कहानजैनशास्त्रमाळा ]
य एवायं मिथ्याद्रष्टेरज्ञानजन्मा रागमयोऽध्यवसायः स एव बन्धहेतुः इत्यव- मिथ्या अध्यवसाय ज बंधनुं कारण छे एम नियमथी कहे छे)ः —
गाथार्थः — ‘[सत्त्वान्] हुं जीवोने [दुःखितसुखितान्] दुःखी-सुखी [करोमि] करुं छुं’ [एवम्] आवुं [यत् ते अध्यवसितं] जे तारुं *अध्यवसान, [तत्] ते ज [पापबन्धकं वा] पापनुं बंधक [ पुण्यस्य बन्धकं वा] अथवा पुण्यनुं बंधक [भवति] थाय छे.
‘[ सत्त्वान् ] हुं जीवोने [मारयामि च जीवयामि] मारुं छुं अने जिवाडुं छुं’ [एवम्] आवुं [यत् ते अध्यवसितं] जे तारुं अध्यवसान, [तत्] ते ज [पापबन्धकं वा] पापनुं बंधक [पुण्यस्य बन्धकं वा] अथवा पुण्यनुं बंधक [भवति] थाय छे.
टीकाः — मिथ्याद्रष्टिने जे आ अज्ञानथी जन्मतो रागमय अध्यवसाय छे ते ज बंधनुं
* जे परिणमन मिथ्या अभिप्राय सहित होय ( – स्वपरना एकत्वना अभिप्राय सहित होय) अथवा
वैभाविक होय ते परिणमन माटे अध्यवसान शब्द वपराय छे. (मिथ्या) निश्चय करवो, (मिथ्या)
अभिप्राय करवो — एवा अर्थमां पण ते शब्द वपराय छे.