किं वेदयते ? यदि कांक्षमाणवेद्यभावपृष्ठभाविनमन्यं भावं वेदयते, तदा तद्भवनात्पूर्वं स विनश्यति; कस्तं वेदयते ? यदि वेदकभावपृष्ठभावी भावोऽन्यस्तं वेदयते, तदा तद्भवनात्पूर्वं स विनश्यति; किं स वेदयते ? इति कांक्षमाणभाववेदनानवस्था । तां च विजानन् ज्ञानी न किञ्चिदेव कांक्षति ।
वेद्यते न खलु कांक्षितमेव ।
सर्वतोऽप्यतिविरक्तिमुपैति ।।१४७।।
विनाश पामी जतां, वेदकभाव शुं वेदे? जो एम कहेवामां आवे के कांक्षमाण वेद्यभावनी पछी उत्पन्न थता बीजा वेद्यभावने वेदे छे, तो (त्यां एम छे के) ते बीजो वेद्यभाव उत्पन्न थया पहेलां ज ते वेदकभाव नाश पामी जाय छे; पछी ते बीजा वेद्यभावने कोण वेदे? जो एम कहेवामां आवे के वेदकभावनी पछी उत्पन्न थतो बीजो वेदकभाव तेने वेदे छे, तो (त्यां एम छे के) ते बीजो वेदकभाव उत्पन्न थया पहेलां ज ते वेद्यभाव विणसी जाय छे; पछी ते बीजो वेदकभाव शुं वेदे? आ रीते कांक्षमाण भावना वेदननी अनवस्था छे. ते अनवस्थाने जाणतो ज्ञानी कांई पण वांछतो नथी.
भावार्थः — वेदकभाव अने वेद्यभावने काळभेद छे. ज्यारे वेदकभाव होय छे त्यारे वेद्यभाव होतो नथी अने ज्यारे वेद्यभाव होय छे त्यारे वेदकभाव होतो नथी. ज्यारे वेदकभाव आवे छे त्यारे वेद्यभाव विणसी गयो होय छे; पछी वेदकभाव कोने वेदे? अने ज्यारे वेद्यभाव आवे छे त्यारे वेदकभाव विणसी गयो होय छे; पछी वेदकभाव विना वेद्यने कोण वेदे? आवी अव्यवस्था जाणीने ज्ञानी पोते जाणनार ज रहे छे, वांछा करतो नथी. अहीं प्रश्न थाय छे के — आत्मा तो नित्य छे तेथी ते बन्ने भावोने वेदी शके छे; तो पछी ज्ञानी वांछा केम न करे? तेनुं समाधानः — वेद्य-वेदक भावो विभावभावो छे, स्वभावभाव नथी, तेथी तेओ विनाशिक छे; माटे वांछा करनारो एवो वेद्यभाव ज्यां आवे त्यां सुधीमां वेदकभाव (भोगवनारो भाव) नाश पामी जाय छे, अने बीजो वेदकभाव आवे त्यां सुधीमां वेद्यभाव नाश पामी जाय छे; ए रीते वांछित भोग तो थतो नथी. तेथी ज्ञानी निष्फळ वांछा केम करे? ज्यां मनोवांछित वेदातुं नथी त्यां वांछा करवी ते अज्ञान छे.
हवे आ अर्थनुं कळशरूप काव्य कहे छेः —
श्लोकार्थः — [ वेद्य-वेदक-विभाव-चलत्वात् ] वेद्य-वेदकरूप विभावभावोनुं चळपणुं
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