कर्मबद्धस्य बन्धच्छेदो मोक्षहेतुः, हेतुत्वात्, निगडादिबद्धस्य बन्धच्छेदवत् । एतेन उभयेऽपि पूर्वे आत्मबन्धयोर्द्विधाकरणे व्यापार्येते ।
किमयमेव मोक्षहेतुरिति चेत् —
गाथार्थः — [यथा च] जेम [बन्धनबद्धः तु] बंधनथी बंधायेलो पुरुष [बन्धान् छित्वा] बंधोने छेदीने [विमोक्षम् प्राप्नोति] मोक्ष पामे छे, [तथा च] तेम [जीवः] जीव [बन्धान् छित्वा] बंधोने छेदीने [विमोक्षम् सम्प्राप्नोति] मोक्ष पामे छे.
टीकाः — कर्मथी बंधायेलाने बंधनो छेद मोक्षनुं कारण छे, केम के जेम बेडी आदिथी बंधायेलाने बंधनो छेद बंधथी छूटवानुं कारण छे तेम कर्मथी बंधायेलाने कर्मबंधनो छेद कर्मबंधथी छूटवानुं कारण छे. आथी ( – आ कथनथी), पूर्वे कहेला बन्नेने ( – जेओ बंधना स्वरूपना ज्ञानमात्रथी संतुष्ट छे तेमने अने जेओ बंधना विचार कर्या करे छे तेमने – ) आत्मा अने बंधना द्विधाकरणमां व्यापार कराववामां आवे छे (अर्थात् आत्मा अने बंधने जुदा जुदा करवा प्रत्ये लगाडवामां – जोडवामां – उद्यम कराववामां आवे छे).
‘मात्र आ ज (अर्थात् बंधनो छेद ज) मोक्षनुं कारण केम छे?’ एम पूछवामां आवतां हवे तेनो उत्तर कहे छेः —
गाथार्थः — [बन्धानां स्वभावं च] बंधोना स्वभावने [आत्मनः स्वभावं च] अने आत्माना स्वभावने [विज्ञाय] जाणीने [बन्धेषु] बंधो प्रत्ये [यः] जे [विरज्यते] विरक्त थाय छे, [सः] ते [कर्मविमोक्षणं करोति] कर्मोथी मुकाय छे.
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