Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 294.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

मोक्ष अधिकार
४२९

य एव निर्विकारचैतन्यचमत्कारमात्रमात्मस्वभावं तद्विकारकारकं बन्धानां च स्वभावं विज्ञाय, बन्धेभ्यो विरमति, स एव सकलकर्ममोक्षं कुर्यात् एतेनात्मबन्धयोर्द्विधाकरणस्य मोक्षहेतुत्वं नियम्यते

केनात्मबन्धौ द्विधा क्रियेते इति चेत्

जीवो बंधो य तहा छिज्जंति सलक्खणेहिं णियएहिं
पण्णाछेदणएण दु छिण्णा णाणत्तमावण्णा ।।२९४।।
जीवो बन्धश्च तथा छिद्येते स्वलक्षणाभ्यां नियताभ्याम्
प्रज्ञाछेदनकेन तु छिन्नौ नानात्वमापन्नौ ।।२९४।।

आत्मबन्धयोर्द्विधाकरणे कार्ये कर्तुरात्मनः करणमीमांसायां, निश्चयतः स्वतो

टीकाःजे, निर्विकारचैतन्यचमत्कारमात्र आत्मस्वभावने (आत्माना स्वभावने) अने तेने (अर्थात् आत्माने) विकार करनारा एवा बंधोना स्वभावने जाणीने, बंधोथी विरमे छे, ते ज सर्व कर्मोथी मुकाय छे. आथी (आ कथनथी), आत्मा अने बंधनुं द्विधाकरण ज मोक्षनुं कारण छे एवो नियम करवामां आवे छे (अर्थात् आत्मा अने बंधने जुदा जुदा करवा ते ज मोक्षनुं कारण छे एम नक्की करवामां आवे छे).

‘आत्मा अने बंध शा वडे द्विधा कराय छे (अर्थात् कया साधन वडे जुदा करी शकाय छे)?’ एम पूछवामां आवतां हवे तेनो उत्तर कहे छेः

जीव बंध बन्ने, नियत निज निज लक्षणे छेदाय छे,
प्रज्ञाछीणी थकी छेदतां बन्ने जुदा पडी जाय छे. २९४.

गाथार्थः[जीवः च तथा बन्धः] जीव तथा बंध [नियताभ्याम् स्वलक्षणाभ्यां] नियत स्वलक्षणोथी (पोतपोतानां निश्चित लक्षणोथी) [छिद्येते] छेदाय छे; [प्रज्ञाछेदनकेन] प्रज्ञारूपी छीणी वडे [छिन्नौ तु] छेदवामां आवतां [नानात्वम् आपन्नौ] तेओ नानापणाने पामे छे अर्थात् जुदा पडी जाय छे.

टीकाःआत्मा अने बंधने द्विधा करवारूप कार्यमां कर्ता जे आत्मा तेना करण संबंधी मीमांसा करवामां आवतां, निश्चये (निश्चयनये) पोताथी भिन्न करणनो अभाव

१. करण = साधन; करण नामनुं कारक.
२. मीमांसा = ऊंडी विचारणा; तपास; समालोचना.