Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Kalash: 175.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

बंध अधिकार
४१३

स्वयं न परिणमते, परद्रव्येणैव स्वयं रागादिभावापन्नतया स्वस्य रागादिनिमित्तभूतेन, शुद्धस्वभावात्प्रच्यवमान एव, रागादिभिः परिणम्यते इति तावद्वस्तुस्वभावः

(उपजाति)
न जातु रागादिनिमित्तभाव-
मात्मात्मनो याति यथार्ककान्तः
तस्मिन्निमित्तं परसङ्ग एव
वस्तुस्वभावोऽयमुदेति तावत्
।।१७५।।

पोताने रागादिरूप परिणमननुं निमित्त नहि होवाथी) पोतानी मेळे रागादिरूपे परिणमतो नथी, परंतु जे पोतानी मेळे रागादिभावने पामतुं होवाथी आत्माने रागादिनुं निमित्त थाय छे एवा परद्रव्य वडे ज, शुद्धस्वभावथी च्युत थतो थको ज, रागादिरूपे परिणमावाय छे. आवो वस्तुनो स्वभाव छे.

भावार्थःस्फटिकमणि पोते तो केवळ एकाकार शुद्ध ज छे; ते परिणमन- स्वभाववाळो होवा छतां एकलो पोतानी मेळे लालाश-आदिरूपे परिणमतो नथी परंतु लाल आदि परद्रव्यना निमित्ते (अर्थात् स्वयं लालाश-आदिरूपे परिणमता एवा परद्रव्यना निमित्ते) लालाश-आदिरूपे परिणमे छे. तेवी रीते आत्मा पोते तो शुद्ध ज छे; ते परिणमनस्वभाववाळो होवा छतां एकलो पोतानी मेळे रागादिरूपे परिणमतो नथी परंतु रागादिरूप परद्रव्यना निमित्ते (अर्थात् स्वयं रागादिरूपे परिणमता एवा परद्रव्यना निमित्ते) रागादिरूपे परिणमे छे. आवो वस्तुनो ज स्वभाव छे, तेमां अन्य कोई तर्कने अवकाश नथी.

हवे आ अर्थनुं कळशरूप काव्य कहे छेः

श्लोकार्थः[यथा अर्ककान्तः] सूर्यकांतमणिनी माफक (अर्थात् जेम सूर्यकांतमणि पोताथी ज अग्निरूपे परिणमतो नथी, तेना अग्निरूप परिणमनमां सूर्यनुं बिंब निमित्त छे, तेम) [आत्मा आत्मनः रागादिनिमित्तभावम् जातु न याति] आत्मा पोताने रागादिकनुं निमित्त कदी पण थतो नथी, [तस्मिन् निमित्तं परसङ्गः एव] तेमां निमित्त परसंग ज (परद्रव्यनो संग ज) छे.[अयम् वस्तुस्वभावः उदेति तावत् ] आवो वस्तुस्वभाव प्रकाशमान छे. (सदाय वस्तुनो आवो ज स्वभाव छे, कोईए करेलो नथी.) १७५.

‘आवा वस्तुस्वभावने जाणतो ज्ञानी रागादिकने पोताना करतो नथी’ एवा अर्थनो, आगळनी गाथानी सूचनारूप श्लोक हवे कहे छेः