कहानजैनशास्त्रमाळा ]
बन्धचिन्ताप्रबन्धो मोक्षहेतुरित्यन्ये, तदप्यसत्; न कर्मबद्धस्य बन्धचिन्ताप्रबन्धो मोक्षहेतुः, अहेतुत्वात्, निगडादिबद्धस्य बन्धचिन्ताप्रबन्धवत् । एतेन कर्मबन्धविषयचिन्ताप्रबन्धात्मक- विशुद्धधर्मध्यानान्धबुद्धयो बोध्यन्ते ।
कस्तर्हि मोक्षहेतुरिति चेत् —
गाथार्थः — [यथा] जेम [बन्धनबद्धः] बंधनथी बंधायेलो पुरुष [बन्धान् चिन्तयन्] बंधोना विचार करवाथी [विमोक्षम् न प्राप्नोति] मोक्ष पामतो नथी (अर्थात् बंधथी छूटतो नथी), [तथा] तेम [जीवः अपि] जीव पण [बन्धान् चिन्तयन्] बंधोना विचार करवाथी [विमोक्षम् न प्राप्नोति] मोक्ष पामतो नथी.
टीकाः — ‘बंध संबंधी विचारशृंखला मोक्षनुं कारण छे’ एम बीजा केटलाक कहे छे, ते पण असत् छे; कर्मथी बंधायेलाने बंध संबंधी विचारनी शृंखला मोक्षनुं कारण नथी, केम के जेम बेडी आदिथी बंधायेलाने ते बंध संबंधी विचारशृंखला ( – विचारनी परंपरा) बंधथी छूटवानुं कारण नथी तेम कर्मथी बंधायेलाने कर्मबंध संबंधी विचारशृंखला कर्मबंधथी छूटवानुं कारण नथी. आथी ( – आ कथनथी), कर्मबंध संबंधी विचारशृंखलात्मक विशुद्ध ( – शुभ) धर्मध्यान वडे जेमनी बुद्धि अंध छे तेमने समजाववामां आवे छे.
भावार्थः — कर्मबंधनी चिंतामां मन लाग्युं रहे तोपण मोक्ष थतो नथी. ए तो धर्मध्यानरूप शुभ परिणाम छे. जेओ केवळ शुभ परिणामथी ज मोक्ष माने छे तेमने अहीं उपदेश छे के — शुभ परिणामथी मोक्ष थतो नथी.
‘‘(जो बंधना स्वरूपना ज्ञानमात्रथी पण मोक्ष नथी अने बंधना विचार करवाथी पण मोक्ष नथी) तो मोक्षनुं कारण कयुं छे?’’ एम पूछवामां आवतां हवे मोक्षनो उपाय कहे छेः —