य इमे किलाज्ञानिनः पुद्गलकर्मनिमित्ता रागद्वेषमोहादिपरिणामास्त एव भूयो रागद्वेषमोहादिपरिणामनिमित्तस्य पुद्गलकर्मणो बन्धहेतुरिति ।
कथमात्मा रागादीनामकारक एवेति चेत् —
भावार्थः — अज्ञानी वस्तुना स्वभावने तो यथार्थ जाणतो नथी अने कर्मना उदयथी जे भावो थाय छे तेमने पोताना समजीने परिणमे छे, माटे तेमनो कर्ता थयो थको फरी फरी आगामी कर्म बांधे छे — एवो नियम छे.
‘‘तेथी आम ठर्युं (अर्थात् पूर्वोक्त कारणथी नीचे प्रमाणे नक्की थयुं )’’ एम हवे कहे छेः —
गाथार्थः — [रागे च द्वेषे च कषायकर्मसु च एव] राग, द्वेष अने कषायकर्मो होतां (अर्थात् तेमनो उदय थतां) [ये भावाः] जे भावो थाय छे [तैः तु] ते-रूपे [परिणममानः] परिणमतो थको [चेतयिता] आत्मा [रागादीन्] रागादिकने [बध्नाति] बांधे छे.
टीकाः — खरेखर अज्ञानीने, पुद्गलकर्म जेमनुं निमित्त छे एवा जे आ रागद्वेष- मोहादि परिणामो छे, तेओ ज फरीने रागद्वेषमोहादि परिणामोनुं निमित्त जे पुद्गलकर्म तेना बंधनुं कारण छे.
भावार्थः — अज्ञानीने कर्मना निमित्ते जे रागद्वेषमोह आदि परिणामो थाय छे तेओ ज फरीने आगामी कर्मबंधनां कारण थाय छे.
हवे पूछे छे के आत्मा रागादिकनो अकारक ज शी रीते छे? तेनुं समाधान (आगमनुं प्रमाण आपीने) करे छेः —
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