Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 263-264.

< Previous Page   Next Page >


Page 391 of 642
PDF/HTML Page 422 of 673

 

कहानजैनशास्त्रमाळा ]

बंध अधिकार
३९१

परजीवानां स्वकर्मोदयवैचित्र्यवशेन प्राणव्यपरोपः कदाचिद्भवतु, कदाचिन्मा भवतु, य एव हिनस्मीत्यहङ्काररसनिर्भरो हिंसायामध्यवसायः स एव निश्चयतस्तस्य बन्धहेतुः, निश्चयेन परभावस्य प्राणव्यपरोपस्य परेण कर्तुमशक्यत्वात्

अथाध्यवसायं पापपुण्ययोर्बन्धहेतुत्वेन दर्शयति

एवमलिए अदत्ते अबंभचेरे परिग्गहे चेव
कीरदि अज्झवसाणं जं तेण दु बज्झदे पावं ।।२६३।।
तह वि य सच्चे दत्ते बंभे अप्परिग्गहत्तणे चेव
कीरदि अज्झवसाणं जं तेण दु बज्झदे पुण्णं ।।२६४।।

टीकाःपर जीवोने पोताना कर्मना उदयनी विचित्रताना वशे प्राणोनो व्यपरोप (उच्छेद, वियोग) कदाचित् थाओ, कदाचित् न थाओ,‘हुं हणुं छुं’ एवो जे अहंकाररसथी भरेलो हिंसामां अध्यवसाय (अर्थात् हिंसानो अध्यवसाय) ते ज निश्चयथी तेने ( हिंसानो अध्यवसाय करनारा जीवने) बंधनुं कारण छे, केम के निश्चयथी परनो भाव एवो जे प्राणोनो व्यपरोप ते परथी करावो अशक्य छे (अर्थात् ते परथी करी शकातो नथी).

भावार्थःनिश्चयनये बीजाना प्राणोनो वियोग बीजाथी करी शकातो नथी; तेना पोताना कर्मना उदयनी विचित्रतावश कदाचित् थाय छे, कदाचित् नथी थतो. माटे जे एम माने छेअहंकार करे छे के ‘हुं पर जीवने मारुं छुं’, तेनो ते अहंकाररूप अध्यवसाय अज्ञानमय छे. ते अध्यवसाय ज हिंसा छेपोताना विशुद्ध चैतन्यप्राणनो घात छे, अने ते ज बंधनुं कारण छे. आ निश्चयनयनो मत छे.

अहीं व्यवहारनयने गौण करीने कह्युं छे एम जाणवुं. माटे ते कथन कथंचित् (अर्थात् अपेक्षापूर्वक) छे एम समजवुं; सर्वथा एकांतपक्ष तो मिथ्यात्व छे.

हवे, (हिंसा-अहिंसानी जेम सर्व कार्योमां) अध्यवसायने ज पाप-पुण्यना बंधना कारणपणे दर्शावे छेः

एम अलीकमांही, अदत्तमां, अब्रह्म ने परिग्रह विषे
जे थाय अध्यवसान तेथी पापबंधन थाय छे. २६३.
ए रीत सत्ये, दत्तमां, वळी ब्रह्म ने अपरिग्रहे
जे थाय अध्यवसान तेथी पुण्यबंधन थाय छे. २६४.