योऽयं नित्यमेव परिणामात्मनि स्वभावेऽवतिष्ठमानत्वादुत्पादव्ययध्रौव्यैक्यानुभूतिलक्षणया सत्तयानुस्यूतश्चैतन्यस्वरूपत्वान्नित्योदितविशददृशिज्ञप्तिज्योतिरनन्तधर्माधिरूढैकधर्मित्वादुद्योतमानद्रव्यत्वः क्रमाक्रमप्रवृत्तविचित्रभावस्वभावत्वादुत्सङ्गितगुणपर्यायः स्वपराकारावभासनसमर्थत्वादुपात्तवैश्व- रूप्यैकरूपः प्रतिविशिष्टावगाहगतिस्थितिवर्तनानिमित्तत्वरूपित्वाभावादसाधारणचिद्रूपतास्वभाव-
गाथार्थः — हे भव्य! [जीवः] जे जीव [चरित्रदर्शनज्ञानस्थितः] दर्शन-ज्ञान-चारित्रमां स्थित थई रह्यो छे [तं] तेने [हि] निश्चयथी [स्वसमयं] स्वसमय [जानीहि] जाण; [च] अने जे जीव [पुद्गलकर्मप्रदेशस्थितं] पुद्गलकर्मना प्रदेशोमां स्थित थयेल छे [तं] तेने [परसमयं] परसमय [जानीहि] जाण.
टीकाः — ‘समय’ शब्दनो अर्थ आ प्रमाणे छेः ‘सम्’ तो उपसर्ग छे, तेनो अर्थ ‘एकपणुं’ एवो छे; अने ‘अय् गतौ’ धातु छे एनो गमन अर्थ पण छे अने ज्ञान अर्थ पण छे; तेथी एकसाथे ज (युगपद्) जाणवुं तथा परिणमन करवुं ए बे क्रियाओ जे एकत्वपूर्वक करे ते समय छे. आ जीव नामनो पदार्थ एकत्वपूर्वक एक ज वखते परिणमे पण छे अने जाणे पण छे तेथी ते समय छे. आ जीव-पदार्थ केवो छे? सदाय परिणामस्वरूप स्वभावमां रहेलो होवाथी, उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यनी एकतारूप अनुभूति जेनुं लक्षण छे एवी सत्ताथी सहित छे. आ विशेषणथी, जीवनी सत्ता नहि माननार नास्तिकवादीओनो मत खंडित थयो तथा पुरुषने (जीवने) अपरिणामी माननार सांख्यवादीओनो व्यवच्छेद, परिणमनस्वभाव कहेवाथी, थयो. नैयायिको अने वैशेषिको सत्ताने नित्य ज माने छे अने बौद्धो सत्ताने क्षणिक ज माने छे; तेमनुं निराकरण, सत्ताने उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यरूप कहेवाथी थयुं. वळी जीव केवो छे? चैतन्यस्वरूपपणाथी नित्य-उद्योतरूप निर्मळ स्पष्ट दर्शनज्ञान-ज्योतिस्वरूप छे (कारण के चैतन्यनुं परिणमन दर्शनज्ञानस्वरूप छे). आ विशेषणथी, चैतन्यने ज्ञानाकारस्वरूप नहि माननार सांख्यमतीओनुं निराकरण थयुं. वळी ते केवो छे? अनंत धर्मोमां रहेलुं जे एक धर्मीपणुं तेने लीधे जेने द्रव्यपणुं प्रगट छे (कारण के अनंत धर्मोनी एकता ते द्रव्यपणुं छे). आ विशेषणथी, वस्तुने धर्मोथी रहित माननार बौद्धमतीनो निषेध थयो. वळी ते केवो छे? क्रमरूप अने अक्रमरूप प्रवर्तता अनेक भावो जेनो स्वभाव होवाथी जेणे गुणपर्यायो अंगीकार कर्या छे. (पर्याय क्रमवर्ती होय छे अने गुण सहवर्ती होय छे; सहवर्तीने अक्रमवर्ती पण कहे छे.) आ विशेषणथी, पुरुषने निर्गुण माननार सांख्यमतीओनो निरास थयो. वळी ते केवो छे? पोताना अने परद्रव्योना आकारोने प्रकाशवानुं सामर्थ्य होवाथी जेणे समस्त रूपने प्रकाशनारुं एकरूपपणुं
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