्टेः नियतं ज्ञान-वैराग्य-शक्तिः भवति ] सम्यग्द्रष्टिने नियमथी ज्ञान अने वैराग्यनी शक्ति होय छे; [ यस्मात् ] कारण के [ अयं ] ते (सम्यग्द्रष्टि जीव) [ स्व-अन्य- रूप-आप्ति-मुक्त्या ] स्वरूपनुं ग्रहण अने परनो त्याग करवानी विधि वडे [ स्वं वस्तुत्वं कलयितुम् ] पोताना वस्तुत्वनो (यथार्थ स्वरूपनो) अभ्यास करवा माटे, [ इदं स्वं च परं ] आ स्व छे (अर्थात् आत्मस्वरूप छे) अने आ पर छे [ व्यतिकरम् ] एवो भेद [ तत्त्वतः ] परमार्थे [ ज्ञात्वा ] जाणीने [ स्वस्मिन् आस्ते ] स्वमां रहे छे (टके छे) अने [ परात् रागयोगात् ]