Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Moksha Adhikar Kalash: 180.

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-८-
मोक्ष अधिकार
अथ प्रविशति मोक्षः
(शिखरिणी)
द्विधाकृत्य प्रज्ञाक्रकचदलनाद्बन्धपुरुषौ
नयन्मोक्षं साक्षात्पुरुषमुपलम्भैकनियतम्
इदानीमुन्मज्जत्सहजपरमानन्दसरसं
परं पूर्णं ज्ञानं कृतसकलकृत्यं विजयते
।।१८०।।
कर्मबंध सौ कापीने, पहोंच्या मोक्ष सुथान;
नमुं सिद्ध परमातमा, करुं ध्यान अमलान.

प्रथम टीकाकार आचार्यदेव कहे छे के ‘हवे मोक्ष प्रवेश करे छे’. जेम नृत्यना अखाडामां स्वांग प्रवेश करे छे तेम अहीं मोक्षतत्त्वनो स्वांग प्रवेश करे छे. त्यां ज्ञान सर्व स्वांगने जाणनारुं छे, तेथी अधिकारना आदिमां आचार्यदेव सम्यग्ज्ञानना महिमारूप मंगळ करे छेः

श्लोकार्थः[इदानीम् ] हवे (बंध पदार्थ पछी), [प्रज्ञा-क्रकच-दलनात् बन्ध-पुरुषौ द्विधाकृत्य] प्रज्ञारूपी करवत वडे विदारण द्वारा बंध अने पुरुषने द्विधा (जुदा जुदाबे) करीने, [पुरुषम् उपलम्भ-एक-नियतम्] पुरुषनेके जे पुरुष मात्र *अनुभूति वडे ज निश्चित छे तेने[साक्षात् मोक्षं नयत्] साक्षात् मोक्ष पमाडतुं थकुं, [पूर्णं ज्ञानं विजयते] पूर्ण ज्ञान जयवंत प्रवर्ते छे. केवुं छे ते ज्ञान? [उन्मज्जत्-सहज-परम-आनन्द-सरसं] प्रगट थता सहज परम आनंद वडे सरस अर्थात् रसयुक्त छे, [परं] उत्कृष्ट छे, अने [कृत-सकल-कृत्यं] करवायोग्य समस्त कार्यो जेणे करी लीधां छे (जेने कांई करवानुं बाकी रह्युं नथी) एवुं छे.

* जेटलुं स्वरूप-अनुभवन छे तेटलो ज आत्मा छे.