Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

बंध अधिकार
३७५

यथा स एव पुरुषः, स्नेहे सर्वस्मिन्नपनीते सति, तस्यामेव स्वभावत एव रजोबहुलायां भूमौ तदेव शस्त्रव्यायामकर्म कुर्वाणः, तैरेवानेकप्रकारकरणैस्तान्येव सचित्ताचित्तवस्तूनि निघ्नन्, रजसा न बध्यते, स्नेहाभ्यङ्गस्य बन्धहेतोरभावात्; तथा सम्यग्द्रष्टिः, आत्मनि रागादीनकुर्वाणः सन्, तस्मिन्नेव स्वभावत एव कर्मयोग्यपुद्गलबहुले लोके तदेव कायवाङ्मनःकर्म कुर्वाणः, तैरेवानेकप्रकारकरणैस्तान्येव सचित्ताचित्तवस्तूनि निघ्नन्, कर्मरजसा न बध्यते, रागयोगस्य बन्धहेतोरभावात्


बहु रजवाळी [स्थाने] जग्यामां [शस्त्रैः] शस्त्रो वडे [व्यायामम् करोति] व्यायाम करे छे, [तथा] अने [तालीतलकदलीवंशपिण्डीः] ताड, तमाल, केळ, वांस, अशोक वगेरे वृक्षोने [छिनत्ति] छेदे छे, [भिनत्ति च] भेदे छे, [सचित्ताचित्तानां] सचित्त तथा अचित्त [द्रव्याणाम्] द्रव्योनो [उपघातम्] उपघात [करोति] करे छे; [नानाविधैः करणैः] ए रीते नाना प्रकारनां करणो वडे [उपघातं कुर्वतः] उपघात करता [तस्य] ते पुरुषने [रजोबन्धः] रजनो बंध [खलु] खरेखर [किम्प्रत्ययिकः] कया कारणे [न] नथी थतो [निश्चयतः] ते निश्चयथी [चिन्त्यताम्] विचारो. [तस्मिन् नरे] ते पुरुषमां [यः सः स्नेहभावः तु] जे तेल आदिनो चीकाशभाव होय [तेन] तेनाथी [तस्य] तेने [रजोबन्धः] रजनो बंध थाय छे [निश्चयतः विज्ञेयं] एम निश्चयथी जाणवुं, [शेषाभिः कायचेष्टाभिः] शेष कायानी चेष्टाओथी [न] नथी थतो. (माटे ते पुरुषमां चीकाशना अभावना कारणे ज तेने रज चोंटती नथी.) [एवं] एवी रीते[बहुविधेसु योगेषु] बहु प्रकारना योगोमां [वर्तमानः] वर्ततो [सम्यग्द्रष्टिः] सम्यग्द्रष्टि [उपयोगे] उपयोगमां [रागादीन् अकुर्वन्] रागादिकने नहि करतो थको [रजसा] कर्मरजथी [न लिप्यते] लेपातो नथी.

टीकाःजेवी रीते ते ज पुरुष, समस्त स्नेहने (अर्थात् सर्व चीकाशनेतेल आदिने) दूर करवामां आवतां, ते ज स्वभावथी ज बहु रजथी भरेली भूमिमां (अर्थात् स्वभावथी ज बहु रजथी भरेली ते ज भूमिमां) ते ज शस्त्रव्यायामरूपी कर्म (क्रिया) करतो, ते ज अनेक प्रकारनां करणो वडे ते ज सचित्त-अचित्त वस्तुओनो घात करतो, रजथी बंधातो लेपातो नथी, कारण के तेने रजबंधनुं कारण जे तेल आदिनुं मर्दन तेनो अभाव छे; तेवी रीते सम्यग्द्रष्टि, पोतामां रागादिकने नहि करतो थको, ते ज स्वभावथी ज बहु कर्मयोग्य पुद्गलोथी भरेला लोकमां ते ज काय-वचन-मननुं कर्म (अर्थात् काय-वचन-मननी क्रिया) करतो, ते ज अनेक प्रकारनां करणो वडे ते ज सचित्त-अचित्त वस्तुओनो घात करतो, कर्मरूपी रजथी बंधातो नथी, कारण के तेने बंधनुं कारण जे रागनो योग (रागमां जोडाण) तेनो अभाव छे.

भावार्थःसम्यग्द्रष्टिने पूर्वोक्त सर्व संबंधो होवा छतां पण रागना संबंधनो