Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Kalash: 166-167.

< Previous Page   Next Page >


Page 377 of 642
PDF/HTML Page 408 of 673

 

कहानजैनशास्त्रमाळा ]

बंध अधिकार
३७७
(पृथ्वी)
तथापि न निरर्गलं चरितुमिष्यते ज्ञानिनां
तदायतनमेव सा किल निरर्गला व्यापृतिः
अकामकृतकर्म तन्मतमकारणं ज्ञानिनां
द्वयं न हि विरुध्यते किमु करोति जानाति च
।।१६६।।
(वसन्ततिलका)
जानाति यः स न करोति करोति यस्तु
जानात्ययं न खलु तत्किल कर्मरागः
रागं त्वबोधमयमध्यवसायमाहु-
र्मिथ्या
द्रशः स नियतं स च बन्धहेतुः ।।१६७।।
हवे उपरना भावार्थमां कहेलो आशय प्रगट करवाने, काव्य कहे छेः

श्लोकार्थः[तथापि] तथापि (अर्थात् लोक आदि कारणोथी बंध कह्यो नथी अने रागादिकथी ज बंध कह्यो छे तोपण) [ज्ञानिनां निरर्गलं चरितुम् न इष्यते] ज्ञानीओने निरर्गल (मर्यादारहित, स्वच्छंदपणे) प्रवर्तवुं योग्य नथी कह्युं, [सा निरर्गला व्यापृतिः किल तद्-आयतनम् एव] कारण के ते निरर्गल प्रवर्तन खरेखर बंधनुं ज ठेकाणुं छे. [ज्ञानिनां अकाम-कृत-कर्म तत् अकारणम् मतम्] ज्ञानीओने वांछा विना कर्म (कार्य) होय छे ते बंधनुं कारण कह्युं नथी, केम के [जानाति च करोति] जाणे पण छे अने (कर्मने ) करे पण छे[द्वयं किमु न हि विरुध्यते] ए बन्ने क्रिया शुं विरोधरूप नथी? (करवुं अने जाणवुं निश्चयथी विरोधरूप ज छे.)

भावार्थःपहेला काव्यमां लोक आदिने बंधनां कारण न कह्यां त्यां एम न समजवुं के बाह्यव्यवहारप्रवृत्तिने बंधनां कारणोमां सर्वथा ज निषेधी छे; बाह्यव्यवहारप्रवृत्ति रागादि परिणामनेबंधना कारणनेनिमित्तभूत छे, ते निमित्तपणानो अहीं निषेध न समजवो. ज्ञानीओने अबुद्धिपूर्वकवांछा विनाप्रवृत्ति थाय छे तेथी बंध कह्यो नथी, तेमने कांई स्वच्छंदे प्रवर्तवानुं कह्युं नथी; कारण के मर्यादा रहित (अंकुश विना) प्रवर्तवुं ते तो बंधनुं ज ठेकाणुं छे. जाणवामां अने करवामां तो परस्पर विरोध छे; ज्ञाता रहेशे तो बंध नहि थाय, कर्ता थशे तो अवश्य बंध थशे. १६६.

‘‘जे जाणे छे ते करतो नथी अने जे करे छे ते जाणतो नथी; करवुं ते तो कर्मनो राग छे, राग छे ते अज्ञान छे अने अज्ञान छे ते बंधनुं कारण छे.’’ आवा अर्थनुं काव्य हवे कहे छेः

48