Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 224-227.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

निर्जरा अधिकार
३४७
पुरिसो जह को वि इहं वित्तिणिमित्तं तु सेवदे रायं
तो सो वि देदि राया विविहे भोगे सुहुप्पाए ।।२२४।।
एमेव जीवपुरिसो कम्मरयं सेवदे सुहणिमित्तं
तो सो वि देदि कम्मो विविहे भोगे सुहुप्पाए ।।२२५।।
जह पुण सो च्चिय पुरिसो वित्तिणिमित्तं ण सेवदे रायं
तो सो ण देदि राया विविहे भोगे सुहुप्पाए ।।२२६।।
एमेव सम्मदिट्ठी विसयत्थं सेवदे ण कम्मरयं
तो सो ण देदि कम्मो विविहे भोगे सुहुप्पाए ।।२२७।।
पुरुषो यथा कोऽपीह वृत्तिनिमित्तं तु सेवते राजानम्
तत्सोऽपि ददाति राजा विविधान् भोगान् सुखोत्पादकान् ।।२२४।।
एवमेव जीवपुरुषः कर्मरजः सेवते सुखनिमित्तम्
तत्तदपि ददाति कर्म विविधान् भोगान् सुखोत्पादकान् ।।२२५।।
हवे आ अर्थने द्रष्टांतथी द्रढ करे छेः
ज्यम जगतमां को पुरुष वृत्तिनिमित्त सेवे भूपने,
तो भूप पण सुखजनक विधविध भोग आपे पुरुषने; २२४.
त्यम जीवपुरुष पण कर्मरजनुं सुखअरथ सेवन करे,
तो कर्म पण सुखजनक विधविध भोग आपे जीवने. २२५.
वळी ते ज नर ज्यम वृत्ति अर्थे भूपने सेवे नहीं,
तो भूप पण सुखजनक विधविध भोगने आपे नहीं; २२६.
सुद्रष्टिने त्यम विषय अर्थे कर्मरजसेवन नथी,
तो कर्म पण सुखजनक विधविध भोगने देतां नथी. २२७.

गाथार्थः[ यथा ] जेम [ इह ] आ जगतमां [ कः अपि पुरुषः ] कोई पुरुष [ वृत्तिनिमित्तं तु ] आजीविका अर्थे [ राजानम् ] राजाने [ सेवते ] सेवे छे [ तद् ] तो [ सः राजा अपि ] ते राजा पण तेने [ सुखोत्पादकान् ] सुख उत्पन्न करनारा [ विविधान् ] अनेक प्रकारना