अर्थ : — जिस जीवने प्रसन्नचित्तसे इस चैतन्यस्वरूप आत्माकी बात भी सुनी है, वह भव्य पुरुष भविष्यमें होनेवाली मुक्तिका अवश्य भाजन होता है।
उपर्युक्त प्रकारसे सुपात्र जीव गुरुगमसे शुद्धचैतन्यतत्त्वकी वार्ताका प्रीतिपूर्वक श्रवण करो और इस परमागमकी पाँचवी गाथामें कथित आचार्यभगवानकी आज्ञानुसार उस एकत्वविभक्त शुद्ध आत्माको स्वानुभवप्रत्यक्षसे प्रमाण करो।
(विजयादशमी)
वि. सं. २०५५
समयसार हिन्दीका यह नववाँ संस्करण प्रथमकी आवृत्ति अनुसार ही है। मुद्रणकार्य ‘कहान मुद्रणालय’के मालिक श्री ज्ञानचंदजी जैनने अल्प समयमें मुद्रित कर दिया अतः ट्रस्ट आभार मानता है।
समयसार ग्रन्थाधिराज है। उसमें बताये हुए भावोंको यथार्थ समझकर, अन्तरमें उसका परिणमन करके अतीन्द्रिय ज्ञानकी प्राप्ति द्वारा अतीन्द्रिय आनन्दको सब जीव आस्वादन करे यह अंतरीक भावना सह..... पूज्य गुरुदेवश्रीकी १२१वीं जन्मजयंती ता. १५-०५-२०१०