यो मोहं तु जित्वा ज्ञानस्वभावाधिकं जानात्यात्मानम् ।
तं जितमोहं साधुं परमार्थविज्ञायका ब्रुवन्ति ।।३२।।
यो हि नाम फलदानसमर्थतया प्रादुर्भूय भावकत्वेन भवन्तमपि दूरत एव तदनुवृत्तेरात्मनो
भाव्यस्य व्यावर्तनेन हठान्मोहं न्यक्कृत्योपरतसमस्तभाव्यभावकसंक रदोषत्वेनैकत्वे टंकोत्कीर्णं
विश्वस्याप्यस्योपरि तरता प्रत्यक्षोद्योततया नित्यमेवान्तःप्रकाशमानेनानपायिना स्वतःसिद्धेन
परमार्थसता भगवता ज्ञानस्वभावेन द्रव्यान्तरस्वभावभाविभ्यः सर्वेभ्यो भावान्तरेभ्यः परमार्थ-
तोऽतिरिक्तमात्मानं संचेतयते स खलु जितमोहो जिन इति द्वितीया निश्चयस्तुतिः ।
एवमेव च मोहपदपरिवर्तनेन रागद्वेषक्रोधमानमायालोभकर्मनोकर्ममनोवचनकाय-
सूत्राण्येकादश पंचानां श्रोत्रचक्षुर्घ्राणरसनस्पर्शनसूत्राणामिन्द्रियसूत्रेण पृथग्व्याख्या-
तत्वाद्वयाख्येयानि । अनया दिशान्यान्यप्यूह्यानि ।
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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
गाथार्थ : — [यः तु ] जो मुनि [मोहं ] मोहको [जित्वा ] जीतकर [आत्मानम् ] अपने
आत्माको [ज्ञानस्वभावाधिकं ] ज्ञानस्वभावके द्वारा अन्यद्रव्यभावोंसे अधिक [जानाति ] जानता है
[तं साधुं ] उस मुनिको [परमार्थविज्ञायकाः ] परमार्थके जाननेवाले [जितमोहं ] जितमोह
[ब्रुवन्ति ] कहते हैं ।
टीका : — मोहकर्म फल देनेकी सामर्थ्यसे प्रगट उदयरूप होकर भावकपनेसे प्रगट होता
है, तथापि तदनुसार जिसकी प्रवृत्ति है ऐसा जो अपना आत्मा भाव्य, उसको भेदज्ञानके बल द्वारा
दूरसे ही अलग करनेसे इसप्रकार बलपूर्वक मोहका तिरस्कार करके, समस्त भाव्यभावक-
संकरदोष दूर हो जानेसे एकत्वमें टंकोत्कीर्ण (निश्चल) और ज्ञानस्वभावके द्वारा अन्यद्रव्योंके
स्वभावोंसे होनेवाले सर्व अन्यभावोंसे परमार्थतः भिन्न अपने आत्माका जो (मुनि) अनुभव करता
है वह निश्चयसे जितमोह (जिसने मोहको जीता है ऐसा) जिन हैं । कैसा है वह ज्ञानस्वभाव ?
इस समस्त लोकके उपर तिरता हुआ, प्रत्यक्ष उद्योतरूपसे सदैव अन्तरङ्गमें प्रकाशमान, अविनाशी,
अपनेसे ही सिद्ध और परमार्थसत् ऐसा भगवान ज्ञानस्वभाव है ।
इसप्रकार भाव्यभावक भावके संकरदोषको दूर करके दूसरी निश्चयस्तुति है ।
इस गाथासूत्रमें एक मोहका ही नाम लिया है; उसमें ‘मोह’ पदको बदलकर उसके
स्थान पर राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ, कर्म, नोकर्म, मन, वचन, काय रखकर ग्यारह
सूत्र व्याख्यानरूप करना और श्रोत्र, चक्षु, घ्राण, रसन तथा स्पर्शन — इन पांचके सूत्रोंको
इन्द्रियसूत्रके द्वारा अलग व्याख्यानरूप करना; इसप्रकार सोलह सूत्रोंको भिन्न-भिन्न