Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 206.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

निर्जरा अधिकार
३२५
किञ्च
एदम्हि रदो णिच्चं संतुट्ठो होहि णिच्चमेदम्हि
एदेण होहि तित्तो होहदि तुह उत्तमं सोक्खं ।।२०६।।
एतस्मिन् रतो नित्यं सन्तुष्टो भव नित्यमेतस्मिन्
एतेन भव तृप्तो भविष्यति तवोत्तमं सौख्यम् ।।२०६।।

एतावानेव सत्य आत्मा यावदेतज्ज्ञानमिति निश्चित्य ज्ञानमात्र एव नित्यमेव रतिमुपैहि एतावत्येव सत्याशीः यावदेतज्ज्ञानमिति निश्चित्य ज्ञानमात्रेणैव नित्यमेव सन्तोषमुपैहि एतावदेव सत्यमनुभवनीयं यावदेतज्ज्ञानमिति निश्चित्य ज्ञानमात्रेणैव नित्यमेव तृप्तिमुपैहि अथैवं तव नित्यमेवात्मरतस्य, आत्मसन्तुष्टस्य, आत्मतृप्तस्य च वाचामगोचरं सौख्यं भविष्यति तत्तु तत्क्षण


आचार्यदेवे उपदेश कर्यो छे. ज्ञाननी ‘कळा’ कहेवाथी एम सूचन थाय छे केःज्यां सुधी पूर्ण कळा (केवळज्ञान) प्रगट न थाय त्यां सुधी ज्ञान हीनकळास्वरूपमतिज्ञानादिरूप छे; ज्ञाननी ते कळाना आलंबन वडे ज्ञाननो अभ्यास करवाथी केवळज्ञान अर्थात् पूर्ण कळा प्रगटे छे. १४३.

हवेनी गाथामां आ ज उपदेश विशेष करे छेः

आमां सदा प्रीतिवंत बन, आमां सदा संतुष्ट ने
आनाथी बन तुं तृप्त, तुजने सुख अहो! उत्तम थशे. २०६.

गाथार्थः(हे भव्य प्राणी!) तुं [ एतस्मिन् ] आमां (ज्ञानमां) [ नित्यं ] नित्य [ रतः ] रत अर्थात् प्रीतिवाळो था, [ एतस्मिन् ] आमां [ नित्यं ] नित्य [ सन्तुष्टः भव ] संतुष्ट था अने [ एतेन ] आनाथी [ तृप्तः भव ] तृप्त था; (आम करवाथी) [ तव ] तने [ उत्तमं सौख्यम् ] उत्तम सुख [ भविष्यति ] थशे.

टीकाः(हे भव्य!) एटलो ज सत्य (परमार्थस्वरूप) आत्मा छे जेटलुं आ ज्ञान छेएम निश्चय करीने ज्ञानमात्रमां ज सदाय रति (प्रीति, रुचि) पाम; एटलुं ज सत्य कल्याण छे जेटलुं आ ज्ञान छेएम निश्चय करीने ज्ञानमात्रथी ज सदाय संतोष पाम; एटलुं ज सत्य अनुभवनीय (अनुभव करवायोग्य) छे जेटलुं आ ज्ञान छेएम निश्चय करीने ज्ञानमात्रथी ज सदाय तृप्ति पाम. एम सदाय आत्मामां रत, आत्माथी संतुष्ट अने आत्माथी