Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 267.

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समयसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

लुनामीत्यध्यवसानवन्मिथ्यारूपं, केवलमात्मनोऽनर्थायैव

कुतो नाध्यवसानं स्वार्थक्रियाकारीति चेत्
अज्झवसाणणिमित्तं जीवा बज्झंति कम्मणा जदि हि
मुच्चंति मोक्खमग्गे ठिदा य ता किं करेसि तुमं ।।२६७।।
अध्यवसाननिमित्तं जीवा बध्यन्ते कर्मणा यदि हि
मुच्यन्ते मोक्षमार्गे स्थिताश्च तत् किं करोषि त्वम् ।।२६७।।

यत्किल बन्धयामि मोचयामीत्यध्यवसानं तस्य हि स्वार्थक्रिया यद्बन्धनं मोचनं जीवानाम् जीवस्त्वस्याध्यवसायस्य सद्भावेऽपि सरागवीतरागयोः स्वपरिणामयोः अभावान्न बध्यते,


पोतानी अर्थक्रिया करनारुं नहि होवाथी, ‘हुं आकाशना फूलने चूंटुं छुं’ एवा अध्यवसाननी माफक मिथ्यारूप छे, केवळ पोताना अनर्थने माटे ज छे (अर्थात् मात्र पोताने ज नुकसाननुं कारण थाय छे, परने तो कांई करी शकतुं नथी).

भावार्थःजे पोतानी अर्थक्रिया (प्रयोजनभूत क्रिया) करी शकतुं नथी ते निरर्थक छे, अथवा जेनो विषय नथी ते निरर्थक छे. जीव पर जीवोने दुःखी-सुखी आदि करवानी बुद्धि करे छे, परंतु पर जीवो तो पोताना कर्या दुःखी-सुखी थता नथी; तेथी ते बुद्धि निरर्थक छे अने निरर्थक होवाथी मिथ्या छेखोटी छे.

हवे पूछे छे के अध्यवसाय पोतानी अर्थक्रिया करनारुं कई रीते नथी? तेनो उत्तर कहे छेः

सौ जीव अध्यवसानकारण कर्मथी बंधाय ज्यां
ने मोक्षमार्गे स्थित जीवो मुकाय, तुं शुं करे भला? २६७.

गाथार्थःहे भाई! [यदि हि] जो खरेखर [अध्यवसाननिमित्तं] अध्यवसानना निमित्ते [जीवाः] जीवो [कर्मणा बध्यन्ते] कर्मथी बंधाय छे [च] अने [मोक्षमार्गे स्थिताः] मोक्षमार्गमां स्थित [मुच्यन्ते] मुकाय छे, [तद्] तो [त्वम् किं करोषि] तुं शुं करे छे? (तारो तो बांधवा-छोडवानो अभिप्राय विफळ गयो.)

टीकाः‘हुं बंधावुं छुं, मुकावुं छुं’ एवुं जे अध्यवसान छे तेनी पोतानी अर्थक्रिया जीवोने बांधवा, मूकवा (मुक्त करवा, छोडवा) ते छे. परंतु जीव तो, आ अध्यवसायनो सद्भाव होवा छतां पण, पोताना सराग-वीतराग परिणामना अभावथी नथी बंधातो, नथी मुकातो; अने

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