Samaysar (Hindi). Gatha: 34.

< Previous Page   Next Page >


Page 74 of 642
PDF/HTML Page 107 of 675

 

७४
समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
तत्त्वज्ञानज्योतिर्नेत्रविकारीव प्रकटोद्घाटितपटलष्टसितिप्रतिबुद्धः (?) साक्षात् द्रष्टारं स्वं स्वयमेव
हि विज्ञाय श्रद्धाय च तं चैवानुचरितुकामः स्वात्मारामस्यास्यान्यद्रव्याणां प्रत्याख्यानं किं स्यादिति
पृच्छन्नित्थं वाच्यः
सव्वे भावे जम्हा पच्चक्खाई परे त्ति णादूणं
तम्हा पच्चक्खाणं णाणं णियमा मुणेदव्वं ।।३४।।
सर्वान् भावान् यस्मात्प्रत्याख्याति परानिति ज्ञात्वा
तस्मात्प्रत्याख्यानं ज्ञानं नियमात् ज्ञातव्यम् ।।३४।।

यतो हि द्रव्यान्तरस्वभावभाविनोऽन्यानखिलानपि भावान् भगवज्ज्ञातृद्रव्यं स्वस्वभाव- भावाव्याप्यतया परत्वेन ज्ञात्वा प्रत्याचष्टे, ततो य एव पूर्वं जानाति स एव पश्चात्प्रत्याचष्टे, साक्षात् द्रष्टा आपको अपनेसे ही जानकर तथा श्रद्धान करके, उसीका आचरण करनेका इच्छुक होता हुआ पूछता है कि ‘इस स्वात्मारामको अन्य द्रव्योंका प्रत्याख्यान (त्यागना) क्या है ?’ उसको आचार्य इसप्रकार कहते हैं कि :

सब भाव पर ही जान प्रत्याख्यान भावोंका करे,
इससे नियमसे जानना कि ज्ञान प्रत्याख्यान है
।।३४।।

गाथार्थ :[यस्मात् ] जिससे [सर्वान् भावान् ] ‘अपनेसे अतिरिक्त सर्व पदार्थ [परान् ] पर हैं ’ [इति ज्ञात्वा ] ऐसा जानकर [प्रत्याख्याति ] प्रत्याख्यान करता हैत्याग करता है, [तस्मात् ] इसलिये, [प्रत्याख्यानं ] प्रत्याख्यान [ज्ञानं ] ज्ञान ही है [नियमात् ] ऐसा नियमसे [ज्ञातव्यम् ] जानना अपने ज्ञानमें त्यागरूप अवस्था ही प्रत्याख्यान है, दूसरा कुछ नहीं

टीका :यह भगवान ज्ञाता-द्रव्य (आत्मा) है वह अन्यद्रव्यके स्वभावसे होनेवाले अन्य समस्त परभावोंको, वे अपने स्वभावभावसे व्याप्त न होनेसे पररूप जानकर, त्याग देता है; इसलिए जो पहले जानता है वही बादमें त्याग करता है, अन्य तो कोई त्याग करनेवाला नहीं हैइसप्रकार आत्मामें निश्चय करके, प्रत्याख्यानके (त्यागके) समय प्रत्याख्यान करने योग्य परभावकी उपाधिमात्रसे प्रवर्तमान त्यागके कर्तृत्वका नाम (आत्माको) होने पर भी, परमार्थसे देखा जाये तो परभावके त्यागकर्तृत्वका नाम अपनेको नहीं है, स्वयं तो इस नामसे