परिवर्तितमेतद्वस्त्रं मामकमित्यसकृद्वाक्यं शृण्वन्नखिलैश्चिह्नैः सुष्ठु परीक्ष्य निश्चितमेतत्परकीयमिति
ज्ञात्वा ज्ञानी सन
मंक्षु प्रतिबुध्यस्वैकः खल्वयमात्मेत्यसकृच्छ्रौतं वाक्यं शृण्वन्नखिलैश्चिह्नैः सुष्ठु परीक्ष्य निश्चितमेते
परभावा इति ज्ञात्वा ज्ञानी सन
दनवमपरभावत्यागदृष्टान्तदृष्टिः
स्वयमियमनुभूतिस्तावदाविर्बभूव
है, यह मेरा है सो मुझे दे दे’, तब बारम्बार कहे गये इस वाक्यको सुनता हुआ वह, (उस वस्त्रके)
सर्व चिह्नोंसे भलीभान्ति परीक्षा करके, ‘अवश्य यह वस्त्र दूसरेका ही है’ ऐसा जानकर , ज्ञानी
होता हुआ, उस (दूसरेके) वस्त्रको शीघ्र ही त्याग देता है
अपने आप अज्ञानी हो रहा है ; जब श्री गुरु परभावका विवेक (भेदज्ञान) करके उसे एक
आत्मभावरूप करते हैं और कहते हैं कि ‘तू शीघ्र जाग, सावधान हो, यह तेरा आत्मा वास्तवमें
एक (ज्ञानमात्र) ही है, (अन्य सर्व परद्रव्यके भाव हैं )’, तब बारम्बार कहे गये इस आगमके
वाक्यको सुनता हुआ वह, समस्त (स्व-परके) चिह्नोंसे भलीभांति परीक्षा करके, ‘अवश्य यह
परभाव ही हैं, (मैं एक ज्ञानमात्र ही हूँ)’ यह जानकर, ज्ञानी होता हुआ, सर्व परभावोंको शीघ्र
छोड़ देता है
अर्थात् नहीं रहे यह प्रसिद्ध है