कहानजैनशास्त्रमाळा ]
बंध अधिकार
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इति बन्धो निष्क्रान्तः ।
इति श्रीमदमृतचन्द्रसूरिविरचितायां समयसारव्याख्यायामात्मख्यातौ बन्धप्ररूपकः सप्तमोऽङ्कः ।।
टीकाः — आ प्रमाणे बंध (रंगभूमिमांथी) बहार नीकळी गयो.
भावार्थः — रंगभूमिमां बंधना स्वांगे प्रवेश कर्यो हतो. हवे ज्यां ज्ञानज्योति प्रगट
थई त्यां ते बंध स्वांगने दूर करीने बहार नीकळी गयो.
जो नर कोय परै रजमांहि सचिक्कण अंग लगै वह गाढै,
त्यों मतिहीन जु रागविरोध लिये विचरे तब बंधन बाढै;
पाय समै उपदेश यथारथ रागविरोध तजै निज चाटै,
नाहिं बंधै तब कर्मसमूह जु आप गहै परभावनि काटै.
त्यों मतिहीन जु रागविरोध लिये विचरे तब बंधन बाढै;
पाय समै उपदेश यथारथ रागविरोध तजै निज चाटै,
नाहिं बंधै तब कर्मसमूह जु आप गहै परभावनि काटै.
आम श्री समयसारनी (श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्यदेवप्रणीत श्री समयसार परमागमनी) श्रीमद् अमृतचंद्राचार्यदेवविरचित आत्मख्याति नामनी टीकामां बंधनो प्ररूपक सातमो अंक समाप्त थयो.
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